शुक्रवार, 20 जून 2014

हमारी उन्नति और पतन के लिए जिम्मेदार हैं हमारे अपने विचार।

आज समाज में बलात्कार जैसे जघन्य अपराध अथवा पूरे देश को शर्मशार कर देने वाले अनैतिक आचार व्याप्त हो रहे हैं तो इसके जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ पुरुष ही कदापि नहीं हो सकते हैं, नारियाँ भी जिम्मेदार हैं और वे भी इसके साक्षी हैं।
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जिस प्रकार से एक हाथ से कभी ताली नहीं बज सकती, उसी प्रकार ऐसे किसी एक वर्ग विशेष द्वारा यह साध्य भी नहीं हो सकता।
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हमारे समाज में कई ऐसे बेशर्म औरतें और मर्द हैं, जिन्हें नियमों एवं सिद्धांतों का ज्ञान का समुचित ज्ञान भी है। लेकिन उन्हें एक नया/अद्भुत ज्ञान प्राप्त है- "बोध से जियो सिद्धांतों से नहीं"। हमारे अनुसार पश्चिम के लोगों के लिए यह ज्ञान बहुत ही लोकप्रिय रहा है। मैं ऐसे मनुष्य-कृत ज्ञान को ज्ञान को निर्मल कभी नहीं मान सकता । और यदि इसे कोई प्रवचनों में प्रयोग करता हो तो बेईमानी/छल समझता हूँ।
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यदि समाज अपना सुनहरा भविष्य चाहता हो तो सबसे पहले ऐसे अताताईयों(स्त्री/पुरुष) को उसके परिवार वालों को खुद दण्डित करना चाहिए, यदि वह परिवार का मुखिया है तो सामाजिक रूप से उसे दण्डित करना चाहिए।
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हमारे समाज में इसे खेल समझकर बहुत लोग ही इसे अंजाम दे रहे हैं। परन्तु जब गेहूँ के साथ घुन भी पिसा जा रहा है तब यह मामला सामने आ रहा है। जब किसी की बेटी अथवा बहन आदि इसके शिकार हो रहे हैं तब उनको यह ज्ञात हो रहा है कि यह अपराध है इसके लिए कड़े कदम उठाने चाहिए।
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और अब यदि जो महिलाएं हमारे इन बातों से असंतुष्ट हैं, उनके लिए हमें खेद है कि मैं उनके सामने खरा न आ सका।
मैं उनको अपनी तरफ से एक सुझाव भी देता हूँ कि यदि उनके आसपास यदि ऐसी कोई घटना घटती है तो उसके लिए रक्षादल(police) को शिकायत पहुँचाने से पहले ही लक्ष्मीबाई का रूप धारण करके कुछ महिलाएँ तुरंत ही दोषी पुरुष की हत्या कर दें !
पुरुषवर्ग खुद-ब-खुद डर जायेगा। और शायद बलात्कार रुक जाए।

आपका शुभचिन्तक -- अंगिरा प्रसाद मौर्या।

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