रविवार, 20 दिसंबर 2015

भारत के विकाश में बॉलीवुड एक विशेष रोड़ा

आज जब प्रत्येक देश आतंकवाद से लड़ने की तैयारी में हैं तब हमारे देश का बॉलीवुड लोगों को गुमराह और इतिहास से छेड़छाड़ में लगा है।

१. फिल्मों का इस प्रकार प्रचार जैसे फ़िल्म ही हमारे देश के सुरक्षा की परिपाटी हो।

२. देश के पैसे व्यर्थ में लगाकर देश के युवाओं का समय व्यर्थ करने की साजिस

३. एक ऐसा उद्योग जो अपने देश का धन स्वयं लूटने का कार्य करता है।

सार्थक विश्लेषण :-

आज बॉलीवुड के पास जितनी भी संपत्ति है यदि वही संपत्ति किसानी में भी लगा दी जाय तब भी भारत के अनेक युवाओं को रोजगार मिलेगा और समयव्यर्थ की सम्भावनाएं कम होंगी।

आज फिल्मों का प्रचार इतना हो गया है कि लोग अपने उद्योग धंधे छोड़कर फ़िल्म देखने पर विवश हो गए हैं क्योंकि हमारे देश की पत्रकारिता भी आज इन फिल्मों के अधीन हो गयी है और ऐसा होना शुभ संकेत नहीं है।

पहले नेताओं के चलते युवाओं में मतभेद था और दंगे होते थे और आज तथाकथित नचनियों के चलते युवाओं में मतभेद है और दंगे हो रहे हैं। ऐसा तब सम्भव हो पाया है जब हमारे देश की मीडिया का 50% ध्यान इन नचनियों पर ही रहता है। यह भी देश के लिए बहुत ही अशुभ संकेत है।

इस पर कितना भी विश्लेषण कर लिया जाय !
अंततः निष्कर्ष यही निकलेगा कि फिल्मो से और देश के युवाओं से मात्र इतना संबंध है कि बॉलीवुड को लाभ होगा और देश के युवाओं को हानि ।

देश के युवाओं का नुकसान अर्थात् देश का 75% नुकसान।

ऐसे में हमारे देश के युवा तथा बुद्धिजीवियों के मन ये विचार क्यूँ नहीं प्रवेश कर पाते यह एक बड़ा प्रश्न है,
इस प्रश्न के उत्तर हेतु मैं आपके विचारों को सादर आमंत्रित करता हूँ !

#वन्दे_मातरम् - अंगिरा प्रसाद मौर्य।
#बॉयकाट_बॉलीवुड ,

कुछ अविष्कारों का विश्लेषण

ऐसे अविष्कार जो भारत में नहीं हुए :-

१. सीसे वाला लालटेन, यदि अंधेरी रात तथा तूफान दोनों एक साथ आये तो यह लालटेन बहुत उपयोगी है,

२. बल्ब, यदि आपके पास विद्युत हो तो बल्ब आपके लिये बहुत ही उपयोगी है।

३. रेल(ट्रेन), आज अधिकांस देशों के लिए यह विकास की एक परिपाटी है।

४. दूरसंचार उपकरण एवं उनका क्रियान्वयन, यह ऐसा अविष्कार है जिस पर आज संसार का प्रत्येक व्यक्ति निर्भर है।

५. सबसे शक्तिशाली और सबसे तेज गति से चलने वाले रक्षात्मक शस्त्र, आज ये चीजें उन्ही के पास हैं जिन्होंने इनकी आवश्यकता समझी और पहले बनाया।

भारत के अविष्कार :-

१. नाचना, यह ऐसा अविष्कार है जिसके लिए भारत में सबसे अधिक खर्च किए जाते हैं किन्तु इसके बिना कोई भी व्यक्ति अपना जीवन सुचारू रूप से चला सकता है।

२. परम्पराओं के विरुद्ध नंगे हो जाने को कलाकारी का भ्रम अविष्कार, यह एक ऐसा अविष्कार है जिसके लिए हमारे यहाँ के न्यायालय भी व्यभिचार की परिभाषा बदल चुके हैं।

३. नीतियों एवं नैतिकता के विरुद्ध फ़िल्म बनाकर प्रचार, भारत के लिए यह अविष्कार सबसे अधिक विनाशकारी सिद्ध हुआ। मजे की बात यह है कि इसके बिना भी किसी के जीवन में कोई फर्क नहीं पड़ता।

४. फिल्मी लोगों के मीडिया कवरेज का अविष्कार, यह एक ऐसा अविष्कार है जिसके चलते भारतीय युवा महापुरुषों के बजाय नृत्यपुरुषों को अपना आदर्श मानते हैं।

५. नकल अविष्कार, यह एक ऐसा अविष्कार है जिसके लिए भारत को नक्कालों का देश भी कहा जाता है। क्योंकि भारत में विकसित कुछ भी हो रहा हो किन्तु सूत्र तो विदेशी ही अपनाये जाते हैं।

निष्कर्ष:- भारत में जितने रूपये उल-जुलूल कामों में लगा दिए जाते है यदि वही रूपये सैद्धांतिक रूप से उपयोग किये जाते तो आज कपड़े के बटन-चैन विदेशों से न खरीदने पड़ते।

अर्थात:- भारत में जितना पैसा अनर्गल फिल्मो में खर्च करके फिर भारत की जनता से उसके कई गुना पैसे वसूलने और युवाओं के समय को व्यर्थ करने के जगह यदि यह धन और समय रक्षा संबंधित हथियार बनाने में लगाये जाँय तो भारत सबसे शक्तिशाली भी होगा और धनवान भी।

युवाओं के समय भी व्यर्थ नहीं होंगे और हथियारों के निर्यात पर ब्याज सहित लाभ भी मिलेगा।

भारत माता की जय
अंगिरा प्रसाद मौर्य एक राष्ट्रभक्त।

शुक्रवार, 27 नवंबर 2015

सीमाएँ श्मशान हो जातीं, जब सैनिकों के हथियार न हो

सीमाओं पर कैसे सैनिक, जब उनके  हथियार न हों !
सीमाएँ श्मशान हैं होती, जब उत्तर के अधिकार न हो !

नित रोती होंगी भारतमाता, जा वीरों के श्मशानों पर।
कब तक बली चढ़ानी होगी, छद्मयुद्ध-सस्ते दामों पर।
इस धरती पर माँ की ममता, कब गौरव का गान करेगी !
कब आएगी नई सुबह वो, जब माँएँ अभिमान भरेंगी !

उन माँओं से जाकर पूँछो, जिसने अपने पुत्र हैं खोये !
जाकर उन बहनों से पूँछो, जिनकी मांग में कष्ट हैं बोये !
लेकिन कोई क्यों पूंछेगा, जब उनके पास जवाब न हो !
सीमाएँ शमशान हैं होती, जब उत्तर के अधिकार न हो !

हो जाने दो महायुध्द एक, हम अपना बलिदान करेंगे !
आने वाली पीढ़ी को हम, अपना जीवनदान करेंगे !
सहनशीलता की ये सीमा, मर्यादाएँ तोड़ चली अब।
देखो पुत्रों की माताएँ, पुत्र-तिलांजलि ओढ़ चली अब।

रोज-रोज का क्या ये रोना, एक दिन क्यूँ न रो लेवें हम !
जो दिन देखे हमने अबतक, शिशुओं को वो क्यों देवें हम !
भव्य होती रैलियां उनकी, जिनको जनता से प्यार न हो !
सीमाएँ श्मशान हैं होती, जब सैन्योचित हथियार न हों !
                    २७/११/२०१५
--------- अंगिरा प्रसाद मौर्य

रविवार, 15 नवंबर 2015

क्या हमारा देश सबसे समृद्ध बन सकता है।

इस पोस्ट को शेयर करने मे पैसे नहीं लगते साहब !
यदि आप देश भक्त हैं तो निःशुल्क शेयर में योगदान दें।

*********

मैंने सुना है कि फ़िल्म वालों को यदि दर्द की गोली लेनी हो तो वे विदेश से 1करोड़ देकर लाते हैं, जबकि भारत में मात्र 1रुपये मे मिलता हैं।
,
मैंने सुना है कि फ़िल्म वालों को यदि चड्ढी भी ख़रीदने हों तो वे विदेशों से 10लाख रुपये देकर लाते हैं, जबकि भारत में 50-75रुपये मिलता है।

तो भैया ! मेरा सुझाव ये है कि ये लोग कमाते देश से हैं तो लाभ विदेशों का क्यों करवाते हैं ?

अभी अभी कोई एक फ़िल्म आयी है जिसका नाम "धन पायो" क्या रख दिया और लोगों ने एक सप्ताह में उसे 100करोड़ रूपयों का धन अर्पित कर दिया ।

क्या ये 100करोड़ रुपये हम अपने देश के बैंक में अपने नाम से नहीं रख सकते ?

क्या अपने पैसों को नचनियों द्वारा विदेश भेजना उचित है ?
,
इसी पर हम आपकी राय जानना चाहते हैं !
यदि आपके पास कोई उत्तर नहीं तो शेयर कीजिए, आपके मित्रों के पास उत्तर अवश्य होगा।

!!*!! जय हिन्द !!*!!
भारतीय शुभचिन्तक : अंगिरा प्रसाद मौर्य ।

शनिवार, 12 सितंबर 2015

श्रेष्ठों / बुजुर्गों का अपमान, आखिर क्यों ?

लोग कहते हैं भारत के बुजुर्गों को उनका अधिकार नहीं मिल रहा ।

मैंने तो कब का कह दिया कि भारतीय संस्कृति को अधिकार नहीं मिल रहा !

जी हाँ !

आज जो लोग जवान हैं वे फ़िल्मी संस्कार ओढ़े घूम रहे हैं और जब कल यही लोग पिता-माता बनेंगे तो अपने बच्चों को संस्कार बताएँगे !

बच्चे उनके संस्कार को क्यों मानें ?
वो पड़ोसी चाचा ने तो पिता जी के जवानी की सारी कहानी बतायी।

बुजुर्गों को प्रताड़ित करने का प्रथम कारण यही है।
जो पिता-माता अपने बच्चों को नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं वास्तव में वे कभी नैतिक थे ही नहीं !
ऐसे में यदि कोई अपने पुत्र अथवा बहू को डाँटेगा तो क्रिया की प्रतिक्रिया स्वाभाविक है।

दूसरा कारण,
यह जो फ़िल्म जगत है ये ऐसे-ऐसे संस्कारों की शिक्षा देता है जिसे नादान लोग शीघ्रता से ओढ़ने के आतुर होते हैं और समझदार लोग चिढ़ जाते हैं।

बॉलीवुड वालों का क्या ? उनका तो धंधा है वो अपने धन्धे के लिए बेटी-बहन और माँ नहीं देखते !

नादान और नासमझ कौन होता है ?
युवा और बच्चे !
समझदार और जिम्मेदार कौन होता है ?
अभिभावक और बुजुर्ग, जो कि पूरे जीवन का अनुभव कर चुके होते हैं।

लेकिन फ़िल्म वालों की मानें तो सबसे समझदार नंगी महिला और अधर्मी पुरुष !

अब आपको ये तय करना है कि आप अपने बच्चों से कैसी उम्मीद करते हैं और उसी के आधार पर आपको आजसे ही चलना पड़ेगा !

भारतीय शुभचिन्तक : अंगिरा प्रसाद मौर्य

बुधवार, 26 अगस्त 2015

हिन्दी मेरी भाषा है


हम पहले अंग्रेजी शब्दों एवं वाक्यों का प्रयोग करते थे ।
किन्तु ,
          जब हमें ये पता चला कि यदि भारत में अंग्रेजी शब्दों का प्रचलन इतना होता जा रहा है और हिन्दी न के बराबर हो रही है। तो हमने भविष्य पर विचार किया !

हमे यह पता चला कि यदि हिन्दी पूर्णतः समाप्त हो गयी तो हमे स्वामीविवेकानन्द, दयानन्द सरस्वती आदि महापुरुषों(हमारे पूर्वजों) के इतिहास को भी समाप्त करना पड़ेगा !

और यदि ऐसा हुआ तो हमे उदाहरणार्थ केवल अंग्रेजी महापुरुषों को स्मरण रखना होगा।
तथा
कल की पीढ़ी से कोई अंग्रेज पूँछ लेगा कि संसार को तुमने क्या दिया या तुम्हारे पूर्वजों ने क्या दिया ?
तब उन्हें निरुत्तर हो जाना पड़ेगा तथा लोग उनका परिहास भी उड़ा सकते हैं।
अतः,
हिन्दी मेरी भाषा है, हिन्दी मेरी प्राण है ।
हिन्द में हिन्दी ना जाने जो, समझो वो एक राण है।
#APM

मंगलवार, 11 अगस्त 2015

धर्म में अपवाद तथा मान्यताओं का दुरूपयोग

इस विषय पर हमारे मन में बहुत सारे प्रश्न उठते हैं और मैं इन प्रश्नों पर निरंतर चिंतनरत रहता हूँ।
आपके समक्ष उन्हीं प्रश्नों सहित उसका खंडन कर रहा हूँ! क्योंकि हो सकता है आपको भी ऐसे प्रश्न कभी कभी विचलित करते हों !
जय श्री कृष्ण !

प्रश्न 1 : क्या आज की जागरूक पीढ़ी अथवा साक्षरता के इस युग में धर्मसंगत अथवा धार्मिकता हेतु दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है ?

खण्डन : हाँ दिशा-निर्देशों की आवश्यकता आज भी है और भविष्य में भी रहेगी !
किन्तु, इसके विभिन्न खण्डों को मान्यता देना अपवाद है। यह एक विसंगति पूर्ण अथवा त्रुटिपूर्ण प्रक्रिया सिद्ध होगी यदि धर्म अथवा धार्मिकता विभिन्न खण्डों में विभक्त हो जायेगी ।

प्रश्न 2 : साक्षरता के इस युग में क्या धर्म के ठेकेदार आवश्यक हैं ?

खण्डन : बिलकुल नहीं ! साक्षरता के इस युग में पत्रकारिता एवं शिक्षापद्यति के माध्यम से हमारे देश के न्यायालयों अथवा प्रशासन को यह निर्णय लेना चाहिए कि धर्म क्या है और अधर्म क्या है। इसके लिए ठेकेदारों की नहीं समझदारों की आवश्यकता है।
समझदार अर्थात् घर परिवार के बुजुर्गों/श्रेष्ठों का यह कर्तव्य है कि अपने परिजनों को धर्म अधर्म की जानकारी दें एवं शान्ति सौहार्द हेतु प्रेरित करें ।

प्रश्न 3 : यदि धर्म के ठेकेदार यथा शंकराचार्य, महामण्डलेश्वर आदि को जनता मान्यता देती है एवं दान करती है। तो क्या दरिद्रता से पीड़ित करोड़ों की जनसँख्या वाले देश में इन महाशयों को सोने चाँदी के मुकुट अथवा रथ बनवाना शोभा देता है ?

खण्डन : कदापि शोभायमान कृति नहीं हैं ये सब । संत महात्माओं ने सूखी रोटी खाकर सदा ही अपने जीवन को जनमानस के उद्धार में लगाया है। सनातन धर्म का इतिहास इसका प्रमाण है।
कंश में समय में मथुरा के कुलगुरु मुनि गर्ग थे। उन्होंने राजमहल में कभी भी अनावश्यक समय नहीं बिताया। वे अपनी कुटिया में सूखी रूखी खाकर आपदाओं एवं विपदाओं का सामना करने हेतु सदैव तपस्यारत रहते थे । वे चाहते तो कंस को सिंहासन से उतारकर स्वयं भी बैठ सकते थे किन्तु यह उनके धर्म के विपरीत था क्योंकि वो संत थे। इसी प्रकार से ही सभी मुनियों की जीवनी है धर्मग्रन्थ जिसके प्रमाण हैं।

प्रश्न 4 : धर्म के तथाकथित ठेकेदार जनता के धन से अनेकों सुविधाएं लेते हैं। क्या इन्होंने आजतक कोई अविष्कार किया ?
अथवा किसी भी पुराने मन्त्र को सिद्ध कर पाये ?

खण्डन : आज जो भी ठेकेदार हैं यथा संकराचार्य अथवा महामंडलेश्वर आदि ये लोग योगी नहीं अपितु भोगी हैं इन्हें मानना अथवा इनके दिशा-निर्देशों पर चलना मूर्खतापूर्ण हैं। इतना ही नहीं! इन तथाकथित ठेकेदारों का समाज में उच्चस्तर पर बने रहना भी एक छल है जो कि चन्द लोगों का चक्रव्यूह है। और सामान्य जनमानस भोलेपन के कारण इसमें फँस जाता है।

आप विचार कीजिए !
कोई भी संस्था अथवा प्रशासन यदि किसी वैज्ञानिक को पैसा देता है तो वो नए नए अविष्कार करता है।
किन्तु,
ये तथाकथित ठेकेदार वो रूढ़िवादी परम्पराएँ ढो रहे हैं जो कि हमारे सम्मानित मुनियों एवं महर्षियों को सम्मान दिया जाता था।
ये तथाकथित लोग ये चाहते हैं कि जनता वही करे जो ये कहें !
किन्तु ऐसा तो तभी संभव हो सकता है जब ये लोग भी सिद्धपुरुष हों ! इनमे भी योग्यता हो !
इतना ही नहीं हमारे वेद-ग्रन्थों में अनेकों मन्त्र हैं उनमे एक भी मन्त्र की सिद्धि किसी के पास नहीं है।

इस प्रकार के ठेकेदारों को कुछ भी दान नहीं करना चाहिए । यदि आपको किसी मन्दिर में जाने की बाध्यता है तो आप अपने घर पर भी ईश्वर की पूजा उपासना कर सकते हैं। आपको दान ही देना हो तो अपने परिवार को दीजिए अपने आसपास उपस्थित किसी असहाय को सहायता कीजिये। यही पूण्य कार्य है।

और अब अन्त में,
प्रश्न 5 : सही अर्थों में धर्म क्या होता है ?

खण्डन : भगवत् गीता में भगवान ने कहा है कि धर्म व्यक्तिगत होता है।
किन्तु,
आज के अल्पबुद्धि वाले इस युग में मैं कहता हूँ कि "धर्म पहले नीतिगत होता है पुनः व्यक्तिगत होता है।
अर्थात् पहले व्यक्ति धर्म की नीतियों को जाने तद्पश्चात वह अपनी व्यक्तिगत परिस्थिति में धर्म अधर्म में अंतर स्वयं कर लेगा।

हमने यह चिंतन हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई आदि में से किसी एक के लिए नहीं अपितु समस्त मानवजाति के लिए किया है।

आपका शुभचिन्तक : अंगिरा प्रसाद मौर्य ।
जय श्री कृष्ण !

गुरुवार, 6 अगस्त 2015

समाज में सज्जनों की सक्रियता अति आवश्यक है

एक आतंकवादी को बचाने के लिए कुछ देशद्रोही एक हो जाते हैं ,
पर बात जब देशभक्ती की आती है तब लोग यह कहकर किनारा कर लेते हैं कि हमें राजनीति से क्या लेना !

अरे महाशयों !
यदि आप सच्चे लोग राजनीति की बात नहीं करेंगे, प्रेरणाएँ नहीं देँगे तो क्या आने वाली पीढ़ियों को गलत क्या है सही क्या है समझ आ सकती है ?
बिलकुल नहीं !

यदि आप एक अच्छा समाज, एक अच्छा सा राज/देश चाहते हैं तो आपको अपनी आवाजें बुलन्द करनी पड़ेंगी !

आपका शुभचिंतक - अंगिरा प्रसाद मौर्य

फेसबुक पर हमसे जुड़ने के लिये www.facebook.com/angiraprasad पर विजिट करें !

ट्विटर पर हमसे जुड़ने के लिए www.twitter.com/angiraprasad पर क्लिक करें !

वन्दे-मातरम् !

बुधवार, 5 अगस्त 2015

पॉर्न साइट्स porn sites

अब जब संसद तक पॉर्न की बात पहुँच ही गई और कुछ मीडिया कलाकार भी पॉर्न के आदी हैं तो इस पर विचार देना उचित हो जाता है।

पोर्न का तात्पर्य "कामोद्दीपक" से है अर्थात् काम की उत्तेजना बढ़ाने वाला !

संसार में जीवन के लिए काम का होना अति आवश्यक है किन्तु पूरा दिन अथवा पूरा जीवन कामभावना में ही बीते तो वह समाज के लिए भी भयावह है और स्वयं के लिए भी !

ऐसा कौन सा व्यक्ति होगा जिसमें काम भावना का उदय नहीं हुआ अथवा होता नहीं होगा ! कोई भी नहीं है ? यहाँ तक की जीव-जन्तु भी नहीं !

हमने कई पॉर्न साइट्स के अध्ययन किये !
जहाँ पर यह पाया गया कि,
पुत्र के द्वारा माँ का बलात्कार!
माँ के द्वारा पुत्र का बलात्कार !
भतीजे द्वारा चाची का बलात्कार !
चाची ने भतीजे का बलात्कार किया !
शिक्षक ने शिक्षिका का !
शिक्षक ने छात्रा का !
शिक्षिका ने छात्र का !
छात्र ने शिक्षिका का !
बहन ने भाई का !
भाई ने बहन का !
पिता ने पुत्री का !
तथा पुत्री ने अपने दादा का बलात्कार किया !

अब मैं आप सभी से पूंछना चाहूँगा कि,
क्या यही आज की जरुरत है ?
अथवा यही नैतिकता है ?

यदि सब समय की माँग है और लोग पॉर्न फिल्मों का समर्थन करते हैं तो मैं समझता हूँ कहीं पर भी बलात्कार नहीं होता ? सब झूठी घटनाएँ हैं ।
हमें जो सिखया पढ़ाया जायेगा हम वही तो करेंगे !

आपका शुभचिंतक - अंगिरा प्रसाद मौर्य
आप सभी के विचार सादर आमंत्रित हैं !

रविवार, 2 अगस्त 2015

मित्रता दिवस

सादर नमन स्वजनों !
आज सुबह से हमारे कुछ मित्रों के मन यह प्रश्न अवश्य उठ रहा होगा कि हमने मित्रता दिवस पर शुभकामनायें क्यों नहीं दिया ?

उसका उत्तर यह है कि प्रतिदिन हमारे लिए मित्रता का ही दिन होता है न कि शत्रुता का ! और शुभकामनायें भी हम रोज देते हैं।

मैं आप सब लोगों को बता देना चाहता हूँ कि,
यदि एक आतंकवादी से कोई सहानुभूति प्रकट करने लगता है तो ऐसा करने वालों की भीड़ लग जाती है।

इसी तरह यदि कोई शत्रुता दिवस का भी प्रचलन शुरू कर दे तो उसे भी इस चुतियापा के दौर में अनुशरणकर्ता मिल जायेंगे !

क्या है ये सब ?
क्या दीवाली और होली जैसे हमारे भारतीय त्यौहार मैत्री स्थापित्य के सन्देश नहीं देते ?

आज हम यदि मित्रतादिवस मान लें तो क्या और सारे दिन शत्रुता के हैं क्या ?

मित्रता का मूल उद्देश्य है एक दूसरे को लाभ पहुचाना ! और जो इस कथन को नहीं जानता अथवा नहीं स्वीकारता वह कभी भी मित्रता नहीं कर पायेगा ।

अब कोई स्वच्छता दिवस की पहल कर दे तो इसे भी मैं अपवाद ही मानूँगा क्योंकि स्वच्छता और मित्रता ऐसी चीजें हैं जिनकी आवश्यकता इस संसार के लिए सदा से रही है और सदा ही रहेगी ।

अब आप योग-दिवस को अपवाद माने तो यह आपके बीमार सोच का परिचय देगी !
क्योंकि योग एक प्रणाली है जिसमें प्रावधान एवं शर्तें हैं तथा इसे जानने के लिए पूरे विश्व भर में किसी एक दिन का चयन किया जाय तो वह मानवता की पराकाष्ठा है।
जय श्री कृष्ण !
आपका शुभचिन्तक - अंगिरा प्रसाद मौर्य

सोमवार, 20 जुलाई 2015

भूखे का कोई धर्म नहीं होता

भूखे का कोई धर्म नहीं होता ?
क्या यह कथन सही है ?
यह बहुत ही चकित करने वाली स्थित है जिसे भूख कहते हैं।
भूख भी कई प्रकार के होते हैं।
यदि इसे केवल भोजन संगत ही मान लिया जाय तब यह मानवता की परिभाषा पर खरा नहीं उतरता !
तब तो यह जन्तुओं अथवा पशुओं वाली परिभाषा हो जाती है।
इंसान किसे कहते हैं ? ये तो हमें ज्ञात नहीं !
किन्तु,
"इस पृथ्वी पर मान-सम्मान हेतु जो अवतरित हुआ है अथवा जिसका जीवन मात्र मान-सम्मान के कार्यों में बीत जाये वही मानव कहलाता है"।
वो जो भिखारी भीख माँगता है क्या वो भूखा नहीं है ?
फिर क्यों कोई तिलकधारी तो कोई जटाधारी तो कोई टोपीधारी तो कोई दाढ़ी वाला होता है ?
फिर क्यों कोई अल्ला के नाम पर और कोई अलख-निरंजन कहता है ?
क्या वो जो मुसलमान विश्वविद्यालयों में पढ़ने जाते हैं उन्हें शिक्षा की भूख नहीं ?
फिर क्यों कोई बुर्का पहनकर तो कोई दाढ़ी और टोपी वाला होता है ?
फिर क्यों कोई विद्यालय परिसर में अथवा विद्यालय के बाहर नमाज पढ़ने जाता है ?
यदि नमाज विद्या से अधिक फलदायी है तो विद्यालय आने का क्या तात्पर्य है !
वो जो हिन्दू विद्यालय जाते हैं वो तो मंगलवार को महावीर उपवास पर छुट्टी नहीं करते !
वो जो ईद मुबारक कहता है वो भी एक मानव है।
वो जो शान्ति और सौहार्द की बात करता है तथा उसकी मर्यादा में रहता है वो भी एक मानव है ।
हम इतने निर्मल और कोमल तथा विमल केवल इसलिए हैं क्योंकि मानवता ही मेरा धर्म है।
किन्तु अब का समय जो कह रहा है उसे भी हमें ध्यान में रखना चाहिए ।
आज एक मानव होने के साथ साथ हिन्दू होना भी आवश्यक हो गया है।
और जो हिंदुत्व को नहीं मानता अथवा विरोध करता है वह हमारा शत्रु है।
जय श्री कृष्ण !

शुक्रवार, 26 जून 2015

भारतीय इतिहास में सबसे सराहनीय कार्य, अच्छे दिन

मोदी सरकार में किसी के लिए भले ही अच्छे दिन न आये हों !

किन्तु मानवता के साक्षात्कार के दिन अवश्य आ गए हैं।

केन्द्रीय गृहमंत्रालय के नियमन द्वारा 158 पाकिस्तानी मनुष्यों(हिन्दुओं) को भारतीय नागरिकता मिली !
लगभग 4000 मानवों को दीर्घावधि वीजा भी दिया जा चुका है।

अब देखते हैं कि आदमी मनुष्यों पर कैसे अत्याचार कर पायेगा !

जिस दिन हम सब मानव एकत्रित होकर आदमियों(मुसलमानों) पर टूट पड़ेंगे तो इनको रास्ता भी नहीं मिलेगा !

भारतीय इतिहास में अबतक ये सबसे बड़ा कार्य हुआ है।

मैं भारत सरकार को नमन करता हूँ !

वंदे मातरम् !

सोमवार, 22 जून 2015

यथार्थ भारत स्थिति

वन्दे-मातरम् मित्रों !

हमारे देश के सीमा के सुरक्षाकर्मियों में आजतक कोई भी अरबपति नहीं बन पाया !
किन्तु भारत माँ के सपूत अभी भी सुरक्षा हेतु तत्पर हैं।
यह जानकर बहुत ही ख़ुशी होती है।
.
किन्तु दुःख तो तब होता है जब ,
वो कल का लौंडा विराट कोहली,धोनी जैसे लोग अरबपति हो जाते हैं। जबकि ये लोग कई बार देश की नाक कटा देते हैं।

वो कल के सलमान और साहरुख जैसे नचनिये इतने धनवान बना दिए जाते हैं कि न्यायालय खरीद सकते हैं।

मैं ये नहीं समझ पा रहा हूँ कि हमारे देश के सत्ताधारी लोग आखिर करना क्या चाहते हैं।

क्या युवाओं को क्रिकेटर और नचनिया बनने की प्रेरणा देना चाहते हैं ?
अथवा देश के सुरक्षाकर्मियों को नीचा दिखाना चाहते हैं ?

रविवार, 21 जून 2015

प्रथम विश्व-योग दिवस

कुछ चूतिये प्रधानमंत्री जी पर इस प्रकार आरोप लगा रहे हैं मानों बीजेपी वालों ने उनकी बहन ही भगा ली हो !

कल से ही बार बार देख रहा हूँ कि प्रधानमंत्री जी ने तिरंगे से मुँह पोछकर बहुत अपराध किया !

अरे तुच्छो !
हर तिरंगा हमारा राष्ट्रीयध्वज नहीं हो जायेगा !
राष्ट्रध्वज की अपनी एक पहचान है ।
ध्वज के मध्य में अशोकचक्र है जिसमेँ चौबीस तीलियाँ हैं।
राष्ट्रध्वज का अपना नियत आकार है।

अरे सोनिया पुत्रों और केजरी भक्तों !
कभी मिसेज सोनिया के काफिले पर भी ध्यान दिया करो ! उनकी पार्टी वाले तो अशोकचक्र की जगह पंजा छाप कर वर्षों से तिरंगे से मुँह पोछते आये हैं।

सोमवार, 1 जून 2015

धिक्कार है दिल्ली में बैठी सरकार पर

साहरुख खान पहले जोश फ़िल्म में ऐश्वर्या का सगा भाई था,
बाद में मोहब्बतें फ़िल्म में ऐश्वर्या का सगा प्रेमी !
छिः !!!!!!
यही है फ़िल्मी मर्यादा और संस्कार !

और सरकार चन्द पैसोँ की लालच में इसे वैधता प्रदान करती है।

शनिवार, 2 मई 2015

धर्म परोपकार है

आज कहीं पर फसल को हानि हो रही है तो कहीं पर भूकम्प आ जा रहा है, कहीं लोग आत्महत्या कर रहे हैं तो कहीं भूखो मर रहे हैं तो कोई आपदा से मर रहे हैं।  परंतु ईश्वर नहीं आता !
आखिर क्यूँ ????
कारण क्या है ?????

आखिर ईश्वर आये ही क्यूँ !!!!! कौन उसे बुलाना चाहता है !!!!! ईश्वर इतना सामर्थ्यवान है कि वह बिना आये भी सबका संहार कर सकता है।

आज इतनी घृणा है इतनी कटुताएँ हैं मानो मानवता जैसी कोई प्रवृत्ति ही नहीं होती ! ऐसे में ईश्वर से कौन स्नेह करने वाला है!!! ईश्वर का सत्कार कौन करने वाला है। आजकल तो लोग अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने हेतु ईश्वर का नाम लेते हैं। लोग तो केवल दिखाने के ईश्वर की स्तुति करते हैं ।

कोई भी सुखी संसार हेतु ईश्वर से कुछ मांगने वाला नहीं है। सब अपने-अपने स्वार्थों को साधने में लगे हैं। ऐसे में ईश्वर किसके लिए आएगा ???? ईश्वर का तो पूरा संसार है।

आपके समक्ष प्रस्तुत हैं इसी सन्दर्भ में हमारी कुछ काव्यगत पंक्तियाँ :-

संस्कार अब अपंग है !
सत्कार अब छिन गए!
अवतार है रुका हुआ !
करतार है छुपा हुआ !

दिन में न प्रकाश है,
न रात में विश्राम है।
धुंध सा आभास है,
विलाप है संग्राम है।

न वृक्ष का संहार कर,
न पक्षियों पे वार कर।
जंतु से जगत बना,
स्नेह तूँ अपार कर।

जीव पे उपकार कर,
तूँ बड़ा व्यापार कर।
अविनाशी तूँ धन जुटा,
आपदा से मार कर।

धर्म परोपकार है,
न धर्म का विनाश कर।
करतार क्यूँ ही आएगा!
अधर्म का प्रकाश कर!

लूट ले विश्वास को तूँ,
कपट का श्रृंगार कर ले,
कंश की भरमार होगी!
तूँ धरा पे राज कर ले !

देख उसकी गर्जना से,
काँप उठती है धरा !
एक जो प्रहार कर दे,
परिणाम में ये जग मरा।

अहम् में तो जग मुआ,
खोद न तूँ अब कुँआ !
"मौर्य" डर तूँ ईश को,
साध ले मनीष को।
~~~~~~~~~ अंगिरा प्रसाद मौर्य

दिनाँक : 02/05/2015

सभी मानवों से हमारी यही विनती है कि आप ईश्वर से जब भी कुछ माँगना चाहें तो इस प्रकार विनती करें !
"हे ईश्वर ! हे परमेश्वर !
हमसे जाने-अन्जाने जो भी अपराध हुए हैं उसे क्षमा कर दो प्रभु !
हे महेश ! हे वृजेश !
हमें सद्ज्ञान दो प्रभू !
हमें सद्बुद्धि दो प्रभु !
हमारा मार्गदर्शन करो प्रभु !"

क्योंकि,
"बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख"

अर्थात्- यदि आप प्रत्यक्ष इच्छा नहीं व्यक्त करते हो तो ईश्वर आपको आपने अनुसार वो सबकुछ देगा जिससे आपका जीवन सुचारू रूप से चलता रहेगा और विश्व का भी कल्याण होगा।

जय श्री कृष्ण!
जय हिन्द !