लोग कहते हैं भारत के बुजुर्गों को उनका अधिकार नहीं मिल रहा ।
मैंने तो कब का कह दिया कि भारतीय संस्कृति को अधिकार नहीं मिल रहा !
जी हाँ !
आज जो लोग जवान हैं वे फ़िल्मी संस्कार ओढ़े घूम रहे हैं और जब कल यही लोग पिता-माता बनेंगे तो अपने बच्चों को संस्कार बताएँगे !
बच्चे उनके संस्कार को क्यों मानें ?
वो पड़ोसी चाचा ने तो पिता जी के जवानी की सारी कहानी बतायी।
बुजुर्गों को प्रताड़ित करने का प्रथम कारण यही है।
जो पिता-माता अपने बच्चों को नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं वास्तव में वे कभी नैतिक थे ही नहीं !
ऐसे में यदि कोई अपने पुत्र अथवा बहू को डाँटेगा तो क्रिया की प्रतिक्रिया स्वाभाविक है।
दूसरा कारण,
यह जो फ़िल्म जगत है ये ऐसे-ऐसे संस्कारों की शिक्षा देता है जिसे नादान लोग शीघ्रता से ओढ़ने के आतुर होते हैं और समझदार लोग चिढ़ जाते हैं।
बॉलीवुड वालों का क्या ? उनका तो धंधा है वो अपने धन्धे के लिए बेटी-बहन और माँ नहीं देखते !
नादान और नासमझ कौन होता है ?
युवा और बच्चे !
समझदार और जिम्मेदार कौन होता है ?
अभिभावक और बुजुर्ग, जो कि पूरे जीवन का अनुभव कर चुके होते हैं।
लेकिन फ़िल्म वालों की मानें तो सबसे समझदार नंगी महिला और अधर्मी पुरुष !
अब आपको ये तय करना है कि आप अपने बच्चों से कैसी उम्मीद करते हैं और उसी के आधार पर आपको आजसे ही चलना पड़ेगा !
भारतीय शुभचिन्तक : अंगिरा प्रसाद मौर्य