बुधवार, 18 जून 2014

खूब बढ़ा है हमारा शिक्षा स्तर

आज के इस युग लगभग 90% युवा साक्षर हैं, लोग कह रहे हैं शिक्षा का स्तर बढ़ गया है।

लेकिन क्या सचमुच बढ़ गया है ?

अरे शिक्षा स्तर के निर्माताओं आप ये क्यूँ नहीं कहते कि कुशिक्षा का स्तर बढ़ा है। आज स्कूलों में विज्ञान की शक्त पढाई होती है, गणित की सक्त पढाई होती है, अंग्रेजी की शक्त पढाई होती है।
लेकिन नैतिक शिक्षा ?????
इसका तो जैसे कोई महत्व ही नहीं रहा। कहने को तो सभी स्कूल और विद्यालय भारतीय हैं ! लेकिन वहाँ पर नैतिक शिक्षा जैसे विषय को मानों लकवा मार गया हो।

आखिर कोई क्यों पढ़ेगा नैतिक शिक्षा उसकी डिग्री किसी नौकरी के लिए आवश्यक भी तो नहीं है। अगर कोई आज के युवकों से नैतिक शिक्षा के विषय के बारे में पूँछ ले तो शायद कितने ऐसे होंगे जिनको ये बहुत नया लगेगा ! वे तो यही कहेंगे कि यह क्या है ?

और यदि विषय दिए भी जाते हैं तो उस पर पढाई नहीं होती और ऐसे विषयों के लिए कोई कड़ाई नहीं होती, बस पुस्तकों की सूची में सिर्फ नाम दर्ज करवा दिया जाता है।

आखिर हमें नीतियों की जरूरत भी कहाँ है जो की आने वाली पीढ़ियों को बताया जाय सिखाया जाय !
हमें तो इन नीतियों का गुलाम बना के इनका पालन करवा दिया जायेगा।
चौरस्ते पर सिग्नल होगा तो दुर्घटना नहीं होगी, वहाँ एक हबलदार होगा जो न जानने वाले को दंड देकर अर्थात कुछ खजाना लेकर हमें नीतियों से परिचित कराएगा।
चप्पे चप्पे पर पुलिस चौकी होगी, जो अपराधियों को दंड देकर यह बताएगी कि क्या करना चाहिए क्या नहीं।
सब जगह अदालत होगी जो अपराधी और निरपराधी का निर्णय करेगी।

क्या हमारे बच्चों में सदविचार, प्रेरणा और बौद्धिक क्षमता के बिना ये सब बनाये गए जाल काफी हैं, क्या बिना बुद्धि के विद्याओं अथवा बल का सदुपयोग हो सकता है ?

कदापि नहीं !

लोग गणित अंग्रेजी और विज्ञान में सौ नहीं लाखों अंक प्राप्त कर लें ! लेकिन बिना नैतिक शिक्षा में सौ अंक प्राप्त किये, ये दुर्घटनाएँ, ये अपराध और बलात्कार जैसा घिनौना अपराध थमने वाला नहीं।

आपका शुभचिन्तक___ अंगिरा प्रसाद मौर्या

!!*!! वन्दे-मातरम् !!*!!

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