गुरुवार, 31 जुलाई 2014

महिला जागृति

पुरुषोदय भी जहाँ हुआ था, वहीँ से नारी उदित हुई है।
ममता की पहचान करे जो, जग में क्यूँ वो मुदित हुई है।

पति का ही भगवान यहाँ पर, पत्नी का भगवान नहीं है।
चरणोदक जो भी पत्नी है, जग में उसका मान नहीं है।

जग का तुम इतिहास उठा लो, नारी ही बस दमित हुई है।
ममता की पहचान करे जो, जग में क्यूँ वो मुदित हुई है।

भांति-भांति की नीति है जग में, सबमे नारी ही बस सहमे।
मनोदशा जो डरी हुई है, क्या कर कपड़े क्यूँ कर गहने।

नारी का अस्तित्व ही देखो, भावुकता को उचित हुई है।
ममता की पहचान करे जो, जग में क्यूँ वो मुदित हुई है।

"मौर्य" प्रश्न प्रति नारी को है, पुरुषों के आभारी को है।
तुम्हरी लिपि लहराती क्यूँ नहिं, पुरुषों पर सरदारी को है।

जग से भी सम्बन्ध तुम्हारा, काम ही तुमपे भारी क्यूँ है।
ममता की पहचान करे जो, सबसे पहली नारी क्यूँ है।

अरे नारियों गुप्त हो जाओ, दर्शन तुम्हरी क्रुद्धित हुई है।
ममता की पहचान करे जो, जग में क्यूँ वो मुदित हुई है।
३१/०७/२०१४
       ~~~~~~~~~ अंगिरा प्रसाद मौर्या।

>>>>>>>जय माँ शारदे<<<<<<<

रविवार, 27 जुलाई 2014

सीमाओं पर करो करो भिडंत

सीमाओं पर करो भिडंत,
मानवता क्या कर दो अंत,
शत्रु रहम को चिल्लाये,
फिर भी उनपे रहो ज्वलंत।

सीमाओं के प्रहरी हो तुम,
भारत माँ के शहरी हो तुम,
दहाड़ भरो तो गिरें अनंत,
मानवता क्या कर दो अंत।

तुमको कैसी आज्ञा चाहिए,
तुम तो भारत के हो पहिये,
गर शत्रु नहीं अपनी लिपि में है,
तुरत ही लिपि का कर दो अंत।

अभिमन्यु ने लिपि को नहीं हटाया,
लिपि को गलत शत्रु ठहराया,
जिसने लिपि को धारण कर ली,
उसका देखो हुआ है अंत।

अर्जुन की जब जीत हुई थी,
लिपि से ना कोई प्रीत हुई थी,
मौका पाया कर दिया अंत।
सीमाओं पर करो भिडंत।

धर्म अधर्म पे भारी होता,
धर्म सदा हितकारी होता,
लेकिन लोहा ही लोहा का,
करता रहा सदा से अंत।
सीमाओं पर करो भिडंत,
मानवता क्या कर दो अंत।
२७/०७/२०१४
~~~~~~~~~ अंगिरा प्रसाद मौर्या।

!!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!

जय हिन्द

*********
भारत के प्रहरी हम हैं, हमे नहीं आज्ञा अब चहिए,
आरत के शहरी हम हैं, हमें नहीं संज्ञा अब चाहिए।~~~ APM
*********

-: love जेहाद :-

लव जेहाद का शाब्दिक अर्थ "धर्मान्तरण हेतु प्रेम करना है" ।
जबकि इसका अक्षरसह अथवा सकारात्मक अर्थ धर्म हेतु प्रेम होना चाहिए, जो आधुनिक परिवेश में मानों लुप्त हो गया है।
"जेहाद" एक उर्दू शब्द है जिसका तात्पर्य धर्म से है। परन्तु आज के परिवेश में इसकी धारणा और अवधारणा दोनों परिवर्तित कर दी गयी हैं, अपने आस पास निरिक्षण कर आप इस तत्व को स्वयं भी समझ सकते हैं।

हमारा मूल विषय "लव जेहाद" का प्रतिकार है, इसे प्रेम विवाह पर प्रहार न मानें तो ही विचार नियत मार्गों द्वारा आपके मष्तिष्क और परमष्तिष्क में प्रवेश कर सकता है।
जय श्री कृष्ण !

इसका प्रतिकार करने हेतु सर्वप्रथम अपने भाषा को परिपक्व करने की आवश्यकता है, अर्थात- उसमे से अपशिष्ट पदार्थों एवं तत्वों को निकाल कूड़ेदान में फेंकने की आवश्यकता है।
पुनः सम्पूर्ण हिन्दू समाज को अपनी जनसंख्या वृद्धि हेतु कड़े निर्णय करने की आवश्यकता है। कम से कम अपने लिए नहीं तो देश के लिए, देश के लिए नहीं तो सृष्टि के लिए आवश्यक है अन्यथा इस जगत से मानवों का पतन सम्भव है।

-: भाषा :-
जिस प्रकार सभी अस्त्रों-शस्त्रों से सुसज्जित होना परम आवश्यक है परन्तु उन्हीं अस्त्रों का उपयोग अपने परिजनों अथवा देश की प्रजा पर करना वर्ज्य है, ठीक उसी प्रकार यदि आप संसार की समस्त भाषाओँ को जानते हैं अथवा जानने का प्रयास करते हैं तो उत्तम नहीं अति उत्तम है किन्तु अपने परिवेश में उनकी छाप छोड़ना अथवा वक्तव्यों में मातृभाषा को छोड़ अधिकतर दूसरी भाषाओँ का उपयोग हमारी संस्कृति(राष्ट्रीय चरित्र) एवं भविष्य के लिए दुर्गति का कारण अथवा घातक है।

भाषाएँ जानना विद्या है, कलाएँ जानना विद्या है और इन्हीं विद्याओं के संयोग से ज्ञान का निर्माण हुआ है, अथवा ऐसा भी कह सकते हैं की विद्याएँ ज्ञान के अंतर्गत अथवा इसी की शाखाएँ या प्रकार हैं। इन वक्तव्यों को एक ही सुर में सभी शिक्षाविद अथवा शिक्षक तुरंत स्वीकार कर लेंगे।
किन्तु हमें पीड़ा तब होती है जब विद्याओं के उपयोग करने का सिद्धांत आधुनिक ज्ञान के अंतर्गत आने के बजाय उसके अंतर में धकेल दिया गया है।

भाषाएँ ही व्यक्ति के वर्ग और चरित्र का प्रमाण हैं। अतः विश्व-श्रेष्ठ हिन्दी भाषा को परिपक्व बनाने की आज महती आवश्यकता है।
।।ॐ।। हम आपसे सहयोग हेतु प्रार्थना करते हैं।।ॐ।।
जय श्री कृष्ण !

-: जनसंख्या वृद्धि :-
यदि हिन्दुओं ने अपनी जनसंख्या वृद्धि नहीं की तो भविष्य में कोई जान ही नहीं पायेगा कि मानव कौन है ?
मानवता क्या है ?
मानव के गुणधर्म क्या हैं ?
यदि आप कल्पना करेंगे तो पाएंगे कि कल केवल आदमी बचेगा ! कल केवल इंसान बचेगा ! जो इंसानियत के नाम पर रोज हैवानियत का खेल करते मिलेंगे।

वास्तव में जो लोग स्वयं को हिन्दी भाषी कहते हैं उन्हें "आदमी" और "इंसान" जैसे शब्दों से दूर रहने की कतिपय आवश्यकता है। विशेषतः विशेष व्यक्तियों के लिए ऐसे शब्द वर्जित ही होने चाहिए।
कारण:-
हमारी हिन्दी शब्दावली के नीति नियमों के अनुसार दूसरे भाषाओं के सभी शब्दों का स्पष्ट अर्थ नहीं निकलता, क्योंकि दूसरी भाषाएँ वैज्ञानिक भाषा न होकर रटंत अथवा बलपूर्वक विद्यमान हैं।

जैसे :- आदमी और मनुष्य :-
आदमी= आद+मी अथवा आदम+ई। इसका कोई अर्थ अथवा तात्पर्य स्पष्ट नहीं हो सकता।
तथा
मनुष्य= मनु+अष्य। मनु अर्थात जगत का पहला व्यक्ति, अष्य का आशय आने से और अर्थ जन्म लेने से है। अर्थात मनु से जन्म लेने वालों को मनुष्य कहते हैं।

इसी प्रकार:- इंसान और मानव :-
इंसान = इन+सान। अब आप अर्थ निकालने जायेंगे तो पता चलेगा कि क्या सान किसको सान किसकी सान और कैसी सान।
परन्तु,
मानव= मान+अव। अर्थात मान-सम्मान हेतु जो अवतरित हुआ है उसे मानव कहते हैं।
अथवा
सम्मान ही जिसका आधार हो वही मानव है।
इसी प्रकार मानवता, अर्थात जिन कर्मों के करने से अनादि काल तक व्यक्ति की आलोचना ना की जा सके वही मानवता के कर्म अथवा गुणधर्म हैं।
*********

लव जेहाद को लेकर राजनितिक गतिविधि :-

राजनितिक गतिविधि तो आज किसी से नहीं छुपी है इसलिए कम शब्दों में निपटारा करने का अवश्य प्रयास करेंगे।
इस गंभीर तत्व को लेकर हमे अखिलेश यादव की बात बहुत ही हास्यास्पद और गंभीर लगी।
हास्यास्पद इसलिए लगी क्योंकि अखिलेश जनता नहीं जननायक हैं । यदि एक मुख्यमंत्री इस प्रकार बात करता है तो आप उसकी मानसिकता समझ सकते हैं।
गंभीर इसलिए लगा क्योंकि जो अखिलेश ने कहा वह सही कहा और हम उनका समर्थन करते हैं। हम सहमत केवल इसलिए नहीं हैं क्योंकि अखिलेश की यह प्रतिक्रिया लव जेहाद के लिए अनुकूल नहीं।

अखिलेश ही नहीं राम को मानने वाला और प्रत्येक युवा बुद्धिजीवी व्यक्ति हेमामालिनी पर गलत टिपण्णी करे तो भी उचित है। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी एक ओर राम और कृष्ण का अनुशरण करती है और दूसरी ओर इसके कृत्य श्री राम के चरित्र और उपदेशों का निन्दा करते हैं।
भगवान कहे जाने वाले श्री राम जी ने एक धोबी के अप्रत्यक्ष आरोप पर अपनी पत्नी सीता जी का त्याग कर दिया, जबकि राम राम कहने वाली भारतीय जनता पार्टी किसको अपना टिकट दे देगी इसका कोई नापतौल अथवा सिद्धांत नहीं है। चंद पैसों के लिए फिल्मों में नाचने वाली हेमामालिनी भाजपा की सांसद हैं, इससे आप भाजपा के चरित्र का अनुमान लगा सकते हैं।
*********

मूल विषय लव जेहाद है। और इसका प्रतिकार करना अति आवश्यक है। यदि भाजपा इसे समाप्त करना चाहती है तो उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार आना निश्चित है। भाजपा से अनुरोध है कि अपनी पार्टी/दल में बहिष्कार करने योग्य तत्वों का समावेश न करे, अन्यथा सबको ज्ञात है कि परिवर्तन ही संसार का नियम है। लव जेहाद केवल उत्तर प्रदेश का मामला नहीं है यह सम्पूर्ण मानवजाति को आघात है। इस मामले के आरोपियों को तुरंत ही मृत्यु-दान देने से कदापि न चूकें /-
www.facebook.com/merelekh

आपका शुभचिन्तक ___ अंगिरा प्रसाद मौर्या।

!!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!

शनिवार, 26 जुलाई 2014

कारगिल युद्ध के बलिदानियों को कोटि-कोटि नमन !

२६ जुलाई १९९९ अर्थात आज के ही दिनांक में हमने कारगिल विजय प्राप्त कर ली थी। विजय दृढ़ विश्वाश से प्राप्त होता है। सेनाएँ अपने प्राणों की बलि चढ़ाने को तैयार थीं लेकिन पराजय उन्हें स्वीकार नहीं था। वे अपने दृढ़ विश्वास के साथ माँ भारती की रक्षा के लिए अंगारों में कूद पड़े। जय हिन्द की हुंकार करते हुए उन्होंने शत्रुओं को कुचल डाला। वन्दे-मातरम सुनते ही शत्रुओं के हाथ काँपने लगते थे। बहुत से वीरों ने माँ भारती एवं उनके अनन्य पुत्रों के हित हेतु स्वयं का बलिदान कर दिया।

वे वीर भी ऐसे वीर थे कि रक्त लपेटे हुए अंतिम साँस लेने तक वन्दे-मातरम कहते रहे। भारत माँ को सुरक्षित देख उन्हें अस्रु अथवा रोदन नहीं आया। वे हँसते-हँसते बलिदान को प्राप्त हो गए। ऐसे वीरों को स्मरण कर हमे नमन करना चाहिए और हृदय को प्रेरणा देते हुए उसे और भी कड़ा कर लेना चाहिए, भविष्य के लिए।
ऐसे वीरों की वीरगति पर किसी भी भारतीय को अस्रु पूरित अथवा रोना नहीं चाहिए, इससे वीरों का अपमान होता है। उन्होंने अपनी बलि हमे रोने के लिए नहीं हँसने के लिए दी है।

*********

वीरों तुम्हें नमन करता हूँ,
चेत तुम्हें ही गगन भरता हूँ,
बलि को नहीं सहन करता हूँ,
मार्ग तुम्हारे नित चलता हूँ।

राष्ट्र-पूज्य के अधिकारी तुम,
राष्ट्र-ध्वजा के सहकारी तुम,
तुम ही भारत अधिकारी हो,
अनुपस्थिति-रुदन करता हूँ।

तुमने हम को खुशी दिया है,
हम तुमको क्या दे पाएँगे,
और नहीं कुछ मेरे बस में,
तुम्हें सतत नमन करता हूँ।

फिर आओ तुम वो विश्वासी,
साथ चलें हम भारतवासी,
पाक औ चीन ख़तम करना है,
पुनः उपज दमन करना है।

हमे नहीं एक क्षण की चिंता,
भारत-हृदय हमे बनना है,
फिर आओ तुम वो विश्वासी,
पुनः उपज दमन करना है।

"मौर्य" तुम्हारे साथ चलेंगे,
पहले अपने प्राण तजेंगे,
ऋण पूरा हमको करना है,
भारत-हृदय हमे बनना है।

यादों का मैं खनन करता हूँ,
अपवादों का दहन करता हूँ,
हमें सुरक्षित करने वालों,
तुम्हें सतत नमन करता हूँ,

नहीं कलम रोता है मेरा,
गर्व सदा अनुभव करता है,
भारतवीर कथाएँ लिखकर,
"मौर्य" सदा हँसकर रहता है।

देखा जग में राज्य बहुत मैं,
भारत जैसा राज्य नहीं है,
देश को अपनी माता कहते,
कहीं पे ऐसा साज्य नहीं है।

तुम्हें हृदय में मैं रखता हूँ,
सबमे तुम्हें चयन करता हूँ,
भारत माँ के वो रखवालों,
तुम्हें सतत नमन करता हूँ।
२६/०७/२०१४
   ~~~~~~~~~ अंगिरा प्रसाद मौर्या ।

!!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!

शुक्रवार, 25 जुलाई 2014

कुत्ते

कुत्ते तो कुत्ते ही होते हैं, परन्तु इनमे भी दो प्रकार होते हैं:-

१. बहादुर अथवा सहनशील
२. डरपोक अथवा भौंकू

१. बहादुर कुत्ते :- यह एक विशेष प्रकार के कुत्ते होते हैं। यह गरजते ज्यादा हैं और भौकते कम हैं। इनकी वफादारी पर निबन्ध भी लिखे जाते हैं। यह कभी काटते नहीं पटक-पटक के मारते हैं। कुत्तों को इन्हीं से ख्याति भी प्राप्त है।
पर,
२. डरपोक अथवा भौंकू :- ये तो बिलकुल ही भ्रमित होते हैं। इन्हें गर्जना मालूम ही नहीं। ये सिर्फ भौकते हैं कि भौंकते ही रहते हैं, ये स्पर्धा में बहुत जाते हैं, और हारते ज्यादा हैं। कभी कोई कमजोर समूह मिलता है तभी ये जीत पाते हैं। यदि ये हारें नहीं तो इनका भौंकना बंद हो जायेगा, जो कि इनको बहुत ही प्रिय है। इनमे काटक और मारक क्षमता दोनों का ही अभाव होता है, जब किसी बहुत ही कमजोर को पाएंगे जो इनकी मात्रा में आधा के बराबर हो, तभी यह उसके सामने भौंकने की हिम्मत जुटा पाते हैं। अन्यथा यह छिपकर ही भौंकते हैं। कुत्ता प्रजाति को इन्हीं से व्याधि भी प्राप्त है।
                 ।। इति कुत्तम ।।
                       *******
विशेष प्रार्थना:- कृपया कुत्तों के पहले अक्षर से किसी पार्टी अथवा दल की तुलना न करें /-
*********
यदि आप शेयर करना चाहते हैं तो हमारी पूर्ण सहमति एवं अनुमति है
~~~~~~~~~APM

रविवार, 20 जुलाई 2014

भारत बनाम शिक्षा

कट्टर दुश्मन थे रोगों के,
आज वही बीमार बने हैं,
हमने जग को शिक्षा क्या दी,
आज हम्हीं दीवार बने हैं।

डॉक्टर यहाँ उपाधि बड़ी है,
पंडित मानों व्याधि पड़ी है,
वैद्यालय अब मेडिकल होता,
पतन यहीं से बड़ी कड़ी है।

सुना है पंडित जाति है कोई,
दिन में भी रहते हैं सोई,
शिक्षा बस अधिकार है उसका,
पुत्र ही उनका पंडित होई।

शिक्षक देखो बड़े निराले,
स्वेत है बाहर अंतर काले,
अंग्रजों की माला जपते,
खोज पे उनके लगे हैं ताले।

कैसे भारत कहूँ अवस्था,
प्रचलित है जो गैर व्यवस्था,
तुच्छ जहाँ में सोच है जिनकी,
वृद्ध नहीं वो युवावस्था।

"मौर्य" उन्होंने ने ममता बेचा,
हम भी तो इज्जत ही बेचे,
मॉम औ माँ में कहाँ है अंतर,
धन-दौलत का बड़ा ये पेसा।

धन निर्धारित नहीं है जीवन,
जीवन ये निर्धारित करता,
यही कृष्ण की कौतुक बातें,
"मौर्य" अभी तक नहीं समझता।
   ~~~ जय श्री कृष्ण ~~~
१९/०७/२०१४
             ~~~ अंगिरा प्रसाद मौर्या।

!!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!

मंगलवार, 15 जुलाई 2014

सावधान जेहादियों !!!!!! धार्मिक तो मैं भी हूँ !

कोई जले न जले, पर मैं जलता हूँ,
कोई चले न चले, पर मैं चलता हूँ,
सूरज ढले न ढले,पर मैं ढलता हूँ,
रात थमे न थमे, पर मै निकलता हूँ।

कोई जमे न जमे, पर मैं जमता हूँ,
कोई रमे न रमे, पर मैं रमता हूँ,
लोग कहें न कहें, पर मैं कहता हूँ,
चंद व्यंग ही सही, पर मैं सहता हूँ।

दरिया बहे न बहे, पर मैं बहता हूँ,
माता के वचनों पर, स्थिर मैं रहता हूँ,
सावधान जेहादियों ! संकल्प ले कहता हूँ!
किसी कटघरे में नहीं, बस गोद में रहता हूँ।

कोई रहे न रहे, पर मैं रहता हूँ,
प्रण भी करता हूँ, प्राण भी हरता हूँ,
मैं भारत हूँ, "मौर्य" भरता हूँ,
मैं हिन्द हूँ ! मैं शेर हूँ ! नहीं डरता हूँ।

     ~~~ अंगिरा प्रसाद मौर्या।

                *********
"मौर्य" यहाँ हुंकार भरे जब, खून की नदियाँ बह जाएँगी।
नापाक गुटों कश्मीर-विरोधी, बहुएँ-विधवा हो जाएँगी।
~~~~~~~~~APM

!!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!

१५/०७/२०१४

रविवार, 13 जुलाई 2014

-:महिलाओं का अधिकार:-

लोग कहते हैं महिलाओं को अधिकार नहीं मिल रहा है उनको भी अधिकार मिलना चाहिए।
"
किन्तु मैं कहता हूँ कि पुरुषों को उनका अधिकार नहीं मिल रहा है उन्हें क्यूँ इस अधिकार से वंचित रखा जाता है।
*********

महिलाओं को अधिकार मिलना चाहिए, जब यह बात कोई पुरुष अथवा राजनेता कहता है तो निश्चय ही समझ लेना चाहिए की वह लोक-लुभावानता के लिए ही कहता है अथवा स्वयं को पूज्य बताने हेतु ही कहता है, अब इनसे आप सदैव ही बचेंगे ऐसी हम अपेक्षा रखते हैं।

वास्तव में महिलाओं का अधिकार वही चाहता है जो सबसे पहले महिलाओं का सम्मान करता है तथा अपने परिवार में और समाज में उनको अधिकार देने के लिए नतमस्तक हो। लच्छेदार बातों से तो व्यापार ही होता है प्यार कभी नहीं हो सकता।
*********

कल रविवार था। यह कल की ही बात है। मैं मुंबई के उपनगरीय मार्ग पश्चिम रेलवे की सामान्य रेल से यात्रा कर रहा था। यात्रा के दौरान मैंने देखा कि सामान्य डब्बे में जिसमे मैं बैठा हुआ था उसी में एक बहुत बड़ा परिवार सवार हुआ जबकि उसमे भीड़ इतनी थी कि यदि मैं उस समय उस रेल स्थानक अथवा ठिकाने पर होता तो मैं अकेला होते हुए भी उस रेल को कदापि न पकड़ता। और यहाँ की उपनगरीय रेल में महिलाओं के लिए भी अलग से डब्बे होते है। कुछ रेल तो केवल महिलाओं के लिए ही होते हैं उसमे पुरुषों का जाना वर्जित होता है।

लेकिन वह पूरा का पूरा परिवार उसी भीड़ में ही चढ़ा। उसमे चार युवतियाँ और एक औरत, दो अधेड़ तथा एक युवक शामिल थे। सब के सब महिलाएँ अभद्र अथवा पश्चिमी वस्त्र पहनी थी। उनमे जो औरत अथवा उनसब की माँ थी वो सबसे अभद्र वस्त्रों को धारण किये हुए थी।

एक दूसरे को रगड़ते-रगड़ते वे लोग मेरे पास ही आ पहुंचे। तब तक मेरे किनारे से एक युवक उठ पड़ा और एक युवती पास में बैठी। मैं भी खड़ा हो जाता यदि उस रेल में महिला-विशेष डब्बा ना होता तो।
*********

अब जरा सोचिये !
उन महिलाओं की रगड़ से कुछ को आनंद आया होगा और कुछ को आश्चर्य हुआ होगा और कुछ को परेशानी। परेशानी उसको ही हुई होगी जो महिलाओं की सत्ता को मानता होगा और वास्तव में उसके घर में महिलाएँ होंगी तथा वह महिलाओं से वात्सल्य भाव रखता होगा।

किन्तु इस पर ध्यान देने के लिए कोई भी राजनेता आगे नहीं आयेंगे और यदि कोई एक आगे आता भी है तो दस मिलकर उसे गलत बताने को तुरंत तैयार हो जायेंगे।

ऐसे में लोग कहते हैं की बलात्कार की संख्या बढ़ी है यह पूरे समाज को शर्मशार कर रही है। क्या उस परिवार के युवक ये नहीं बता सकते थे कि महिलाओं को उनके डब्बे में ही बैठना चाहिए। और यदि वे पुरुष महिलाओं का आदर करते थे तो क्या महिलाओं को नहीं यह सूझना चाहिए कि उन्हें उचित डब्बे में ही सवार होना चाहिए। लेकिन नहीं ! यदि वह ऐसा कर देंगी तो उन्हें यह कैसे ज्ञात होगा कि उनके प्रति कितने लोग आकर्षित होते हैं।
*********

यहाँ पर तो रेलवे में ही नहीं अपितु परिवहनों(बसों) में भी महिला विशेष बैठक होता है। ऐसे में महिलाओं को सामान्य बैठक पर बैठना कितना उचित है ? और यदि पुरुष उनकी बैठक पर बैठते हैं तो उनको खड़ा कर देना कितना उचित है? रेल में सामान्य डब्बों में महिलाओं को वर्जित क्यों नहीं किया जाता ?
क्योंकि यदि ऐसा होगा तो महिलाओं के प्रति शोषण और बलात्कार जैसी भावनाओं का जन्म/उदय कैसे होगा ?
*********

ऐसे में तो हमारा एक ही सुझाव है कि अब महिलाओं को अपने अधिकार हेतु नहीं अपितु पुरुषों के अधिकार हेतु लड़ने की आवश्यकता है अथवा लड़ना चाहिए। नारी का भी कोई अस्तित्व है यह बताना चाहिए। आखिर कब तक पुरुषों के उपकार में दबी रहेंगी। कब तक श्रीमती लिख के उनका नाम उड़ा के किसी और का नाम लिखा जायेगा।
वैसे जहाँ तक अस्तित्व की बात है इसपर किसी अगले लेख में बात करेंगे !

  !!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!

        ~~~ अंगिरा प्रसाद मौर्या ।

मंगलवार, 1 जुलाई 2014

हमारी संस्कृति पर चोट कभी भी युवा सोच नहीं हो सकता । यदि संबंधों का नीतिगत उपयोग किया जाय तो वह शोक नहीं हो सकता।

युवाओं की सोच :-

युवाओं की सोच उनके बचपन की सीख और वर्तमान वातावरण पर निर्भर करता है। यदि एक परिवार का मुखिया अपने युवाओं की सोच को सकारात्मक सोच अथवा कोई नई दिशा देना चाहता है तो शायद सम्भव हो सकता है।
परन्तु,
यदि एक गाँव का मुखिया गाँव के सभी युवाओं को कोई नई दिशा देना चाहे तो पुर्णतः सम्भव हो जायेगा।
इसी तरह यदि किसी देश का मुखिया भी युवाओं को सकारात्मक अथवा कोई नई दिशा देना चाहे तो वह भी सम्भव है।

आखिर कैसे संभव है? :-

इस पर विभिन्न व्यक्तियों के विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं जिनको एकीकृत करके लागू करने की आवश्यकता होती है।

जिसमे से हमारे दृष्टिकोण की कुछ झलक इस प्रकार है-

शिशु को वही सिक्षा दिए जाँय जिसे वह बुड्ढे होने तक भी न भूले ।

शिक्षा व्यवस्था पर सकारात्मकता लाने हेतु हर वर्ष एक राष्ट्रीय और एक अन्तर्राष्ट्रीय जाँच दल कार्यरत होने चाहिए।

उच्चतर शिक्षा से ज्यादा केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार हो उसे प्रथम शिक्षा-आधार(बेसिक) पर ज्यादा मजबूत होना चाहिए ।

सभी अध्यापकों को अपने कर्तव्य/जिम्मेदारी में पूर्णता लाने का सदैव प्रयास करना चाहिए, क्योंकि कोई भी चीज कभी पूर्ण नहीं होता अपितु परिवर्तित होते रहता है। जैसे लक्ष्य पूर्ण होने के पहले ही या तो वह बढ़ जाता है अथवा उसकी दिशा बदल जाती है।

इत्यादि ।
*********

हमारी संस्कृति पर चोट:-

जैसा कि स्वामी स्वरूपानंद जी भी इसपर टिपण्णी कर चुके हैं । जिन्हें समाज की पूर्ण सहमति की विशेष आवश्यकता है। हम तो पहले से ही सहमत हैं।
क्योंकि,
किसी को छोटा बताकर स्वयं को बड़ा बताना बिलकुल गलत है।
परन्तु,
रोज स्नान कर मैल को गन्दा बताना स्वयं को स्वच्छ समझना और फ़र्स पर जमी हुई धूल अथवा कीचड़ को साफ़ करने हेतु धूल को वहाँ से हटाना इत्यादि बिलकुल सही है।

जहाँ तक चोट पहुँचाने वालों की बात है तो ये सब अंग्रेजों का षडयंत्र ही है जिसपर संदेह नहीं किया जा सकता। और उन्हें सफल अथवा असफल बनाने में हम सभी भारतवासी जिम्मेदार हैं, जिसका सबसे ज्यादा श्रेय श्रेष्ठों और कोंग्रेस को जाता है। यदि आज की सरकार चाहे तो वह अपने देश के सभी युवाओं को सकारात्मक बना सकती है। किन्तु यह उतना सरल नहीं है कि आज कच्चा केला काट लाये उसमे रसायन लगा दिए और रातभर में पक जायेगा। इसके लिए बहुत संघर्ष करना पड़ेगा।
*********

विदेशियों अथवा अंग्रेजों को हमसे आखिर क्या शत्रुता है और क्यों जारी करते हैं षडयंत्र :-

आज तो हमारे जैसे लोगों के पास दो जून की रोटी इकट्ठे करने के पश्चात् शायद समय ही नहीं बचता अतः हम खोज क्या करेंगे !
किन्तु आप पाएंगे कि ये अंग्रेज खोज करने में सबसे आगे हैं अविष्कार करने में सबसे आगे हैं।
आखिर कारण क्या है ?
ये वही आविष्कारक और खोजी हैं जिनके जन्मदाताओं ने हमारे धर्मग्रंथों एवं शास्त्रों का पहले अध्ययन किया था और फिर उन्ही निष्कर्षों के सहारे, वही उत्तर्माला देखकर ही प्रयोग करना शुरू किया था। और परिणाम सत प्रतिसत सत्य को परिभाषित करता था।
उन्हें आज भी इस बात का डर है कि कहीं इन भारतीयों को हमारी असलियत का पता न चल जाय। और भारत की जगह नकलची की उपाधि उन्हें न मिल जाय। यही एक कारण है कि हमारी और उनकी शत्रुता है।
*********

तो आखिर हम लोग ही अपने को आधार मानकर क्यों नहीं कोई नई खोज करते :-

भारत में यह एक बहुत बड़ी विडंबना है कि पांडित्य/पाखंडियों के चलते नालंदा विश्वविद्यालय के संग्रहालय में रखी हुई पुस्तकों को जला दिया गया जिससे यह पुर्णतः स्पष्ट हो पाता कि केवल हम्ही नहीं अपितु सभी सनातनी हैं । पाखंडियों का भय इतना प्रबल था कि पुस्तकें जो पीतल, तांबे, काँसे आदि की थीं कुछ महीनों तक जलता रहा किन्तु उसे बुझाने तक की साहस किसी ने नहीं की।

इसी कारण आज हमारे भारत में तमाम विसंगतियों एवं मतभेदों का जन्म हो गया। कोई बुद्ध को बड़ा बता रहा है तो कोई राम को तो कोई साईं को। अब इनसब मतभेदों के चलते हमारे बुद्धिजीवी अथवा स्वदेशी वैज्ञानिक ग्रंथों की तरफ विशेष ध्यान नहीं देते । और प्रत्येक धार्मिक बात को हल्के में ही लेते हैं।

और आज जो कहते हैं कि हम सनातनी हैं और उनके पास प्रमाण भी है तो,
हम उनसे एक प्रश्न भी करना चाहेंगे कि यदि यह सृष्टि ब्रह्मा द्वारा उदित हुई है तो ये जो अंग्रेज हैं, ये जो मुसलमान हैं इत्यादि में से कौन-कौन ब्रह्मा के किन-किन पुत्रों के परिवारों में से हैं? एवं किसी भी भाषा का निर्माण सर्वप्रथम किसने किया ? यदि सनातनी इतिहास में इसका उत्तर न हो तो हमारे अनुसार वह पाखंडियों एवं अंग्रेजों के षडयंत्र से यह भी एक काल्पनिक इतिहास है जो सनातन इतिहास के आधार पर बनाया गया है।
क्योंकि इसी इतिहास के अनुसार ही मैं ये घोषित करता हूँ कि हमारे भारत में मुसलमान भगवान श्री कृष्ण के समय में ही आये थे। अतः इसके आधार पर हमारा यह प्रश्न बनता ही है।
अब,
विषय की सीमा के काफी परे आ गए अतः अब विषय की ओर चलते हैं-----------....!
*********

संबंध:-

हमारे अनुसार संबंध प्रायः दो प्रकार के होते हैं-
१. मर्यादित
२. अमर्यादित
अब विभिन्न दिशाओं में इनके भी बहुत से प्रकार हैं। लेकिन पाठकों को ध्यान में रखते हुए इतना ही काफी है।

१.मर्यादित :-
ये वो संबंध हैं जो विशेष निति द्वारा नीतिगत होते हैं और प्रत्येक के अपने-अपने मायने/अर्थ/आशय हैं तथा राम एवं रामायण इन संबंधों के लिए मार्गदर्शक एवं इसके साक्षी भी हैं।

२. अमर्यादित:-
बात कहने लायक नहीं है लेकिन नहीं कहूँगा तो स्पष्ट भी नहीं होगा।
जैसे - वेश्याओं से संबंध रखना,
यदि प्रत्यक्ष नियंत्रक न हो तो मर्यादा के बाहर होकर किसी बुरी आदत से संबंध रखना,  जो कि किसी विशेष कारण से उदित हो उसका हर समय उपयोग करना, जबकि वह विशेष आवश्यकता हेतु ही है। इत्यादि।
कुल मिलाकर जो मर्यादा के विरुद्ध हो वही अमर्यादित है जिसे आज अवैध कहा जाता जबकि सभी के मायने सही नहीं हैं क्योंकि कुछ चीजें वैध होना चाहिए वो अवैध हैं और कुछ चीजें अवैध होना चाहिए तो वैध हैं।
*********

live in relationship(संबंध में रहना):-

हमें तो इसके बारे में ज्ञात नहीं था लेकिन श्री कश्यप जी के विशलेषण द्वारा ज्ञात हुआ कि इसे एक चलन अथवा प्रचलन के आधार पर आजकल माना जा रहा है। इस जानकारी हेतु मैं आदरणीय राजेश जी को बहुत आभार व्यक्त करता हूँ।

जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि ये अंग्रेज वाले हमारी ही नकल करते हैं और किये भी हैं। और इसके पहले के ब्लॉग में हम यह भी बता चुके हैं कि उनके पास अपना कोई भी नियम और सिद्धांत नहीं है।

आज हमारी कृष्णलीला पूरे विश्व में पढ़ी जाती है और ये अंग्रेज हमारे ग्रंथों को पहले से ही पढ़ने-जानने के आतुर हैं। इसी के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के रासलीला के अंतर्गत ही अंग्रेजों ने एवं हमारी फ़िल्मी दुनियाँ ने ऐसे चलनों को गठित किया है।
जबकि वह हमारे श्याम के गूढ़ को न जानते हुए उनका अनुशरण करने के बजाय अनुकरण करते हैं। अर्थात रास करके ही स्वयं को कृष्ण घोषित करना चाहते हैं। और कुछ अंग्रेजों तथा दुर्बुद्धि मानवों का ऐसा भी मत है कि प्रेम के इस पहलू से जो गुजरेगा वही शक्तिमान बन सकता है।
परन्तु ऐसा बिलकुल नहीं है। श्री कृष्ण भगवान हैं और हम साधारण मानव। यदि यह बात जो स्वीकार नहीं करता तो श्री कृष्ण ने पूरे गोवर्धन पर्वत को उठाकर एक ही ऊँगली पर रोक रखा था। और कोई अपने दोनों हाथों से एक टीला ही अपने सर पे ही रखकर दिखाए ? जब वे मथुरा गए तो अपने लक्ष्य पर दृढ़ रहते हुए कभी भी राधा से मिलने नहीं आये जबकि सबकुछ उनके वस में था लेकिन बस राधा को याद ही किये। आज तो लोग अपने झूठे प्यार के चलते अपने पिता को ही मार देते हैं जबकि पिता ही हमारे लक्ष्य के उद्घोषक होते हैं। भगवान के पास सबकुछ होते हुए कुलगुरु मुनि गर्ग की आज्ञानुसार गुरु परंपरा को बनाये रखने हेतु वे मथुरा से नंगे पाँव भिक्षा मांगते हुए मुनि सांदीपनी के आश्रम उज्जैन तक गए और गुरु की आज्ञानुसार 65 दिनों तक भिक्षा मांगे और लकडहार की तरह लकड़ियाँ भी तोड़े और ६५ विद्याओं में अद्वितीय स्थान प्राप्त किये। और आज यदि गुरु किसी गलती पर डांट दे तो लोग गुरु को तो उड़ा ही देंगे और परिवार वालों सहित घर भी फूँक जला देंगे।
क्यों भाई ????????
यदि अनुकरण ही करना है तो प्रत्येक कार्यों एवं क्रियाओं का अनुकरण करो।
पता नहीं हमारी सरकार ही आजतक कैसी रही कि उसने इसपर कभी विचार ही नहीं किया कि फिल्मों में ये गाने नाच के साथ क्यूँ रखा जाय ? इससे हमारा धार्मिक पतन होगा अथवा उन्नति होगी।
और आज की बागडोर एक स्वदेशी व्यक्ति के भी हाथ में आई है। लेकिन इनका भी अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। कि क्या क्या करेंगे ?

हमें इस (live in relationship) में हमारे परम पूज्य प्रभु की छवि को बिगाड़ने का षड्यंत्र प्रतीत होता है। अतः इसका विरोध करना हमारा कर्तव्य है।

कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि युवाओं की सोच सभ्यता के लिए घातक नहीं हो सकती जिसका साक्षात्कार आप हम से कर सकते हैं क्योंकि मै भी एक युवा ही हूँ।
और "लिव इन रिलेशनशिप" एक ऐसी प्रथा है जिसका प्रचलन यदि पूरे संसार में हो जाय तो पूरे संसार को यह वर्णसंकर बनाने पर प्रतिबद्ध है। वर्णसंकर संताने पूरी तरह नकारात्मक प्रवृत्ति के ही होते हैं जिनके लिए कोई भी रिश्ता कोई मायने नहीं रखता। केवल उनका शरीर और थोड़ी सी बुद्धि ही उन्हें मानव कहलवाती है अन्यथा वे पशु के सामान ही होते हैं। और इसी भय से अर्जुन महाभारत का युद्ध भी नहीं करना चाहते थे।
अतः हमे इसे रोकने का पूरा प्रयास अवश्य करना चाहिए।

                   ~~~ अंगिरा प्रसाद मौर्या।

!!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!