गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

जय हिन्द

कतरों-कतरों में लिपटा लुट रहा है चमन,
दे के अग्नी-परीक्षा जो मिला था जनम,
दुश्मन बने आज देखो उसी के हैं हम,
बना मत्भ्रष्ट भारत व दरिन्दे-सनम।।

न देगा कोई अब "भगत सिंह" को जनम,
न होंगे "सुभाष" यहाँ रण के गरम,
होंगे न "बापू" अब ओ अहिंसा-परम,
आज होता यहाँ बस "मतों" का हनन।।

बाँट सम्प्रदायों की करके आज करते गुणन,
हैं "दिवाली" को कटते यहाँ "गायों" के 'मटन',
सहा जाता नहीं अब सभ्यता का पतन,
कि जय हिन्द कहते भी आज आती शरम।।

क्या सुधरेगा भारत या यूँ अब होगा दमन,
क्या सहेगी ये जनता अत्याचारो-जघन,
क्या यही है ओ धरती लेंगे जहाँ "कल्कि" जनम,
क्या यहीं हैं सब दानव व असुरो-अधम।।

हाँ सुधरेगा भारत व खिलेगा फिर  ये चमन,
सह पायेगी न जनता ये अत्याचारो-जघन,
हाँ आयेंगे कल्कि यहाँ बनके भारत-रतन,
हाँ यहीं हैं भ्रष्टाचारी व असुरों-अधम।।
                   APM
~~~~~~~~~अंगिरा प्रसाद मौर्या

~~~~~~~~~Angira Prasad Maurya

दिनांक:- ०५/१२/२०१३