सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

Arvind Kejriwal


जहाँ तक केजरीवाल जी के विषय में मै कहूँगा तो सुनिए!

जैसे हमें शिक्षा दी जाती है की कठिन परिस्थियों में विचलित न हो अपितु हो सके तो उद्देश्य को बिना त्यागे परिस्थितियों से समझौता कर लेना श्रेष्ठतर है।
तदनुसार:-
केजरीवाल जी तो जननायक पद पर थे जबकि हम तो स्वनायक हैं। उन्हें अपने उद्देश्य को बिना त्यागे, कठिन परिस्थिति में समझौता अवश्य करना चाहिए था। परन्तु एक जननायक को जनता के प्रति कर्तव्य-विमुख हो जाना विशेष व्यक्तित्व नहीं हो सकता।
हमें यह प्रेरणा दी जाती है कि हमें अपने कर्तव्यों के प्रति दृढ़ रहना चाहिए।
अतः उनको भी अपनी प्रतिज्ञाओं पर दृढ़ अवश्य रहना चाहिए था।
एवं अपनी जनसेवा की उत्सुकता असीमित होते हुए भी उन्हें सिमित करना चाहिए था।
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जनसेवा, समाजसेवा एवं देशहित के लिए उत्सुक होना उत्तम बात/प्रवृत्ति है किन्तु अति-शीघ्रता कभी-कभी भयावह हो सकती है, जब दुश्मन दशों दिशाओं में उपस्थित हों।
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हमने कल एक प्रश्न भी पूँछा था सभी मित्रों से जिसके जवाब से हमें किसी ने संतुष्ट नहीं किया था
प्रश्न था:-
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उन्हें लगता था की ओ मेरे लायक हैं!

नालायक मै ठहरा तो उनकी किस्मत क्या होगी ?

……जवाब जरूर देना दोस्तों……
मगर………………
……प्यार…………
…………से……
शुभ-रात्री
जय श्री राधेश्याम

अब इसके उत्तर की तरफ हमारा विचार जिससे आपको जवाब पाने में आसानी होगी।
खंडन:-
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केजरीवाल जी ने तो स्थीपा दे दिया किन्तु क्या उन्होंने कभी उस जनता के दिलों में जो ठेस पहुचेगा जो उनके कट्टर समर्थक बन चुके थे। उन्होंने यदि इस तरफ यदि विचार किया होता की जिन सीढियों से चढ़कर हम यहाँ तक आयें हैं, फिर बिना कर्तव्य पालन किये कैसे हम उन्ही सीढियों(कट्टर समर्थक) से वापस किस कदर जा पायेंगे।
बातें तो बहुत कुछ हैं किन्तु लेख बड़ा न हो अतः यहीं विराम देते हैं।
यदि हमारी वाणी से आपको किंचिद ठेस पहुंचा हो तो आप निःसंदेह अपना रोष व्यक्त कर सकते हैं। क्योंकि उस का कारण मैं ही हूँ अर्थात दंड के भागी भी हम ही होंगे।