मंगलवार, 10 जून 2014

हे... प्रकृति... ҉‿↗⁀҉ ҉‿↗⁀҉


प्रकृति ने हमेँ जी भर के दिया है..!
फिर क्यो मचाते हम उत्पात..!!
घात लगा बैठे हम प्रकृति का करने उपहास..!!!
वृक्ष-पवन-जल से जीवन अपना..!
फिर क्यो करते हम इनका ह्रास..!!
घात लगा बैठे हम प्रकृति का करने उपहास..!!!
जात-पात का रखे न वो बंधंन..!
फिर क्यो करते हम विश्वाघात..!!
घात लगा बैठे हम प्रकृति का करने उपहास..!!!
धन है प्रकृति तो धन्य है मानव..!
वर्ना फिर मिट जायेँगेँ हम अपने आप..!!
घात लगा बैठे हम प्रकृति का करने उपहास..!!!
~~~~~~~> मनीष गौतम "मनु"

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही प्रेरक कृति आदरणीय श्री मनीष जी।
    "
    धन है प्रकृति तो धन्य है मानव..!
    वर्ना फिर मिट जायेँगेँ हम अपने आप..!!
    घात लगा बैठे हम प्रकृति का करने उपहास..!!!
    "
    जय हिन्द

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