सोमवार, 20 जुलाई 2015

भूखे का कोई धर्म नहीं होता

भूखे का कोई धर्म नहीं होता ?
क्या यह कथन सही है ?
यह बहुत ही चकित करने वाली स्थित है जिसे भूख कहते हैं।
भूख भी कई प्रकार के होते हैं।
यदि इसे केवल भोजन संगत ही मान लिया जाय तब यह मानवता की परिभाषा पर खरा नहीं उतरता !
तब तो यह जन्तुओं अथवा पशुओं वाली परिभाषा हो जाती है।
इंसान किसे कहते हैं ? ये तो हमें ज्ञात नहीं !
किन्तु,
"इस पृथ्वी पर मान-सम्मान हेतु जो अवतरित हुआ है अथवा जिसका जीवन मात्र मान-सम्मान के कार्यों में बीत जाये वही मानव कहलाता है"।
वो जो भिखारी भीख माँगता है क्या वो भूखा नहीं है ?
फिर क्यों कोई तिलकधारी तो कोई जटाधारी तो कोई टोपीधारी तो कोई दाढ़ी वाला होता है ?
फिर क्यों कोई अल्ला के नाम पर और कोई अलख-निरंजन कहता है ?
क्या वो जो मुसलमान विश्वविद्यालयों में पढ़ने जाते हैं उन्हें शिक्षा की भूख नहीं ?
फिर क्यों कोई बुर्का पहनकर तो कोई दाढ़ी और टोपी वाला होता है ?
फिर क्यों कोई विद्यालय परिसर में अथवा विद्यालय के बाहर नमाज पढ़ने जाता है ?
यदि नमाज विद्या से अधिक फलदायी है तो विद्यालय आने का क्या तात्पर्य है !
वो जो हिन्दू विद्यालय जाते हैं वो तो मंगलवार को महावीर उपवास पर छुट्टी नहीं करते !
वो जो ईद मुबारक कहता है वो भी एक मानव है।
वो जो शान्ति और सौहार्द की बात करता है तथा उसकी मर्यादा में रहता है वो भी एक मानव है ।
हम इतने निर्मल और कोमल तथा विमल केवल इसलिए हैं क्योंकि मानवता ही मेरा धर्म है।
किन्तु अब का समय जो कह रहा है उसे भी हमें ध्यान में रखना चाहिए ।
आज एक मानव होने के साथ साथ हिन्दू होना भी आवश्यक हो गया है।
और जो हिंदुत्व को नहीं मानता अथवा विरोध करता है वह हमारा शत्रु है।
जय श्री कृष्ण !