मंगलवार, 17 जून 2014

हमारा सामाजिक चिंतन

आज इस बात को कौन नहीं स्वीकार करेगा की हमारा भविष्य खतरे में है ?

लगभग सभी स्वीकार कर लेंगे !

लेकिन इससे निजात कैसे पाया जाय इस पर किसी के पास विचार करने का समय ही नहीं है। जहाँ तक मैं देख रहा हूँ, यहाँ पर बच्चों को तो छोड़ ही दो, हमारे समाज के श्रेष्ठ लोग भी अनावश्यक कार्यों में लिप्त हैं।

इनका फिल्मों का बखान करना, क्रिकेट मैचों का बखान करना, मामूली नहीं है। आज का क्रिकेट मैच अथवा खेल संसार व्यापर में व्याप्त है। और इसी तरह समाज का दर्पण दिखाने वाला फिल्म जगत भी आज एक व्यापारी हो चुका है।

ऐसे में हमें इनके वृत्ति पर नहीं अपितु प्रवृत्ति पर ध्यान देने की विशेष आवश्यकता है। लेकिन नहीं, आज के लोगों के लिए प्रवृत्ति नहीं वृत्ति ज्यादा दिलचस्प हो गई है, फिर चाहे वो कैसी भी हो !

हमें आज इनसब को फालतू कहने की आवश्यकता है, हमारे बच्चों का तेजी से इनसब चीजों पर ध्यानाकर्ष्ण हो रहा है, तो इसके लिए सर्वप्रथम हम लोग ही जिम्मेदार हैं, जब हम्हीं इनसब के शिकार रहेंगे तो हमारे बच्चे क्यूँ नहीं।

जरूरत है सभी श्रेष्ठों को एकजुट होकर ज्ञानगंगा में लिप्त होने की, जरूरत है नई पीढ़ी को नव-ओज की घिनौने खोज की नहीं।

हर व्यक्ति को हमारे महापुरुषों का अनुशरण करना चाहिए, उनके जैसा आचरण करना चाहिए, उनके गुणों का बखान करना चाहिए, गुणगान करना चाहिए। क्योंकि आप नई पीढ़ी को जैसी छाया प्रदान करेंगे वैसी ही उसकी प्रवृत्ति होगी। क्योंकि प्रवृत्ति का आशय भी छाया ही है।

शायद हमारी ये बातें भले ही बहुतों को नकारात्मक लग सकती हैं लेकिन बुद्धिजिविवों के लिए ये सदा ही सकारात्मक और सार्थक बातें ही होंगी, इसपर हमारा कोई शक नहीं है।
!!*!! वन्दे-मातरम् !!*!!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें