बुधवार, 26 अगस्त 2015

हिन्दी मेरी भाषा है


हम पहले अंग्रेजी शब्दों एवं वाक्यों का प्रयोग करते थे ।
किन्तु ,
          जब हमें ये पता चला कि यदि भारत में अंग्रेजी शब्दों का प्रचलन इतना होता जा रहा है और हिन्दी न के बराबर हो रही है। तो हमने भविष्य पर विचार किया !

हमे यह पता चला कि यदि हिन्दी पूर्णतः समाप्त हो गयी तो हमे स्वामीविवेकानन्द, दयानन्द सरस्वती आदि महापुरुषों(हमारे पूर्वजों) के इतिहास को भी समाप्त करना पड़ेगा !

और यदि ऐसा हुआ तो हमे उदाहरणार्थ केवल अंग्रेजी महापुरुषों को स्मरण रखना होगा।
तथा
कल की पीढ़ी से कोई अंग्रेज पूँछ लेगा कि संसार को तुमने क्या दिया या तुम्हारे पूर्वजों ने क्या दिया ?
तब उन्हें निरुत्तर हो जाना पड़ेगा तथा लोग उनका परिहास भी उड़ा सकते हैं।
अतः,
हिन्दी मेरी भाषा है, हिन्दी मेरी प्राण है ।
हिन्द में हिन्दी ना जाने जो, समझो वो एक राण है।
#APM

मंगलवार, 11 अगस्त 2015

धर्म में अपवाद तथा मान्यताओं का दुरूपयोग

इस विषय पर हमारे मन में बहुत सारे प्रश्न उठते हैं और मैं इन प्रश्नों पर निरंतर चिंतनरत रहता हूँ।
आपके समक्ष उन्हीं प्रश्नों सहित उसका खंडन कर रहा हूँ! क्योंकि हो सकता है आपको भी ऐसे प्रश्न कभी कभी विचलित करते हों !
जय श्री कृष्ण !

प्रश्न 1 : क्या आज की जागरूक पीढ़ी अथवा साक्षरता के इस युग में धर्मसंगत अथवा धार्मिकता हेतु दिशा-निर्देशों की आवश्यकता है ?

खण्डन : हाँ दिशा-निर्देशों की आवश्यकता आज भी है और भविष्य में भी रहेगी !
किन्तु, इसके विभिन्न खण्डों को मान्यता देना अपवाद है। यह एक विसंगति पूर्ण अथवा त्रुटिपूर्ण प्रक्रिया सिद्ध होगी यदि धर्म अथवा धार्मिकता विभिन्न खण्डों में विभक्त हो जायेगी ।

प्रश्न 2 : साक्षरता के इस युग में क्या धर्म के ठेकेदार आवश्यक हैं ?

खण्डन : बिलकुल नहीं ! साक्षरता के इस युग में पत्रकारिता एवं शिक्षापद्यति के माध्यम से हमारे देश के न्यायालयों अथवा प्रशासन को यह निर्णय लेना चाहिए कि धर्म क्या है और अधर्म क्या है। इसके लिए ठेकेदारों की नहीं समझदारों की आवश्यकता है।
समझदार अर्थात् घर परिवार के बुजुर्गों/श्रेष्ठों का यह कर्तव्य है कि अपने परिजनों को धर्म अधर्म की जानकारी दें एवं शान्ति सौहार्द हेतु प्रेरित करें ।

प्रश्न 3 : यदि धर्म के ठेकेदार यथा शंकराचार्य, महामण्डलेश्वर आदि को जनता मान्यता देती है एवं दान करती है। तो क्या दरिद्रता से पीड़ित करोड़ों की जनसँख्या वाले देश में इन महाशयों को सोने चाँदी के मुकुट अथवा रथ बनवाना शोभा देता है ?

खण्डन : कदापि शोभायमान कृति नहीं हैं ये सब । संत महात्माओं ने सूखी रोटी खाकर सदा ही अपने जीवन को जनमानस के उद्धार में लगाया है। सनातन धर्म का इतिहास इसका प्रमाण है।
कंश में समय में मथुरा के कुलगुरु मुनि गर्ग थे। उन्होंने राजमहल में कभी भी अनावश्यक समय नहीं बिताया। वे अपनी कुटिया में सूखी रूखी खाकर आपदाओं एवं विपदाओं का सामना करने हेतु सदैव तपस्यारत रहते थे । वे चाहते तो कंस को सिंहासन से उतारकर स्वयं भी बैठ सकते थे किन्तु यह उनके धर्म के विपरीत था क्योंकि वो संत थे। इसी प्रकार से ही सभी मुनियों की जीवनी है धर्मग्रन्थ जिसके प्रमाण हैं।

प्रश्न 4 : धर्म के तथाकथित ठेकेदार जनता के धन से अनेकों सुविधाएं लेते हैं। क्या इन्होंने आजतक कोई अविष्कार किया ?
अथवा किसी भी पुराने मन्त्र को सिद्ध कर पाये ?

खण्डन : आज जो भी ठेकेदार हैं यथा संकराचार्य अथवा महामंडलेश्वर आदि ये लोग योगी नहीं अपितु भोगी हैं इन्हें मानना अथवा इनके दिशा-निर्देशों पर चलना मूर्खतापूर्ण हैं। इतना ही नहीं! इन तथाकथित ठेकेदारों का समाज में उच्चस्तर पर बने रहना भी एक छल है जो कि चन्द लोगों का चक्रव्यूह है। और सामान्य जनमानस भोलेपन के कारण इसमें फँस जाता है।

आप विचार कीजिए !
कोई भी संस्था अथवा प्रशासन यदि किसी वैज्ञानिक को पैसा देता है तो वो नए नए अविष्कार करता है।
किन्तु,
ये तथाकथित ठेकेदार वो रूढ़िवादी परम्पराएँ ढो रहे हैं जो कि हमारे सम्मानित मुनियों एवं महर्षियों को सम्मान दिया जाता था।
ये तथाकथित लोग ये चाहते हैं कि जनता वही करे जो ये कहें !
किन्तु ऐसा तो तभी संभव हो सकता है जब ये लोग भी सिद्धपुरुष हों ! इनमे भी योग्यता हो !
इतना ही नहीं हमारे वेद-ग्रन्थों में अनेकों मन्त्र हैं उनमे एक भी मन्त्र की सिद्धि किसी के पास नहीं है।

इस प्रकार के ठेकेदारों को कुछ भी दान नहीं करना चाहिए । यदि आपको किसी मन्दिर में जाने की बाध्यता है तो आप अपने घर पर भी ईश्वर की पूजा उपासना कर सकते हैं। आपको दान ही देना हो तो अपने परिवार को दीजिए अपने आसपास उपस्थित किसी असहाय को सहायता कीजिये। यही पूण्य कार्य है।

और अब अन्त में,
प्रश्न 5 : सही अर्थों में धर्म क्या होता है ?

खण्डन : भगवत् गीता में भगवान ने कहा है कि धर्म व्यक्तिगत होता है।
किन्तु,
आज के अल्पबुद्धि वाले इस युग में मैं कहता हूँ कि "धर्म पहले नीतिगत होता है पुनः व्यक्तिगत होता है।
अर्थात् पहले व्यक्ति धर्म की नीतियों को जाने तद्पश्चात वह अपनी व्यक्तिगत परिस्थिति में धर्म अधर्म में अंतर स्वयं कर लेगा।

हमने यह चिंतन हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई आदि में से किसी एक के लिए नहीं अपितु समस्त मानवजाति के लिए किया है।

आपका शुभचिन्तक : अंगिरा प्रसाद मौर्य ।
जय श्री कृष्ण !

गुरुवार, 6 अगस्त 2015

समाज में सज्जनों की सक्रियता अति आवश्यक है

एक आतंकवादी को बचाने के लिए कुछ देशद्रोही एक हो जाते हैं ,
पर बात जब देशभक्ती की आती है तब लोग यह कहकर किनारा कर लेते हैं कि हमें राजनीति से क्या लेना !

अरे महाशयों !
यदि आप सच्चे लोग राजनीति की बात नहीं करेंगे, प्रेरणाएँ नहीं देँगे तो क्या आने वाली पीढ़ियों को गलत क्या है सही क्या है समझ आ सकती है ?
बिलकुल नहीं !

यदि आप एक अच्छा समाज, एक अच्छा सा राज/देश चाहते हैं तो आपको अपनी आवाजें बुलन्द करनी पड़ेंगी !

आपका शुभचिंतक - अंगिरा प्रसाद मौर्य

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वन्दे-मातरम् !

बुधवार, 5 अगस्त 2015

पॉर्न साइट्स porn sites

अब जब संसद तक पॉर्न की बात पहुँच ही गई और कुछ मीडिया कलाकार भी पॉर्न के आदी हैं तो इस पर विचार देना उचित हो जाता है।

पोर्न का तात्पर्य "कामोद्दीपक" से है अर्थात् काम की उत्तेजना बढ़ाने वाला !

संसार में जीवन के लिए काम का होना अति आवश्यक है किन्तु पूरा दिन अथवा पूरा जीवन कामभावना में ही बीते तो वह समाज के लिए भी भयावह है और स्वयं के लिए भी !

ऐसा कौन सा व्यक्ति होगा जिसमें काम भावना का उदय नहीं हुआ अथवा होता नहीं होगा ! कोई भी नहीं है ? यहाँ तक की जीव-जन्तु भी नहीं !

हमने कई पॉर्न साइट्स के अध्ययन किये !
जहाँ पर यह पाया गया कि,
पुत्र के द्वारा माँ का बलात्कार!
माँ के द्वारा पुत्र का बलात्कार !
भतीजे द्वारा चाची का बलात्कार !
चाची ने भतीजे का बलात्कार किया !
शिक्षक ने शिक्षिका का !
शिक्षक ने छात्रा का !
शिक्षिका ने छात्र का !
छात्र ने शिक्षिका का !
बहन ने भाई का !
भाई ने बहन का !
पिता ने पुत्री का !
तथा पुत्री ने अपने दादा का बलात्कार किया !

अब मैं आप सभी से पूंछना चाहूँगा कि,
क्या यही आज की जरुरत है ?
अथवा यही नैतिकता है ?

यदि सब समय की माँग है और लोग पॉर्न फिल्मों का समर्थन करते हैं तो मैं समझता हूँ कहीं पर भी बलात्कार नहीं होता ? सब झूठी घटनाएँ हैं ।
हमें जो सिखया पढ़ाया जायेगा हम वही तो करेंगे !

आपका शुभचिंतक - अंगिरा प्रसाद मौर्य
आप सभी के विचार सादर आमंत्रित हैं !

रविवार, 2 अगस्त 2015

मित्रता दिवस

सादर नमन स्वजनों !
आज सुबह से हमारे कुछ मित्रों के मन यह प्रश्न अवश्य उठ रहा होगा कि हमने मित्रता दिवस पर शुभकामनायें क्यों नहीं दिया ?

उसका उत्तर यह है कि प्रतिदिन हमारे लिए मित्रता का ही दिन होता है न कि शत्रुता का ! और शुभकामनायें भी हम रोज देते हैं।

मैं आप सब लोगों को बता देना चाहता हूँ कि,
यदि एक आतंकवादी से कोई सहानुभूति प्रकट करने लगता है तो ऐसा करने वालों की भीड़ लग जाती है।

इसी तरह यदि कोई शत्रुता दिवस का भी प्रचलन शुरू कर दे तो उसे भी इस चुतियापा के दौर में अनुशरणकर्ता मिल जायेंगे !

क्या है ये सब ?
क्या दीवाली और होली जैसे हमारे भारतीय त्यौहार मैत्री स्थापित्य के सन्देश नहीं देते ?

आज हम यदि मित्रतादिवस मान लें तो क्या और सारे दिन शत्रुता के हैं क्या ?

मित्रता का मूल उद्देश्य है एक दूसरे को लाभ पहुचाना ! और जो इस कथन को नहीं जानता अथवा नहीं स्वीकारता वह कभी भी मित्रता नहीं कर पायेगा ।

अब कोई स्वच्छता दिवस की पहल कर दे तो इसे भी मैं अपवाद ही मानूँगा क्योंकि स्वच्छता और मित्रता ऐसी चीजें हैं जिनकी आवश्यकता इस संसार के लिए सदा से रही है और सदा ही रहेगी ।

अब आप योग-दिवस को अपवाद माने तो यह आपके बीमार सोच का परिचय देगी !
क्योंकि योग एक प्रणाली है जिसमें प्रावधान एवं शर्तें हैं तथा इसे जानने के लिए पूरे विश्व भर में किसी एक दिन का चयन किया जाय तो वह मानवता की पराकाष्ठा है।
जय श्री कृष्ण !
आपका शुभचिन्तक - अंगिरा प्रसाद मौर्य