शनिवार, 28 जून 2014

कभी-कभी जब मैं सामाजिक विकृति और विसंगतियों को देखता हूँ तो तो संसार से मेरा जी भर जाता है।

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आज हमारे संतों महात्माओं अथवा धर्म एवं संस्कार के रक्षक प्रधानों को, केवल बीती हुई कहानियाँ ही नहीं अपितु भविष्य की भी कुछ कहानियों को बताना चाहिए।
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कोई कोई बताते भी होंगे ! पर हमने कभी सुना नहीं।
तो हमने सोचा इस विषय पर क्यों न पहले हमलोग ही चिंतन मंथन करें /-
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सीधी सी बात है ।
कल तक पुरुष कम कपड़े पहनते थे, लेकिन आज का दौर देखा जाय तो पुरुष पूरे कपड़े पहनते हैं।

इसमें एक कारण भी है:-  :-D ।
पहले केवल पुरुष ही कमाते थे, तो महिलाओं के कपड़े और श्रृंगार के बाद जो बचते थे उसी में वे अपने वस्त्रों की आपूर्ति करते थे। चूँकि आभूषण बहुत महंगे हैं इसीलिए बचे हुए पैसे पुरुषों के पूरे कपड़े जितना नहीं हो पाते थे और  सदा से ही नारियों का सम्मान और स्थान पुरुषों के लिए सर्वोपरी भी रहा है। शायद इसीलिए ही आज ये लेख हम लिख भी रहे हैं

अब, यह सब जानते हैं की समय सदैव सामान नहीं होता और संसार की प्रत्येक वस्तु भी परिवर्तनशील भी है।

समय बीतते गया,
बीतते गया !
इतने में आज का आधुनिक युग आ गया और निःसंदेह परिवर्तन बहुत कुछ देखने को मिलता है।

हम आपको बताते हैं कि कैसे कितना और क्यों परिवर्तन हुआ ।  :P

आज के दौर में अब महिलाएँ भी कमाने लगी हैं। फिर भी ज्यादा कुछ नहीं बदला, तब भी वही सिक्का था किन्तु तब अशोक स्तम्भ ऊपर था और आज एक रूपया और गेहूँ की बाल ऊपर है।

आइए और भी विस्तार से इस रहस्य को जानने की कोशिस करते हैं :-

अब हुआ यूँ कि जब महिलाएँ भी कमाने लग गयी हैं तो सदा से ही उनके लिए भी पुरुषों का स्थान और सम्मान सर्वोपरी रहा है।

स्थिति कुछ ऐसी आ गयी कि पुरषों के भोजनापूर्ति एवं उनके अधूरे कपड़े को पूरा करने में अब महिलाओं के पास ही पैसा कम बच रहा है। चूँकि महंगाई भी बहुत बढ़ गई और पहले की अपेक्षा पुरुषों का खुराक भी बढ़ गया।
और महिलाएँ भी पुरुषों से कम कहाँ !!! अब बचे हुए पैसे कम होते हैं इसलिए महिलाओं ने भी अपना कपड़ा छोटा कर लिया।
आज वे कमा सकती हैं और किसी भी मायने में वे पुरुषों से कम नहीं, इसका सीधा-साधा और जीता-जगता प्रमाण उनका अधूरा कपड़ा ही है।
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आइए अब यह जानने की कोशिस करते हैं कि यह घटना कब कैसे और सर्वप्रथम कहाँ घटित हुई:-

यह बात उन दिनों की है जब अंग्रेजों का अपना इतिहास खो गया था। सब अपने-अपने में व्यस्त रहे मस्त रहे, किसी ने भी आने वाले भविष्य के बारे में विचार नहीं किया और इसीलिए उनका इतिहास खो गया। कुछ समय और बीता। इतिहास ग्रन्थ आदि लुप्त भी हो चले थे, परिणाम स्वरूप उन्हें कोई भी नियम अथवा सिद्धांत ज्ञात भी नहीं रहा ।  अब जब मानव जीवन को सँभालने वाली कोई डोर ही न बची तो उन्हें यह भी विस्मृत हो चुका था की शर्म/लज्जा एवं सम्मान/इज्जत नाम की भी कोई वस्तु होती है।

अब चूँकि भोजन, निद्रा एवं मैथुन जानवरों की ही नहीं समस्त प्राणियों की जरूरत है। अतः वे भी प्राणी ही थे और इसीलिए उन्हें भी यही ज्ञात रहा। जहाँ तक कपड़ो की बात है तो उनसे पहले जो लोग दुनियाँ से जा चुके थे वे भी कपड़े पहना करते थे । अतः आज भी यह दैनिक कार्य की भाँति बना हुआ है।

बदलाव कैसे हुआ ?

जिसे किसी भी नियमों और सिद्धान्तों का ज्ञान न हो लगभग वह पशु-तुल्य ही होता है। पशु नंगे ही रहते हैं इसलिए कुछ समय पश्चात कुछ लोग नंगे ही रहने लगे। और कुछ लोगों ने अपनी प्रखर बुद्धि क्षमता के कारण दो पैरी होने की पहचान करते हुए अपने को चार, आठ तथा दस पैरियों से अलग करते हुए कपड़े पहनना स्वीकार किया। कुछ समय बीता ! तद्पश्चात दोनों झुंड आपस में मिल गई और कपड़े आपस में बाँट लिए। परिणाम स्वरूप कपड़े अधूरे और छोटे हो गए।  इसे प्रकार की गरीबी भी कहा जा सकता है। इसी प्रकार विदेशों में छोटे कपड़ों का प्रचलन हो चला।

बहुत समय बीता और भारत वाले भी उनके प्रचलन से परिचित हुए। धीरे-धीरे भारतवासी उस प्रचलन को नया चलन(फैसन) समझ बैठे। और उन्हीं ग़रीबों के साथ भारत भी गरीबी में तब्दील हो गया।
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अब जिसे यह लगता है कि हम गरीब नहीं हुए उनके लिए कुछ भविष्य की कहानियाँ अथवा घोषणा :-

कुछ समय पहले महिलाएँ पूर्ण वस्त्र में रहा करती थीं। और अब अर्ध वस्त्र में होती हैं। ऐसे में यदि यह कह दिया जाय कि भविष्य में नग्न घूमेंगी तो आपके हिसाब से भी अतिशयोक्ति नहीं होगा, मेरे हिसाब से तो पहले से ही नहीं है। क्योंकि सीधी सी बात है संयम तो पुरुषों को रखनी चाहिए, इसमें महिलाओं का दोष कहाँ?

आजकल देखा जाय तो ज्यादातर जो धनी वर्ग हैं अथवा शिक्षित वर्ग होने का दावा करते हैं उनके ही घरों में ज्यादातर महिलाएँ अथवा कन्याएँ अधूरे कपड़े पहने घूमती हैं। और आजकल की माताएँ भी पता नहीं अपने बच्चियों को क्यों नहीं समझती कि यह नया चलन नहीं अपितु पहले जमाने में गरीबी का प्रतीक हुआ करता था।
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जो लड़कियां शिक्षित हैं अथवा स्वयं को शिक्षित समझती हैं। पता नहीं वे भी क्यूँ नहीं विचार कर पातीं कि आज उनकी माता पूरे वस्त्र पहने हैं और वे अधूरा पहनी हैं तो कल जब उनकी बेटी कुछ भी पहनना स्वीकार न करे तो उसमे उसका तनिक भी दोष नहीं होगा, किन्तु उसके माँ को कैसा लगेगा? आज की युवतियों को यह विचार पता नहीं क्यूँ नहीं आता।

            ~~~ अंगिरा प्रसाद मौर्या ।

!!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!
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जिसे भी हमारा यह लेख आहत करता हो अथवा ठेस पहुँचाता हो हम उससे क्षमाप्रार्थी हैं। क्योंकि यह लेख हमने नकारात्मकता के लिए नहीं अपितु सामाजिक सकारात्मकता हेतु लिखा है।

!!*!! वन्दे-मातरम् !!*!!

पहले अपने माता-पिता में भगवान देखें

उन धार्मिक विशेषज्ञों के लिए हम तो यही कहेंगे, जिन्हें साईं में भगवान दिखते हैं।
कि,
आपके लिए यदि भगवान से भी बड़ा कोई भगवान है, तो वह माँ बाप हैं। माता-पिता से बड़ा इस संसार में और कोई भगवान हो ही नहीं सकते।
हमारे लिए तो हमारे ईष्ट देव एवं सभी पूज्य देवों का स्थान माता-पिता से नीचे हो सकता है।
किन्तु किसी बाबा अथवा फ़क़ीर से हमारे ईश्वर का स्थान कभी नीचे नहीं हो सकता, क्योंकि दूसरे को जो छोटा बताने का प्रयास करता है सबसे पहले वह खुद छोटा होता है।

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जिस माँ-बाप ने हमें जन्म दिया और जिनकी तपस्या(बदौलत) से आज हम यहाँ हैं उनसे बड़ा और कोई भगवान हो ही नहीं सकते।
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हमारे माता-पिता भगवान/ईश्वर को स्वयं से इसलिए श्रेष्ठ बताते हैं क्योंकि उनके पिता जी के पिताजी के पिताजी के और भी बहुत पीछे चले जाइए के पिताजी के पिताजी भगवान ही हैं, परमपिता ही हैं, और ईश्वर को परमपिता इसीलिए कहा भी जाता है। और जब हमारे पिताजी के लिए जो पूज्यनीय हैं तो निःसंदेह हमारे लिए पूज्यनीय हैं।
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अब कोई हमारे ईष्ट देव अथवा पूज्य देवों की मूर्तियाँ साईं बाबा से नीचे रखकर, साईं बाबा को परमपिता घोषित करना चाहता है तो हम न सहमत थे, न सहमत हैं और भविष्य में भी सहमत नहीं हो सकते। हम साईंबाबा को एक बाबा कह सकते हैं भगवान नहीं।
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            ~~~ अंगिरा प्रसाद मौर्या ।

!!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!

सहमत हैं तो जरूर शेयर करें /-

शुक्रवार, 27 जून 2014

इस मामले को लेकर हमारा भी श्री स्वरूपानंद जी को पूर्ण समर्थन !

कल ही हैदराबाद के सरूर नगर में स्थित साईंबाबा मंदिर चलाने वाले एक प्रतिनिधि ने श्री स्वरूपानंद जी के टिपण्णी के विरुद्ध पुलिस में सिकायत दर्ज करवाई। उनका कहना है कि संकराचार्य ने अपनी टिप्पणियों से उनकी धार्मिक भावना को आहत की है।
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अरे पुजारी जी जब आपके साईं मंदिरों अथवा किसी उत्सव में हमारे पूज्य देवी देवताओं को साईंबाबा के नीचे का स्थान दिया जाता है तो क्या हमारी धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होतीं ?
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अब मित्रों आप ही बताओ कि कोई बाबा अथवा फकीर, भगवान को अपने हृदय में स्थान देता है अथवा कदमों में ???

!!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!

             ~~~ अंगिरा प्रसाद मौर्या ।

शेयर जरूर करें /-

कांग्रेस कार्यकर्ता भी जुटे अराजकता फ़ैलाने में,

कल ही जालंधर में कांगेरस कार्यकर्ताओं ने रेल किराये की बढ़ोत्तरी को लेकर सिटी रेलवे स्टेशन पर रेल ही रोक दिया, और श्री मोदी जी का पुतला भी जलाया। जबकि इससे पहले पुतला जलाने को लेकर लखनऊ में एक बार दंगा हो चुका है। लेकिन फिर भी इनके कदम रुकने की ओर नहीं।
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वहाँ के कांग्रेसियों का कहना है कि जब उनकी सरकार ने रेल भाड़ा बढ़ाया था तो भाजपा ने अलोकतांत्रिक बताया था। तो अब वही सत्ता में आकर अलोकतांत्रिक कार्य क्यों कर रही है।

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अरे भैया !! भाजपा वालों ने दंगा फ़ैलाने हेतु पुतला तो नहीं जलाया था ना !
अब जनता इतनी भोली नहीं रही जितना की आपलोग समझते आये हो। क्या ये सब बताने से जनता कोयला घोटाले और 2G घोटाले भुला देगी ? कदापि नहीं।  बहुत पहाड़ा पढ़ाये अबतक।
और इन घोटालों से हुए नुकसान की भरपायी कहाँ से होगी ? क्या पुतला फूँकने से हो जायेगा ? या फिर रेल मार्गों को अस्त-व्यस्त करने से होगा !
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!!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!
       
                ~~~ अंगिरा प्रसाद मौर्या।

गुरुवार, 26 जून 2014

राजनीति बनाम समाजनीति

आज मोदी जी को प्रधानमंत्री पद पर बैठे हुए पूरे एक माह हो गए, लेकिन उन्होंने किसानों की खुशहाली से सम्बंधित एक भी बैठक नहीं बुलाई और न ही इस पर कोई राय दिए।

बात साफ़ जब नेता लोग किसानों के क्षेत्र में अपनी रैलियों को संबोधित कर रहे होते हैं, तब किसानों से तमाम लोक-लुभावन वादे करते हैं।
लेकिन जब उनको आसन दे दिया जाता है तो सारे वादे भूल जाते हैं।

ध्यान सभी का उसी तरफ जाता है जो बहुमंजिला ईमारत में रहते हैं और वातानुकूलित कमरों में सोते हैं। गैस का भाव बढ़ेगा यह आज मंत्रिमंडल में बैठे हुए सभी को चेत रहा है, रेल किराये बढ़ा दिए गए कि इससे सरकार को लाभ होगा इत्यादि।
लेकिन,
उन किसानों का क्या हुआ अथवा होगा! इसके लिए किसी को सोचने की फुरसत ही कहाँ, क्योंकि अगर किसानों को उनके फसलों का सही भाव और उचित सुविधाएँ मिल जायेंगे तो गरीबी के कारण अशिक्षित कहे जाने वाले लोग शिक्षित कहलाने लगेंगे ।  हर किसान अपनी संतानों को उच्च शिक्षा तक पहुँचाने में सक्षम हो जायेगा। और हमारे भारत की सबसे बड़ी गरीबी के शिकार लोग अमीर बन जायेंगे ! इससे तो पूरा भारत ही अमीर हो जायेगा। एक भारत श्रेष्ठ भारत साकार हो जायेगा। फिर तो लोगों को लुभाने के लिए वायदे ही कहाँ बचेंगे? जिससे बदहालों की बदहाली पर रोकर उनको आकर्षित किया जा सके ।

जी हाँ !!
ऐसा ही सबकुछ हो रहा है। आज किसानों के गन्ने का मुल्य सिर्फ 3 रूपये प्रति किलो है जबकि 1 रूपये की बोतल में भरा हुआ आधा लीटर पानी का मुल्य दस रूपया है। इन चीजों की तुलना सरकार क्यों करेगी ? क्योंकि पानी बेचने वाले तो बहुमंजिला ईमारत में रहते हैं, उनके पास हर एक सुख आराम के साधन हैं। जबकि गन्ना किसान तो झोपड़ी अथवा एक मंजिला के अधूरे घर में रहता होगा, जिसमे शायद ही आधुनिक सुख सुविधाओं के साधन होंगे।

इसी तरह किसानो और आम जनों की उपजाई हुई हर चीज के साथ गलत व्योहार हो रहा है। लेकिन उसके विषय में सोचने से भला सरकार को क्या लाभ ?

केंद्र सरकार के बाद आती हैं हमारी राज्य सरकारें। वे भी वोट बैंक के लिए सदैव तत्पर हैं लेकिन बदहाली से उबारने के लिए उनके पास समय नहीं है।

जी हाँ !!
आज जब रेल का भाड़ा बढ़ गया और गैस के भाव बढ़ने वाले हैं तो जनता को उनकी जेब दिखाकर उनके कटे हुए पर मरहम लगाने के बजाय नमक का छिड़काव किया जा रहा है। जगह जगह धरना दिया जा रहा है तो कहीं रेल मार्गों को ही रोक दिया जा रहा है, कहीं बंद की घोषणा कर दी जा रही है। कुल मिलाकर राज्य सरकारें भी जनता में केंद्र सरकार के प्रति आक्रोष उत्पन्न कर अराजकता फैलाना चाहती हैं। और इससे किसी भी सरकार का कोई नुकसान नहीं होने वाला है अपितु इसका भार भी भोली जनता को ही उठाना पड़ेगा।

हमें तो मोदी जी के द्वारा बिहार और उत्तर प्रदेश में दिए गए कुछ भाषण अभी भी जब याद आते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है की सब केवल गरीबों को लूटने के लिए ही वायदे किये जाते हैं, उनको सार्थक करने के लिए कोई नहीं।
       !!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!

              ~~~ अंगिरा प्रसाद मौर्या।

बुधवार, 25 जून 2014

कडवा सच

ये है एक कड़वी सच्चाई...!
मौत ने भला किससे प्रित निभाई..!

जो आया है वो जायेगा माटी का चोला..!
इक दिन माटी मेँ ही मिल जायेगा..!

एकता मेँ बल चल.. चल.. चल...!

तू नेकी नेकी करता जा....!
कोई सवाल न करता जा...!

खाली हाथ आया तू.....!
नेकी साथ लेता जा...!

आज है शाम तो कल होगी सुबह...!
तू राही है आगे-आगे बढ़ता जा...!

हो...धन्य मानव ! हे... धन्य प्रभु !

ये श्रष्टि तुझे देखने मिली ...!
श्रष्टि का तू धन्यवाद करता जा...!

तू नेकी नेकी करता जा....!!
कोई सवाल न करता जा....!!
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.              ~~~~~~> मनीष गौतम "मनु"
२५/०६/२०१४

मंगलवार, 24 जून 2014

~*~ मेरी प्राण ~*~

तुम मेरी ~
"प्रिया" हो या "प्रिती" हो ...
"प्रेरणा" हो या "प्रेरक" हो...
"प्रदर्शनी" हो या "प्रियदर्शनीय" हो.
"प्रदीपन" हो या "प्रदीप्ति" हो...
"प्रतिद्वन्दी" हो या "प्रतिरक्षा" हो..
"प्रशंसा" हो या "प्रेरणा" हो...
"प्रदर्शन" हो या "प्रदर्शक " हो ..
"प्रश्नोत्तरी" हो या प्रश्नमाला " हो..
"प्रयोजन" हो या "प्रलयंकर" हो...
"प्रतिज्ञा हो या "प्रवेक्षा" हो...
"प्रमुख" हो या "प्रतिलिपि" हो...
"प्रतिक्षा हो या "प्रत्यक्ष" हो...
"प्रलोभन" हो या "प्रगति" हो...
या कई-कई प्रसंगों की प्रकार हो |
अब तुम मुझे
जो चाहो तुम ही समझो / पर मैं तुम्हें जो
चाहूँ तुम भी समझो -
मेरे "प्रेम" का "प्रसिद्ध-प्रमाण" हो
तुम मेरे "प्रमोद" की "प्रसाद" हो,
आन-बान-शान की प्रतिष्ठा हो तुम-
मेरी "प्राणाधार-प्राण-प्यारी "
मेरी "प्राण" हो ...मेरी "प्राण" हो ...
मेरी "प्राण" हो...मेरी "प्राण" हो...
पैदा होने से पहले बेटीयाँ मारते जाओगे.?
बेटा जवाँ होगा तब बहु कहाँ से लाओगे..?
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~~~~~~> मनीष  गौतम "मनु"
मंगल / दि-24/06/2014

कैसा हो हमारा गुरु अथवा सदगुरु :-

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्साक्षातमहेश्वरः ।

यह कथन बिलकुल सत्य है इसमें कोई संदेह नहीं है।
किन्तु,
समाज में जो चंद लोग यह घोषित करते हैं कि बिना गुरु ज्ञान अधूरा होता है, आजकल इसे घोषणा नहीं अपितु थोपना समझना चाहिए।
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इसका साक्षात अवलोकन आप अपने घर और समाज में स्वयं कर सकते हैं। आप पायेंगे कि जो बुजुर्ग हो चुके हैं वो दीक्षा/गुरुमंत्र की बाध्यता वस किसी न किसी को अपना सदगुरु मान चुके होंगे और उनके बताये गये नियमों, मन्त्रों तथा हरिनामों का नित्य उच्चारण करते होंगे।

यह भी है एक अंधाकानून ही है जो चंद पंडितों ने समाज पर थोप रखा है। मैं कहता हूँ जब "गुरु ही ब्रह्मा गुरु ही विष्णु गुरु ही साक्षात महेश्वरः" इस कथन को जब सभी सर्वोपरि मानते हैं तो गुरुओं को वैसा सामर्थ्यशाली होना भी चाहिए। और किसी को भी दीक्षा लेते समय इसका पूरा ध्यान रखना चाहिए और परिक्षण करके ही गुरु बनाना चाहिए।
मैं तो इस प्रणाली को पूरा का पूरा ब्राह्मणवाद मानता हूँ। और समाज को बिगाड़ने अथवा हिन्दुओं की छवि ख़राब इन्ही पाखण्डी तत्वों की वजह से ही हुई है।
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और भी विस्तार से:-

जब किसी व्यक्ति में गुरु होने के उचित कोई लक्षण न हों, ऐसा कोई सामर्थ्य अथवा तेज ना हो जो ईश्वर का साक्षात्कार करा सके, तो वह आपको आत्मसाक्षात्कार कभी नहीं करा सकता।
ऐसे लोग चंद ग्रंथो का अध्ययन किये होते हैं, परन्तु उसमे बताये गए किसी भी मन्त्र एवं मार्गों में निपुण नहीं होते । यहाँ तक कि वे उनमे बताये गए सिद्धांतों को सिद्ध कर पाने में भी सक्षम नहीं होते।
तो,
ऐसे लोगों को गुरु स्वीकार करना अंधकार को स्वीकार कर लेने के ही सामान है। सत्य को ठुकराकर झूठ की सत्ता बताने के बराबर है, धर्म की हानि कर अधर्म को बढ़ावा देने के बराबर है।
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ऐसी परिस्थिति में आप केवल नाम मात्र का ही गुरु मानते हैं, जो इसकी पुष्टि कदापि नहीं कर सकता कि आप का भविष्य क्या होगा, वह आपके भविष्य के किसी खरे संकेत को भी इंगित करने में सक्षम नहीं है तो कैसा गुरु और कैसा उसका ज्ञान ?
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अब यदि आपको इसका भय है कि बिना गुरु के आपका ज्ञान अधूरा रह जायेगा। तो आप भगवान को ही गुरु मान लो और ग्रंथों एवं शास्त्रों का अध्ययन आप भी कर लो। इस परिस्थिति में आपके पास गुरु, ज्ञान और भगवान तीनों चीजें ही साक्षात हैं।
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महाभारत में तो अर्जुन ने गुरु द्रोणाचार्य से साक्षात और प्रत्यक्ष शिक्षा प्राप्त की थी। परन्तु वहीँ पर एकलव्य ने मूर्ति बनाकर गुरु द्रोणाचार्य के प्रति आस्था और श्रद्धा भाव रखते हुए अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षा प्राप्त की थी, जबकि एकलव्य अर्जुन से प्रत्येक विद्याओं में ज्यादा निपुण हुआ।
अर्थात आस्था और श्रद्धा के चलते हम भगवान को भी गुरु मान सकते हैं इसमें कोई संदेह नहीं। और भगवान ने अभिमन्यु को शिक्षा भी प्रदान किया था और अर्जुन को दीक्षा भी।
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सावधान !
यहाँ पर कोई ऐसा तर्क न दे बैठे कि यदि आपकी आस्था हो तो गधा भी लोमड़ी बन सकता है। :-D

नोट:- एकलव्य ने द्रोणाचार्य को गुरु माना था धृतराष्ट्र को नहीं।

आपका शुभचिन्तक- अंगिरा प्रसाद मौर्या।

!!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!

सोमवार, 23 जून 2014

जय हिन्द

एक बहुत ही सुखदायक समाचार में आपका स्वागत है !
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जहाँ सीमा पर तैनात हमारे सैनिकों के खुद के पास हथियारों और अश्त्रों की पूरी आपूर्ति नहीं हो पाती थी, वहीँ अब हमारे सभी सैनिक अस्त्रों सस्त्रो से सजे भी होंगे और हमारा भारत किफायती दामों में अस्त्रों सस्त्रों का निर्यात भी करेगा।
अब चीन तो क्या कोई भी देश हमारे भारत को टक्कर नहीं दे पायेगा।

ये आज चीन के लिए दुखदायक और भारत के लिए सुखदायक समाचार है।

हमारी सरकार पाकिस्तान के भी इलाज पर कार्यरत है।

!!*!! वन्दे-मातरम् !!*!!

श्री योगी आदित्य नाथ से पूर्ण सहमत।

उत्तर प्रदेश सरकार के कुछ व्यक्ति प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से अपराधियों से मिले हुए हैं तो कुछ सहानुभूति भी रखते हैं। स्थानीय थाना क्षेत्र में दो मासूम बच्चो की निर्मम हत्या, हिन्दुओं के मामले कार्यक्रमों पर गिरोहबंद तरीके से हमले, सार्वजनिक भूमि को कब्रिस्तान बनाना, हिन्दू बालिकाओं के साथ छेड़खानी तथा दुष्कर्म जैसे मामले यह बताते हैं कि जनपद सिद्धार्थ नगर सहित पूरे प्रदेश में अराजकता का माहौल पैदा हो गया है।
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सत प्रतिशत सहमत।
ऐसा ही घटित हो रहा है हमारे मातृभूमि उत्तर प्रदेश में ,

हे पुत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ! आज यह हालत देखते हुए हमारी आँखें भर जाती हैं।

हे समाजनीति के बजाय वोट बैंक और भ्रष्ट निति अपनाने वाले ! अराजकता फ़ैलाने वाले !
मैं यह घोषणा करता हूँ कि अब पूरी जीवन बीत जायेगी रगड़ते-रगड़ते लेकिन तुम कभी राजसत्ता अथवा लोकसत्ता के अधिकारी नहीं हो सकते।

आपका शुभचिन्तक- अंगिरा प्रसाद मौर्या।

!!*!! वन्दे मातरम !!*!!

साईं कोई भगवान नहीं !

यदि कोई किसी में कमी बताकर अपने आप को बहुत अच्छा बताने की कोशिस करता है तो यह गलत बात है।
ठीक उसी प्रकार जैसे आस पास दो समान रेखाएँ खीचीं गयी हों और किसी व्यक्ति से कहा जाय कि इसमें से एक रेखा छोटी कर दो,
तो,
यदि वह उसमे से एक रेखा को यदि थोड़ा सा मिटा के छोटा बताना चाहता हो, तब वह कदापि बुद्धिमान अथवा विद्वान नहीं माना जा सकता।
यदि कोई,
उन्हीं दो सामान रेखाओं में यदि एक रेखा को थोड़ा सा जोड़ के बढ़ा देता है तो दूसरी रेखा स्वतः छोटी हो जाती यह और ऐसे व्यक्ति के बुद्धिमत्ता और विद्वता पर कदापि संदेह नहीं किया जा सकता।
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अर्थात हमें किसी भी परिस्थिति में सदैव आगे की तरफ चलना चाहिए, पीछे कदापि नहीं तो हम अपनी विद्वता और बुद्धिमत्ता का सही मायने में प्रदर्शन कर पायेंगे।
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अब बात रही ब्रिटेन की तो श्री स्वरूपानंद जी से हम पूर्ण सहमत हैं कि वह हम हिन्दुओं में फूट डालने की सदा से ही प्रयत्नरत है, और हमे उसके प्रयत्न को कभी सफल नहीं होने देना चाहिए यह सदैव ज्ञात रहना चाहिए।
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श्री साईं जी को समर्थन करने में जरूर उसका हाथ हो सकता है । क्योंकि ब्रिटेन आज भी इस बात से काफी दुखी है कि हम हिन्दुओं का सनातन इतिहास है और उसके पास उसका कोई भी पता नहीं।
वह हमारे इतिहास को तोप कर इजिप्ट और सीरिया के गढ़े हुए काल्पनिक इतिहास को वैज्ञानिक स्तर पर विश्व का इतिहास बताना चाहता है। लेकिन उन्हें क्या मालूम की हम सनातनी हैं और हमारे ही किसी एक परिवार से वे भी हैं, इसका कोई तार्किक अथवा वैज्ञानिक तोड़ ना ही है और न होगा।
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इसमें भी कोई दो राय नही कि जो धन साईं मंदिर के लिए खर्च हो रहे हैं वे धन हमारे परम प्रतापी परम पूज्य मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम मंदिर के लिए खर्च होनी चाहिए।
यह जरूर विदेशियों की कूटनीति ही हो सकती है इसमें कोई दो राय नहीं।
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किन्तु,
आज ये सब कार्य सुचारू रूप से पूरे करने के लिए हमें जरूरत है अपने मन्त्रों को स्पष्ट और सिद्ध कर दुनियाँ को दिखाने की, जरूरत सादगी बताने की, जरूरत है अपनी अच्छी छवि बनाने की, दूसरे की छवि पर ऊँगली उठाने की नहीं।

!!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!

आपका शुभचिन्तक- अंगिरा प्रसाद मौर्या।

रविवार, 22 जून 2014

यूँ ही मस्त रहें हम

यूँ ही मस्त रहेँ हम, यूँ ही मुस्कुराते रहेँ हम..!पल
मेँ मिलती है खुशीयाँ, पल मेँ मिलते हैँ गम..! जिवन
की यही सच्चाई है..! इसे झुटला नहीँ सकते हम..!
इसीलिए जब तक है हममेँ दम..! तब तक
काँटो को भी लांध बढ़ते रहे हमारे कदम..!
खाली हाथ ही तो आये थे, साथ फिर क्या ले
जायेँगे..!गर नेकी की हो जिवन मेँ हमने,
तो दुनियाँ को मर कर भी हम याद आयेँगे..!ये
मानव तन मिला है बड़े ही जतन से, नेकी करते
करते गुजरे हम इस अमनो-ए-चमन से..!! यूँ ही मस्त रहेँ हम, यूँ ही मुस्कुराते रहेँ हम..!पल मेँ मिलती है खुशीयाँ, पल मेँ मिलते हैँ गम..!
---------->> मनीष कुमार गौतम "मनु"

लखनऊ में भाजपा वालों का धरना प्रदर्शन शुभ संकेत नहीं!

जब धरना प्रदर्शन करके ही सपा वालों को दंड दिलाना था तो पथराव के पहले ही पुलिस को दिया जाना चाहिए था सन्देश।
सीधी सी बात है ताली एक हाथ से कभी नहीं बज सकती।
जब भाजपा वालों को यह ज्ञात हो गया कि सपा पक्ष रेल किराये में बढ़ोत्तरी को लेकर श्री प्रधानमंत्री जी का पुतला जलना चाहती है तो, तुरंत पुलिस को सन्देश देते ! पथराव करने की क्या जरूरत थी?

और फिर श्री राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में भी स्पष्ट कर दिया कि आखिर क्यों बढ़ा रेल का भाड़ा। उन्होंने केंद्र सरकार की नीति और प्रस्ताव को भी साफ़ बताया।

ऐसे में अगर पुलिस से ही काम करवाना था तो उनके लिए सिर्फ पुलिस को सन्देश भेजना ही पर्याप्त था। जब आपस में ही मामला सुलझाना था तो पुलिस अधीक्षक कार्यालय के सामने धरना प्रदर्शन क्यूँ ? जब जानकार लोग ही गलतियाँ करेंगे तो आम जनता क्यूँ नहीं करेगी।

उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार है और केंद्र में बैठी भाजपा सरकार है। ऐसे में भाजपा वालों का धरना प्रदर्शन या तो अपनी ताकत को आँकना है या तो सत्ता का नशा कहा जा सकता है।

ये आपस में अराजकता के संकेत हैं शुभ संकेत कभी नहीं हो सकते। जब देश की बागडोर किसी विशेष व्यक्ति के हाथ में गयी है तो ऐसे में सत्ता के सभी अधिकारीयों सूझ-बूझ से ही कदम उठाना चाहिए। जल्दबाजी सदा से ही घातक सिद्ध हुई है।

आपका शुभचिन्तक- अंगिरा प्रसाद मौर्या।

!!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!
        !!*!! वन्दे-मातरम् !!*!!