रविवार, 31 अगस्त 2014

निर्धनता के प्रतिकार का एक ही मार्ग योगी

निर्धनता, जिसे उर्दू में गरीबी कहते हैं।

निर्धन व्यक्ति का कोई जाति धर्म नहीं होता। उसे अपनी आजीविका हेतु किसी का भी दास बनना पड़े स्वीकार्य है।

इसमें भी कई प्रकार के निर्धन होते हैं,
जैसे कोई तन से निर्धन, कोई धन से निर्धन तो कोई ज्ञान से निर्धन। इनमे से सभी अपने अपने परिस्थितियों का सामना आपने अपने आधार से करते हैं जिनमे सहयोगकर्ता का जातिगत निर्धारण नगण्य है।
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आज देखा जाय तो पूरा उत्तर प्रदेश निर्धनता के गड्ढे में गिर चुका है। और इसके कारण कथित धर्मनिरपेक्ष धनवान व्यक्ति ही हैं जिनका धर्म-पतन तो हो गया किन्तु साथ ही साथ लालच भी प्रवेश कर गया। इन लालची व्यक्तियों का लालच आज इतना तीव्र हो गया है कि पैसे के लिए यदि कोई कह दे कि अपना बाप बदल दो तो ये अपने बाप की भी अदला बदली कर लेंगे।

इन कथित धर्मनिरपेक्ष लालचियों ने यह प्रतिज्ञा कर रखा है कि किसी भी प्रकार से पूरे उत्तर प्रदेश को निर्धनता में परिवर्तित करेंगे। और तब सबको भिक्षा देते हुए हम धर्मों पर राजनीति करेंगे।

किन्तु ऐसा कदापि नहीं हो सकता। अभी भी बहुत से धर्मावलम्बी हैं जिनमे योगी आदित्य नाथ भी प्रमुख हैं। आजकल सेकुलरों के आँखों में योगी जी ज्यादा गड़ रहे हैं। योगी जी की धर्मनीति के आगे सेकुलरों की सेकुलरनीति मंद पड़ रही है।

ऐसे में सभी भाइयों बहनों से मेरा आग्रह है कि श्री योगी जी जो कुछ भी कह रहे हैं सब सत्य है। सत्य कड़वा भी होता है इसीलिए अधर्मियों के गले नहीं उतरेगा । और वह तबतक गले नहीं उतर सकता जबतक अधर्मियों का विनाश नहीं कर देता।
ये अधर्मी आपकी मन और बुद्धि को भटकने हेतु कुछ भी पहाड़ा पढ़ा सकते हैं, किन्तु आप भी ध्यान दें कि आप उनके विद्यार्थी नहीं हैं।

एक विशेष नारा, जो सभी सामाजिक नेटवर्कों पर धूम धाम से शेयर किया जाना चाहिए।

सेकुलर हटाओ, योगी लाओ!
सेकुलर हटाओ, योगी लाओ !
सेकुलर हटाओ, योगी लाओ !

भारतीय शुभचिन्तक - अंगिरा प्रसाद मौर्या।

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शनिवार, 30 अगस्त 2014

-: एक गत लेख हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ :-

हमने अपनी गत विवेचना में लव जेहाद अभियुक्त "तारा शहदेव" एवं "रकीबुल हसन" पर प्रकाश डालते हुए उत्तर प्रदेश की वर्तमान सरकार को दोषी बताया था। जिसमे कुछ तथ्यहीनता का समावेश त्रुटी वस हो गया था। इस अपराध हेतु हम अपने सभी पाठकों, स्नेहियों एवं भाइयों-बहनों से क्षमादान का आग्रह व अनुरोध करते हैं।
और मैं आपको आश्वासन देता हूँ कि भविष्य में ऐसी विसंगति नहीं आएगी।

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दोष अथवा तथ्यहीनता :-

हमने तारा शहदेव का पक्ष लेते हुए पूरे प्रकरण पर सुचारू रूप से ना जाँच होने हेतु समाजवादी पार्टी की शिथिलता बताई थी। जबकि राँची उत्तर प्रदेश की सीमा से परे है।
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वन्दे - मातरम !

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भारतीय शुभचिन्तक - अंगिरा प्रसाद मौर्या।

गुरुवार, 28 अगस्त 2014

योगी आदित्यनाथ

-: जो जिस भाषा में समझे, उसे उसी भाषा में समझाने की आवश्यकता है :-

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मैं पूर्ण सहमत हूँ श्री योगी आदित्यनाथ जी के इस वक्तव्य से । ऐसा ही होना चाहिए। बदलते सामाजिक परिस्थितियों में ऐसे ही विचारों की आवश्यकता है।
तभी सुशासन हो सकता है अनुशासन हो सकता है। अन्यथा धर्मनिरपेक्षता अथवा सेकुलरिज्म के नाम पर वोट बैंकिंग करने वाली बहुत पार्टियाँ और बहुत से व्यक्ति हैं। स्वतंत्रता से बहुत साल हो गए परन्तु ये कथित सेकुलर अभी तक सांप्रदायिक घटनाओं पर विराम नहीं लगा सके। अपितु ये घटनाएँ अविराम बढ़ने के ही क्रम में हैं।

गुजरात में लगभग १२वर्ष बीत गए परन्तु अभी तक वहाँ पर कोई सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ।
आखिर क्यों ??????
क्योंकि वहाँ की सरकार और वहाँ की जनता अब सेकुलरिज्म का चोला नहीं पहनती।

पुत्तर प्रदेश की सरकार तो सेकुलर है। लेकिन मात्र कहने के लिए। यदि वहाँ की सरकार धर्मनिरपेक्ष है तो धर्मों के मध्य लड़ाई कैसी ? आजमखान जैसे मुसलमानों की यदि भैंसे बकरियाँ गुम हो जाय तो उसे ढूढने हेतु वह पूरी प्रशाशन एक कर देगी। किन्तु यदि "तारा सहदेव" जैसी किसी युवती के साथ कोई छल करे और पूरी दुनियाँ इस बात को जान जाय तो क्या ! पुत्तर प्रदेश की सरकार के आँखों पर पर्दा पड़ जायेगा। वह इसे हल्के में ही लेगी क्योंकि दुर्व्योहर तो किसी हिन्दू के साथ हुआ है। यह व्योहार किसी मुसलमान के साथ हुआ होता तब वह अपनी धर्मनिरपेक्षता दिखाती।

आरोपी रकीबउल हसन के एक एक आरोप झूठे हो रहे हैं। और सरकार ! देख रही है। वह अभी तक यह भी पता लगाने में असमर्थ है कि हसन के फोन नंबर से कितने संपर्क होते थे ? क्या क्या उसकी योजनाएँ हुआ करती थीं ? किसका किसका मिलीभगत था ?

मेरे देशवाशियों ऐसी जाँच पड़ताल कभी नहीं होगी ! क्योंकि सरकार सेकुलर है।

उत्तर प्रदेश के लिए हमारा तो यही नारा है।
सेकुलरों को हटाओ, आदित्य को लाओ।
और जिस दिन यह हो गया उसी दिन से उत्तर प्रदेश से सांप्रदायिक दंगों का विनाश हो जायेगा। क्योंकि तब सरकार सेकुलर नहीं ! राष्ट्रवादी होगी। धर्मनिरपेक्ष नहीं ! धर्मपरायण होगी।

" जब किसी भी व्यक्ति के स्वधर्म का पतन हो जाता है, तब वोटबैंकिंग हेतु उसे सभी धर्मों का हनन ही सूझता है"। उसकी कोई भी नियत नीति नहीं होती वह कुछ भी कर सकता है। हमारे शब्दों में ऐसे ही व्यक्तियों को धर्मनिरपेक्ष अर्थात सेकुलर कहा गया है।।
।। अंगिरा प्रसाद मौर्या।।

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हम श्री योगी आदित्यनाथ का समर्थन करते है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद हेतु आपका आह्वान एवं माँग करते हैं।

मित्रों आप भी अपनी राय अवश्य दें /-

और यदि आप भी यही चाहते हैं तो शेयर भी करें /-
जनहितार्थ जारी /-
!!*!! वन्दे-मातरम !!*!!

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

आशा और निराशा

आशा और निराशा दोनों ही परस्पर विरोधी शब्द शब्द हैं।

आशा ही जीवन है,
आशा ही संयम है,
आशा ही एक धन है,
आशा ही संगम है।

आशा ही पावन है,
आशा ही पतझड़ है,
आशा ही वर्षाऋतु,
आशा ही सावन है,
{___ अंगिरा प्रसाद मौर्या ___}

*********
और जब निराशा प्रवेश कर जाती है तब कुछ नहीं रहता ! कुछ नहीं रह जाता! बचता है चंचल मन, और वह कब किस दिशा में जा सकता है उसका कोई सिद्धांत नहीं होता। क्योंकि जब आशाएँ क्षीण हो जाती हैं तब व्यक्ति का अस्तित्व और व्यक्तित्व दोनों साथ छोड़ देता है।

जब अस्तित्व ही नहीं रहता तब व्यथित हो जाने की प्रक्रिया बहुत तीव्र हो जाती है। जैसे बिना किसी नियत केंद्रबिंदु के केवल नियत त्रिज्या के सहयोग से कोई भी गोलाकार आकृति नहीं खींची जा सकती ।

अतः यदि आप आशा करते हैं तो आपकी आशा के पीछे कोई न कोई आशय अवश्य होता है, परन्तु यदि वह शीघ्र पूरी न हो तो निराश न हों ! उस पर दृढ़ रहिए, थोड़ा और प्रयास कीजिये, थोड़ी और प्रतीक्षा कीजिये आपकी आशाएँ पूर्ण होंगी।

परन्तु भग्न अथवा निराश हो जाने से आपका लक्ष्य तो हो सकता है किन्तु केंद्रबिंदु फिसल अथवा खिसक जाता है। और ऐसी अवस्था में आपको सफलता कभी नहीं मिल पाती।

आपका शुभचिन्तक - अंगिरा प्रसाद मौर्या।
Www.indiasebharat.blogspot.com पर सर्वाधिकार संकलित।

-: पढ़ना अनिवार्य है :-
यहाँ पर मोदीराज से मोहभंग के विषय में कोई तत्व नहीं जोड़े गए है। मोदीजी के नौधुआ विरोधी कृपया अन्यथा लेने का प्रयास न करें।
।। जनहित में जारी।।

!!*!! वन्दे-मातरम् !!*!!

मंगलवार, 12 अगस्त 2014

स्वतंत्रता दिवस ।। १५ अगस्त ।।

१५ अगस्त १९४७ के दिन हम ब्रिटिश शासन के दमनकारी अभिव्यक्ति को कुचलने में सफल हुए थे, हमारा देश हमारे लिए ही छोड़ जाना अंग्रेजों की विवशता हो गई थी। इसीलिए इस दिन को समूचा देश स्वतंत्रता दिवस के रूप मनाता है और यहाँ रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति बलिदानियों के प्रति नतमस्तक होता है तथा स्वयं में गर्व की अनुभूति करता है।

इस क्रांति में तो कितने ही नौनिहालों एवं बदहालों ने खुशहाली हेतु आहुति दे दी। किन्तु नेतृत्वकर्ता और प्रथमों को ही प्रमुख माना जाता है। जैसे- सुभाषचन्द्र बोस, चन्द्रशेखर आजाद, सरदार भगतसिंह अनादि महत्त्वों ने पहले इस क्रांति को प्रचंड दिशा देते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी, अपनों की ख़ुशी हेतु बलिदान हो गए। उसके बाद ही गाँधी जी, नेहरू जी, बल्लभभाई पटेल अनादि तत्वों ने सत्य अहिंसा की लड़ाई लड़ी और भारत को पूर्ण स्वतंत्र कराने में सफल हुए।

केवल स्वतंत्रता दिवस मनाना ही नहीं अपितु इस स्वतंत्र भारत की दैनिक रक्षा भी हमारा कर्तव्य है। अपनी स्वतंत्रता को हम फिर कभी नहीं बिखरने देंगे ऐसा प्रत्येक भारतीय को दृढ़ प्रतिज्ञा लेना चाहिए और इसी प्रतिज्ञा के आशय एवं आधार पर ही १५अगस्त और २६ जनवरी का यह पर्व मनाया जाता है तथा भारत के प्रधानमंत्री भी यही वचन देते हुए अपने वक्तव्य एवं कर्तव्यों को संबोधित करते हैं।
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प्रतिज्ञा/पर्ण :-
*********
कर्त्य जहाँ में भले अलग हैं, धर्म हमारा एक रहेगा।
भारत माँ की रक्षा के प्रति, मर्म हमारा एक रहेगा।
********* १

हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-इसाई, वक्तव्य हमारा एक रहेगा।
भारत माँ के हम बच्चे हैं, कर्तव्य हमारा नेक रहेगा।
********* २
!!*!! भारत माता की जय !!*!!
    !!*!! वन्दे-मातरम् !!*!!
१५/०८/२०१४
                ~~~ अंगिरा प्रसाद मौर्या।
-:स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें :-
        ***
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सोमवार, 11 अगस्त 2014

दुष्कर्म ! आखिर क्या करे अब नारी !


पीड़ित हैं जो दुष्कर्मों से,
जाके पूँछो उन मर्मों से,
हमें वहीं तक ज्ञात हुआ है,
तदाकार हूँ जिन शर्मों से।

जग में इसकी रही लड़ाई,
फिर भी जग ने खूब उड़ाई,
वह भी तो पीड़ित होता है,
जिसने भी यह जनक बढाई।

नारी पर दुष्कर्म हुआ है,
नहीं पता खुदकर्म हुआ है,
राय यहाँ मैं भी कहता हूँ,
जिनसे पलड़ा नर्म हुआ।

वस्त्र बहुत हैं बाजारों में,
वेश्या के कुछ आचारों में,
तुमको चयन वही करना है,
सुखदायक हो संसारों में।

श्रमिकों का तुम संघ बनो अब,
धनिकों में एक अंग बनो अब,
महाशक्ति को तुम दर्शा दो,
अंग प्रतिष्ठा बंद करो अब।

वात्सल्य है तेरे कारण,
वीरोचित भी तू नर्मों से,
हमें वहीं तक ज्ञात हुआ है,
परिचित हूँ मैं जिन शर्मों से।

आधा जग ये तेरा नारी
फिर भी हो तुम क्यूँ दुखियारी,
एकत्रित अब हो जाओ तुम,
जैसी कलियाँ वैसी क्यारी।

मानसून तुम भी लहराओ,
चरण-पादुका हो बिसराओ,
तुम भी हो बलवान यहाँ पर,
चित्त को अपने अभी बताओ।

माना सबकुछ काटे आरी,
नित जो कटे न उसको भारी,
तुम भी हो जगदम्ब स्वरूपा,
अंग-मात्र की ना बलिहारी।

नीतिपरक अब तुम हो जाओ,
हो परिभाषित अब कर्मों से,
"मौर्य" वहीं तक ज्ञात हुआ है,
परिचित हूँ मैं जिन शर्मों से।
०९/०८/२०१४
     ~~~ अंगिरा प्रसाद मौर्या।
*******
शब्दार्थ:-

मर्म= हृदय, मन, चित्त।
तदाकार= सम्बंधित, परिचित।
जनक= गूढ़, समूह, संख्या।
पलड़ा= वर्ग।
वेश्या= नीति को कुचलने वाला।
आचार= व्योहार, निर्धारित नीति ।
श्रमिक= संघर्षी, तपस्वी।
वात्सल्य= ममता भाव,
नर्म= कोमल, विनम्र, तन्मय।
मानसून= आशायुक्त प्रवृत्ति,उत्तेजना ।
चरण-पादुका= पैरों की धूल, चप्पल।
आरी = जो प्रत्येक का भेदन कर सकती है।
बलिहारी= मान-प्रतिष्ठा का कारक अथवा कारण
नीतिपरक= सीमित आचार ।
परिभाषित= शिद्ध, सत्य का साक्षी।
**********
-: कुछ पंक्तियों की समीक्षा :-

वेश्या के कुछ आचारों में :-
यथा आज के चित्र जगत अथवा अभिनय शतक में आकर्षण का कारक, ।
***
सुखदायक हो संसारों में:-
हमारा संसार एक होते हुए भी इसके विभिन्न विभाग हैं, यथा- मेला, उत्सव का सामूहिक हर्षोल्लास, कार्यालय समूह, विद्यालय इत्यादि।
***
नित जो कटे न उसको भारी:-
आपकी कोई गोपनीय शक्ति है जो बहुत ही प्रबल है । किन्तु यदि उसका उपयोग बार बार अथवा सर्वदा किया जाय तो उसका महत्व नष्ट हो जाता है। उसका उपाय सभी ढूढ़ चुके होते हैं।
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-: दुष्कर्म :-
जो कर्म बलवान होने के नाते किया जाता हो, और नीति अथवा सिद्धांतो के परे हो उसे दुष्कर्म कहा जाता है।
जैसे :- परुष प्रधान समाज में नारियों का अपमान, कंस द्वारा अपने पिता उग्रसेन को बंदी बना कारागार में डालना, स्वार्थ हेतु पिता द्वारा असहाय पुत्र अथवा पुत्री की हत्या कर देना इत्यादि।
" जो राजा अपने इच्छा के विरुद्ध और कोई नियम नहीं जनता वह मिथ्यावादी, दुराचारी अथवा दुष्कर्मी है"

Your well wisher -  Angira Prasad Maurya.

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बुधवार, 6 अगस्त 2014

यदि भारत सरकार किसानों अथवा कृषकों का हित चाहती है तो उसे यह अवश्य करना चाहिए।

यदि भारत का शासन अथवा सत्ता में बैठे लोग वास्तव में कृषकों का हित चाहते हैं तो आज ही अथवा सर्वप्रथम क्या करना चाहिए ????
बहुत ही विचारणीय है !!!

जानते सब हैं परन्तु आवाज कोई नहीं करता !
क़ानूनी बहुत हैं कृषक का कोई नहीं सुनता।

जी हाँ !
सभी यह जानते हैं कि जहाँ पर बाढ़ आ जाती है वहाँ सब चौपट हो जाता है। परन्तु यह तो मौसमी त्रास है जिसकी संभावना भी रहती है, और बाढ़ नहीं भी आ सकती है। परन्तु कोई भी शासन इसे निर्धारित करने का सामर्थ्य नहीं रखता और भविष्य में रख भी नहीं पायेगा, क्योंकि ये प्राकृतिक घटना है, यह एक ईश्वरीय बिंदु है। किन्तु नीति और नियमों द्वारा इसे सुखद बनाना सम्भव है।

पर आश्चर्य की बात यह है कि शासन क्या निर्धारित कर सकता है जिससे कृषकों को भी लाभ हो और अन्यजनों को भी सुखद की अनुभूति हो ! और सत्ताधारी इसे पारित क्यों नहीं करते ? वे क्यों अक्षम हैं ?
या तो वे जनता की भलाई नहीं चाहते या फिर किसी रूढ़िवादिता वस ऐसा है।

जहाँ तक हमारी बात है अब मैं मुंबई में रहता हूँ! अर्थात एक शहरी व्यक्ति हूँ। और मैं विद्यार्थी अवधि के पहले से ही मुंबई में हूँ। अतः कृषि-क्षेत्र में हमारी रूचि एवं जानकारी नगण्य है।

फिर भी,
जब मैं अपने गाँव जाता हूँ तो अपने खेतों में अवश्य घूमता हूँ।
घूमते-घूमते अपने परिजनों से प्रश्न भी करता हूँ।
दादाजी से :- अपने पास इतनी खेती है फिर आलू खरीद के क्यूँ आता है ????

दादाजी :- कई वर्षों से तो बोया जाता है और अबकी बार भी बोये थे, किन्तु जंगली सुअर खा जाते हैं। उसमे किये गए खर्च की बात तो दूर है, उसमे किये गए श्रम का भी लाभ नहीं मिलता है। अतः अब कम ही बोया जाता है।

तो कभी पिता जी से:- अबकी बार कितनी गोभी लगाई गई थी ??

पिताजी :- डेढ़ बीघा ।

फिर पूँछा :- लाभ तो बहुत हुआ होगा ! अब सब्जियाँ भी महंगी हैं ?

पिता जी :- लाभ क्या होगा ! नीलगाय आती है और मूलधन सहित चौपट कर चली जाती है।

फिर पूछा:- तो चारो तरफ घेरे लगा देने चाहिए, तो नीलगाय नहीं आ पायेगी ?

पिता जी :- जाओ खेत के चारो तरफ देखो खम्भों के गड्ढे हैं कि नहीं। दस फिट ऊँचा घेराव किया था। घेराव करना भी अपव्यय ही हुआ। अब हम गन्ने ही बोयेंगे और कुछ नहीं।
*********

अब जरा सोचिये !
आजकल उतनी मात्रा में जंगल तो रहे नहीं। और जंगली सुअर कहाँ रहते होंगे। ये नीलगाय कहाँ रहती होगी ?
उसी गन्ने में रहते हैं।
जंगली सुअर तो एक अथवा दो व्यक्ति मार नहीं सकते और नीलगाय को मारना अपराध है।
क्या करेगा कृषक? सब्जियाँ क्यों नहीं महंगे होंगे ?
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ऐसी स्थिति में भारत सरकार के लिए हमारा एक ही सुझाव है कि वह सभी जंगली सुअरों को मारने की नीति बनाये और पारित करे। यदि वह नीलगाय को मारना अपराध मानती है तो नीलगायों के लिए आश्रम खोलवाए। जिसमे सभी नीलगायों को एकत्रित करने हेतु सरकारी व्यक्ति कार्यरत हों। तब ऐसा माना जा सकता है कि भारत सरकार किसानों अथवा कृषकों का हित चाहती है और वह उनका दुख दूर करने हेतु प्रतिबद्ध है। अन्यथा यही मानना चाहिए कि लोग जबतक सत्ता में आये नहीं रहते अथवा जब उन्हें सत्ता से बाहर जाने का संदेह हो जाता है तब जो वे कहते हैं वह सिर्फ बनावटी रहता है।

एक कृषक-पुत्र--- अंगिरा प्रसाद मौर्या।

!!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!े

शनिवार, 2 अगस्त 2014

बलात्कार, आखिर क्यों हो रहा है ये दुष्कर्म

-: दुष्कर्म, आखिर क्या करे नारी :-

किसी भी घिनौने अथवा शर्मशार करने वाले कर्म को दुष्कर्म कहा जाता है।

किन्तु यहाँ हम नारियों पर हो रहे बलात्कार पर बात कर रहें हैं।

सदियों से यह दुष्कर्म होते चला आ रहा है किन्तु अब यह बहुत प्रबल और विशाल रूप धारण कर चुका है। अतः अब यह केवल राजाओं अथवा धनिक लोगों के लिए ही नहीं अपितु पूरे मानवजाति के लिए एक चिंता का विषय बन चुका है कि इसका प्रतिकार कैसे किया जाय।

प्रभाव :-
यद्यपि आज के चलन और प्रचलन को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि इस दुष्कर्म को करने हेतु मानव जाति के दोनों ही जातियों में रंग देखने को मिल रहा है। परंतु गणनाओं और समीक्षाओं के अनुसार पुरुषों में इसका ज्यादा प्रभाव माना जाता है।

दुष्प्रभाव:-
इतने समीक्षाओं और समाचारों को ध्यान में रखते हुए नारी जाति पर इसका दुष्प्रभाव ज्यादा है ऐसा हम कह सकते हैं। क्योंकि यदि यह एक कार्य अथवा किसी प्रकार का कर्म है तो, इसके अर्ध कारक दोनों हैं। कोई भी एक मूल कारक नहीं है। फिर भी पीड़ित नारियाँ ही हैं। क्योंकि व्याभिचार(जिससे काम क्रिया की अनुमति नहीं दी जाती उससे भी सम्बन्ध बनाने की आशा करना अथवा भाव रखना/ अमर्यादित विचारों का उदय) ज्यादा प्रबल हो चुका है।

क्यों हो रहा है दुष्कर्म :-
दुष्कर्म प्रबल हुआ तो इसका तात्पर्य कदापि ना समझें कि कामदेव का श्री कृष्ण के घर में जन्म पा जाने से उनका फिर से उदय हो गया इसलिए यह दिन प्रतिदिन वृद्धि पर है। ऐसा कदापि नहीं है। शिव जी ने उनके शरीर को भष्म किया था जिसके द्वारा कामदेव साक्षात् भी उपलब्ध हो सकते थे, और किसी को कुछ विश्मृत हो जाने पर उनसे तदाकार कराया जा सकता था। वैसे यह एक काल्पनिक कहानी भी हो सकती है। फिर भी जहाँ तक काम की बात है तो यह सृष्टि का एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटक है, जिसके समाप्त हो जाने से सृष्टि चक्र अस्त-व्यस्त हो जाएगी और कल्प का तुरंत ही समापन भी । अतः इस घटक को कभी समाप्त नहीं किया जा सकता। जैसे कंप्यूटर में कोई महत्वपूर्ण घटक स्थगित हो जाता है तो कंप्यूटर बंद हो जाता है, जबकि स्पीकर अथवा कैमरा काम करना बंद कर दे तो कंप्यूटर नहीं बंद होता।
अरे कहाँ पहुँच गए ! यह तो विषय ही नहीं था।

आइये फिर से जाने कि क्यों हो रहा है दुष्कर्म :-
जब ऋण आवेशित और धन आवेशित विद्युत के दो नग्न तार एक ही खम्भे पर बाँधे जाते हैं तो उनकी दूरी इतनी होती है कि बहुत तेज हवे में भी दोनों में इतनी नजदीकियाँ ना आ जायँ कि काम की हवा उन पर प्रबल हो जाय और बिना कारण दोनों काम कर बैठें। इसी प्रकार नारी और पुरुष भी परस्पर भिन्न आवेशों वाले माध्यम हैं और इनमे ईश्वरीय विद्युत विद्यमान है। जब यह नग्न अवस्था में चलते हैं तो काम की हवा इन पर प्रबल हो जाती है। और यह हवा जब एक बार छू के जाती है तो इसका प्रभाव बहुत समय तक रहता है, यदि काम की तुरत पुष्टि अथवा तुष्टि नहीं होती ।
अब इस भाव अथवा काम को जगाने का कारक कौन था और इसका शिकार कौन होगा यह कौन जान सकता है। जब गेहूँ के साथ घुन पिस जाता है तब इसी क्रिया, दुशसाहस अथवा अपकृत्य को दुष्कर्म कह दिया जाता है।

सभी यही चिल्लाते हैं कि दुष्कर्म हो रहा है अनाचार हो रहा है लेकिन फिल्मों का प्रचार करना कोई बंद नहीं करता, जी हाँ अश्लील फ़िल्में। चाहे वह नारी हो अथवा पुरुष उसके अन्दर यह भाव बातों और चित्रों से भी उदित हो जाता है, और फिर यह कब शांत होगा कैसे शांत होगा इसे कौन बता सकता है। हम मुंबई में रहते हैं, कदाचित हमारे अन्दर भी ऐसी भावनाएँ जागृत हो जाती हैं, लेकिन हम अपने मान-सम्मान के बहुत धनी व्यक्ति हैं हमें संयम रखने पर विवश होना पड़ता है।

"माना कि मैं किसी के लिए निर्धन हूँ लेकिन हमारा अपना सम्मान और आत्माभिमान भी कुछ होता है",। बस यही भावना यदि सभी पुरुषों के अन्दर जागृत हो जाती तो आज केवल पुरुष ही दुष्कर्मी नहीं कहे जाते। इसमें नारियों का भी योगदान है इसे कोई भी मानने को तैयार हो जाता। एक नारी कहती है दुष्कर्म हो रहा है और वहीँ पर दूसरी अपने धन के नशे में सार्वजनिक स्तर पर रोमांस(आलिंगन को भाव परिवर्तित करना) दिखा रही है, वो भी वस्त्र ऐसे पहनी होती हैं जिसे नग्न कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है। कितना संयम रख पायेगा पुरुष, उसकी भी तो कोई क्षमता होगी ! एक तरफ काम प्रबल है नहीं तो सृष्टि चक्र रुक जायेगा और दूसरी तरफ रोमांस प्रबल है नहीं तो देह-व्यापार अथवा वेश्यावृत्ति रुक जाएगी। ऐसे में सामान्य पुरुषों का निर्बल अथवा अबल हो जाना स्वभाविक है।
दुष्कर्मम इति ।

यदि कुछ नारी नहीं पूरी नारी जाति ही इस दुष्कर्म से बचना अथवा निजात पाना चाहती हैं तो क्या करें :-

" ईश्वर के पश्चात् हम सर्वाधिक ऋणी नारी के हैं, प्रथम जीवन के लिए पुनश्च इसे जीने योग्य बनाने के लिए"।

इसका तात्पर्य यह नहीं कि नारियाँ सिर्फ दो ही कार्यों हेतु बनी हैं। एक सम्बन्ध और दूसरे परुषों की सेवा।
यह गलत धारणाएं हैं और यह आचार नहीं दुष्प्रचार है कि पति ही परमेश्वर है। इसी कारण नारियाँ नग्न होकर अपनी प्राथमिकता हेतु आगे आ रही हैं, नहीं तो चालाक पुरुषों ने उन्हें चरण पादुका बना रखा था। वह बहुत ही डरी हुई थीं। जबतक पति परमेश्वर रहा तबतक उन्हें बहुत प्रताड़ित किया गया। एक पति परमेश्वर है तो सभी पति परमेश्वर थे, ससुर भी हर मोड़ पर बहु की ही गलती देता था और सासु ! उनको तो हर काम से छुटकारा पाना था वो क्यूँ नारी का सम्मान करेंगी ? हमारी भारतीय नारियाँ यूँ ही नग्न होने पर विवश नहीं हुई हैं उन्हें बहुत सताया गया अंधविश्वासों के चलते और उनको शिक्षा भी उपलब्ध नहीं कराया जाता था कि वो भी कुछ निति नियम जानें। तब जाकर आज नारी नग्न हुई है ! अपनी मर्यादा भूली है जो कि मन गढ़ंत था। किन्तु आज बहुत संघर्ष करते हुए नारी जाति शिक्षा स्तर पर पहुँच चुकी है। ऐसे में यदि कुछ बुद्धि प्रवीण नारियाँ चिंतन करें तो उन्हें ज्ञात होगा कि उनका नग्न होना अनुचित है, उनके लिए ही नहीं पूरी सृष्टि के भी। नारी भारी तो है किन्तु इस अवस्था में वह स्वयं पर ही भारी पड़ रही है, स्वयं पर ही संयम नहीं रख पा रही है।

आइये इसी बहाने सुनते हैं एक कथा पुरातन की :-
हमे मुनि जी का नाम स्मरण नहीं हो पा रहा है अतः उन्हें हम मुनि जी ही कह कर संबोधित करते हैं।
एक समय की बात है जब देवासुर संग्राम चल रहा था। उस समय एक बहुत ही तेजस्वी मुनि अपनी पत्नी को आश्रम पर छोड़ तप को निकल चले। क्यों चले वह अपने आश्रम पर भी तो तपस्या कर सकते थे ? बहुत ही विचारणीय है!
क्योंकि पति और पत्नी दोनों ही ज्ञानी और तपस्वी थे ऐसे में यदि एक साथ रहकर तपश्या करते हैं तो विश्राम काल में काम उनपर अवश्य प्रबल हो जाता और कुछ एकत्रित तत्व विनष्ट हो जाते जिसपर वे कार्यरत थे। क्योंकि सिद्धियाँ अथवा दिव्य शक्तियाँ भोग-विलास से क्षीण होती हैं चाहे वह आत्मबल हो या बाहुबल।
अब,
मुनि जी बहुत ही दूर जाकर तपस्यारत हो गये जहाँ से एक ही दिन में आश्रम पहुँचना सम्भव नहीं था। इधर उनकी पत्नी भी तपस्यारत हो गईं। वहाँ संग्राम में असुर हारने की परिस्थिति में पहुँच गए। उनलोगों ने निर्णय किया कि कुछ लोग भाग जायँ और कुछ लोग डटे रहें नहीं तो असुरों का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा।

असुर भागते भागते मुनि जी के आश्रम पर पहुँच गए। देवताओं को संख्या का ज्ञान हुआ तो वे भी खोजने निकल गये। असुरों ने माता जी से बड़े विनम्र भाव से शरण माँगा और माता जी ने वात्सल्यता वस उन्हें छुपा दिया।

देव भी वहाँ पहुँचे और माता जी से पूँछे कि वे असुर लोग इसी ओर आये और पता नहीं कहाँ चले गए कृपया मार्गदर्शन करें ! माताजी पहले ही कुछ पुत्रों द्वारा वचनबद्ध थीं अतः उन्होंने दूसरे पुत्रों से कह दिया हमे ज्ञात नहीं है। और माताजी में तप की इतनी शक्ति थी कि वे देवता उनका सामना नहीं कर सकते थे। अतः वे बिना दुशसाहस लौट गए, इतने में ही कार्णार्णव के श्री विष्णु जी को यह ज्ञात हुआ कि तपस्विनी ने असुरों का पक्ष लेते हुए झूठ बोला है, तो सुदर्शन छोड़ उनका गला काट दिए। अब जिस प्रकार सच्चिदानंद श्री विष्णु जी को ज्ञात हुआ था उसी प्रकार तुरत मुनि जी को भी यह ज्ञात हो गया की भगवान ने उनसे पत्नी छीन ली तो, वह भी उसी क्रोध के वस भगवान को श्राप दे दिए और रामावतार में उन्हें आजीवन पत्नीसुख प्राप्त नहीं हुआ।
पूर्वकालम इति ।

यह कथा हमने केवल प्रेरणा हेतु ही कही अन्यथा विषय पर इसका औचित्य नहीं था।

आशय है कि पति ही परमेश्वर नहीं है, नारी का भी ईश्वर है और वह बहरा नहीं वह भी सुनता है जैसे कि पुरुषों का ईश्वर। नारियों को पहले भी ज्ञान दिया जाता था नहीं तो छोटी सी कुटिया में उन असुरों को वे कैसे छुपा पातीं ? वो भी दिव्य दृष्टि वाले देवों से ! अतः सभी मानवों को ज्ञान का अधिकार है। यह केवल पुरुष मात्र नहीं है।

नारी का भी अपना अस्तित्व है। लेकिन नीतिपरक है। पहले नारियाँ किसी पर-पुरुष अर्थात जो आयु में बराबर अथवा बड़ा हो, के साथ कोई मंत्रणा अथवा स्पर्धा या सार्वजनिक स्तर पर बात नहीं करती थी केवल नारियों अथवा बच्चों के साथ ही ऐसा करती थीं। क्योंकि बच्चे उनके अपने होते थे और नारियाँ ! सामान आवेस आपस में टकराने पर केवल क्रिया करते हैं प्रतिक्रिया नहीं। वे नारियाँ भी अपने कार्य में व्यस्त होती थीं लेकिन उनका क्षेत्र अलग था । वह केवल जीवन के लिए और जीने योग्य बनाने के लिए ही पुरुष मिलती थीं और वो भी केवल अपने पति अथवा बच्चों से या परिवार कह लीजिये। दोनों का अपना अस्तित्व था। कोई पुरुष नारी परस्थ नहीं था और कोई भी स्त्री केवल पुरुष परस्थ भी नहीं थी। सभी ईश्वर परस्थ थे। लेकिन आज के युग में आप किसी भी कार्यालय में चले जाइये, एक पुरुष तो दूसरी नारी सट सट के बैठे रहते हैं। विद्यालयों के दुआरे अथवा उद्यान में देखिये ! जिसमें केवल विद्यार्थी ही होते हैं! यहाँ पाएंगे कि एक लड़की और एक लड़का अथवा एक लड़की दो या तीन लड़के इसी तरह अपनी मंडली बनाकर दूर दूर बैठे मिलेंगे। उनको कोई नहीं पूछेगा कि क्या कर रहे हो। और यदि कोई पूछा भी, तो उत्तर में मिलेगा कि वे प्यार करते हैं अर्थात वे अभी रास कर रहे हैं। उनके ऊपर प्रतिबन्ध नहीं है। क्यों रहेगा ? यह कार्य तो स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने भी किया था।
ऐसी स्थिति प्रतिक्रिया नहीं होगी तो क्या क्रिया होगी ?
कोई क्रिया नहीं होगी और जो प्रतिक्रिया हो रही है वह दुष्क्रिया बन चुकी है।

ध्यान रहे !,
रानी लक्ष्मीबाई ने शत्रुओं से लड़ाई की थी झूठे आरोप लगाकर पुरुषों से नहीं। कोई भी नारी इस दुष्कर्म के मामले में किसी पुरुष को ही दोषी मान सकती है, पुरुष की जाति को नहीं।
हमने तो कई बार ऊँचे स्तर के व्यक्तियों यथा एक पुरुष और स्त्री को हाथ मिलाते देखा है, यह भी प्रतिक्रिया का एक कारक ही है। नारी पुरुषों से हाथ ही नहीं अपितु गले भी मिल सकती है किन्तु नीतिपरक! एक माता अपने पुत्रों से, एक पत्नी अपने पति से और एक बहन अपने भाइयों से इत्यादि।
आखिर क्या आवश्यकता है हाथ मिलाने की दूर से भी तो अभिवादन कह सकते हैं, ।
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कुल मिलाकर यदि नारियाँ इस दुष्कर्म से बचना चाहती हैं तो राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें पुरुषों से अलग क्षेत्र चुनना पड़ेगा । चाहे वह बेटी हो,बहन हो, माँ हो या फिर वह दादी माँ हो उसे आज ही अपना अलग क्षेत्र चुनना पड़ेगा तभी इस कलह का निवारण हो सकता है। अर्थात हर क्षेत्र में बँटवारा करना पड़ेगा।
  ।।एक एव उपचारम इति।।
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एक बात और है! जबसे भारतीय स्त्रियाँ निर्धन हुई हैं तबसे यह पता भी नहीं चलता कि कौन माँ है और कौन बेटी ! एक बार एक व्यक्ति विवाह हेतु लड़की देखने गया तो वह लड़की के माँ को पसंद कर आया। घटना कुछ इस प्रकार है !"
लड़की की माँ स्कर्ट पहनी हुई थीं और लड़की जींस पहने हुई थी। लड़के को जो ज्यादा जवान दिखी उसी को पसंद कर आया…………… 
हँसना मना है ……………………… !

आपका शुभ चिन्तक- अंगिरा प्रसाद मौर्या।

!!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!