सोमवार, 16 जून 2014

बलात्कार से निजात पाने का बहुत ही ठोस एवं समाजोपयोगी हमारा प्रयास कुछ इस प्रकार है

कुछ समय पहले बलात्कार जैसे शब्द सार्वजनिक अर्थात आम कर दिए गए, इसका सर्वाधिक श्रेय फिल्मो को जाता है।

और यदि आज बलात्कार जैसी घटनाएँ आम हो गयीं तो इसका सर्वाधिक श्रेय फिल्मों सहित भारतीय फिल्म सेंसर बोर्ड को भी जाता है।ज

अब सवाल यह उठता है कि सर्वाधिक श्रेय इन्हीं को कैसे जाता है ?

तो बहुत सीधा सा उदहारण है, नए फैसन/अभद्र पहनावों का सर्वाधिक प्रचार फ़िल्में ही करती हैं।

बलात्कार क्या है कैसे किया जाता है अथवा कैसे होता है, इसका सचित्र वर्णन भी फिल्मे ही करती हैं।

फ़िल्में किसी भी कहानी को कहानी के रूप में ना रखकर आजकल गन्दी सीनों के प्रयोग से कि एक पुरुष किसी स्त्री के प्रति कैसे भावुक होता है, इसका सचित्र सन्देश पहुचाती हैं।

फिल्म सेंसर बोर्ड इसके लिए गुनाहगार है क्योंकि वह ऐसी भी फिल्मों को सत्यापित करता है, जिसका समाज पर कुप्रभाव पड़ सकता है।

एक सीधी सी बात है कि कोई भी विवाहित स्त्री-पुरुष अपने शयन कक्ष में क्या करते हैं यह प्रत्येक को पता है, और विवाहित अथवा विवाहिता का यह कर्म, कर्तव्य एवं अधिकार भी है।
लेकिन यही विवाहित अथवा विवाहिता अपना वह कर्म, कर्तव्य एवं अधिकार सरेआम बाज़ार में अथवा चौराहे पर नहीं करते क्योंकि उनपर अथवा प्रत्येक पर सामाजिक प्रतिबन्ध होता है, लेकिन फिल्मों में ऐसा नहीं है।
फिल्मों में तो आजकल शयनकक्ष के कार्यकलापों सचित्र सार्वजनिक कर दिया गया है।

इनसब बातों को सोचकर हमारा हृदय यह प्रश्न करता है कि ऐसे घिनौने कृत्यों पर भारतीय कानून आखिर क्यों नहीं रोक लगाती ?
क्या हमारा कानून इनसब के हाथों बिक चुका है?
क्या हमारी भारत-निति का संचालन इन फिल्मों के अधीन है?

इस समय फिल्म "हेट स्टोरी टू" चर्चे में आयी है, youtube पर हमने इसका ट्रेलर भी देखा।
हमारे समाज के लिए यह बहुत ही आपत्तिजनक सिद्ध होगी ऐसा हमारा अनुमान है।

यदि सेंसर बोर्ड ने इसे हरी झंडी दिखाई तो सिनेमाघरों में यह जरूर आएगी।
हमने तो आजतक शायद ही कोई फिल्म पूरी अथवा सजग होकर देखी हो, परन्तु इस फिल्म को हम जरूर देखेंगे।
और
यदि आवश्यकता हुई तो हम इन सबका बहिष्कार करने हेतु एक नई पार्टी का गठन अवश्य करेंगे।
~~~~~~~~~ आपका शुभचिन्तक अंगिरा प्रसाद मौर्या।
!!*!! वन्दे - मातरम् !!*!!

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