मंगलवार, 1 जुलाई 2014

हमारी संस्कृति पर चोट कभी भी युवा सोच नहीं हो सकता । यदि संबंधों का नीतिगत उपयोग किया जाय तो वह शोक नहीं हो सकता।

युवाओं की सोच :-

युवाओं की सोच उनके बचपन की सीख और वर्तमान वातावरण पर निर्भर करता है। यदि एक परिवार का मुखिया अपने युवाओं की सोच को सकारात्मक सोच अथवा कोई नई दिशा देना चाहता है तो शायद सम्भव हो सकता है।
परन्तु,
यदि एक गाँव का मुखिया गाँव के सभी युवाओं को कोई नई दिशा देना चाहे तो पुर्णतः सम्भव हो जायेगा।
इसी तरह यदि किसी देश का मुखिया भी युवाओं को सकारात्मक अथवा कोई नई दिशा देना चाहे तो वह भी सम्भव है।

आखिर कैसे संभव है? :-

इस पर विभिन्न व्यक्तियों के विभिन्न दृष्टिकोण हो सकते हैं जिनको एकीकृत करके लागू करने की आवश्यकता होती है।

जिसमे से हमारे दृष्टिकोण की कुछ झलक इस प्रकार है-

शिशु को वही सिक्षा दिए जाँय जिसे वह बुड्ढे होने तक भी न भूले ।

शिक्षा व्यवस्था पर सकारात्मकता लाने हेतु हर वर्ष एक राष्ट्रीय और एक अन्तर्राष्ट्रीय जाँच दल कार्यरत होने चाहिए।

उच्चतर शिक्षा से ज्यादा केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार हो उसे प्रथम शिक्षा-आधार(बेसिक) पर ज्यादा मजबूत होना चाहिए ।

सभी अध्यापकों को अपने कर्तव्य/जिम्मेदारी में पूर्णता लाने का सदैव प्रयास करना चाहिए, क्योंकि कोई भी चीज कभी पूर्ण नहीं होता अपितु परिवर्तित होते रहता है। जैसे लक्ष्य पूर्ण होने के पहले ही या तो वह बढ़ जाता है अथवा उसकी दिशा बदल जाती है।

इत्यादि ।
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हमारी संस्कृति पर चोट:-

जैसा कि स्वामी स्वरूपानंद जी भी इसपर टिपण्णी कर चुके हैं । जिन्हें समाज की पूर्ण सहमति की विशेष आवश्यकता है। हम तो पहले से ही सहमत हैं।
क्योंकि,
किसी को छोटा बताकर स्वयं को बड़ा बताना बिलकुल गलत है।
परन्तु,
रोज स्नान कर मैल को गन्दा बताना स्वयं को स्वच्छ समझना और फ़र्स पर जमी हुई धूल अथवा कीचड़ को साफ़ करने हेतु धूल को वहाँ से हटाना इत्यादि बिलकुल सही है।

जहाँ तक चोट पहुँचाने वालों की बात है तो ये सब अंग्रेजों का षडयंत्र ही है जिसपर संदेह नहीं किया जा सकता। और उन्हें सफल अथवा असफल बनाने में हम सभी भारतवासी जिम्मेदार हैं, जिसका सबसे ज्यादा श्रेय श्रेष्ठों और कोंग्रेस को जाता है। यदि आज की सरकार चाहे तो वह अपने देश के सभी युवाओं को सकारात्मक बना सकती है। किन्तु यह उतना सरल नहीं है कि आज कच्चा केला काट लाये उसमे रसायन लगा दिए और रातभर में पक जायेगा। इसके लिए बहुत संघर्ष करना पड़ेगा।
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विदेशियों अथवा अंग्रेजों को हमसे आखिर क्या शत्रुता है और क्यों जारी करते हैं षडयंत्र :-

आज तो हमारे जैसे लोगों के पास दो जून की रोटी इकट्ठे करने के पश्चात् शायद समय ही नहीं बचता अतः हम खोज क्या करेंगे !
किन्तु आप पाएंगे कि ये अंग्रेज खोज करने में सबसे आगे हैं अविष्कार करने में सबसे आगे हैं।
आखिर कारण क्या है ?
ये वही आविष्कारक और खोजी हैं जिनके जन्मदाताओं ने हमारे धर्मग्रंथों एवं शास्त्रों का पहले अध्ययन किया था और फिर उन्ही निष्कर्षों के सहारे, वही उत्तर्माला देखकर ही प्रयोग करना शुरू किया था। और परिणाम सत प्रतिसत सत्य को परिभाषित करता था।
उन्हें आज भी इस बात का डर है कि कहीं इन भारतीयों को हमारी असलियत का पता न चल जाय। और भारत की जगह नकलची की उपाधि उन्हें न मिल जाय। यही एक कारण है कि हमारी और उनकी शत्रुता है।
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तो आखिर हम लोग ही अपने को आधार मानकर क्यों नहीं कोई नई खोज करते :-

भारत में यह एक बहुत बड़ी विडंबना है कि पांडित्य/पाखंडियों के चलते नालंदा विश्वविद्यालय के संग्रहालय में रखी हुई पुस्तकों को जला दिया गया जिससे यह पुर्णतः स्पष्ट हो पाता कि केवल हम्ही नहीं अपितु सभी सनातनी हैं । पाखंडियों का भय इतना प्रबल था कि पुस्तकें जो पीतल, तांबे, काँसे आदि की थीं कुछ महीनों तक जलता रहा किन्तु उसे बुझाने तक की साहस किसी ने नहीं की।

इसी कारण आज हमारे भारत में तमाम विसंगतियों एवं मतभेदों का जन्म हो गया। कोई बुद्ध को बड़ा बता रहा है तो कोई राम को तो कोई साईं को। अब इनसब मतभेदों के चलते हमारे बुद्धिजीवी अथवा स्वदेशी वैज्ञानिक ग्रंथों की तरफ विशेष ध्यान नहीं देते । और प्रत्येक धार्मिक बात को हल्के में ही लेते हैं।

और आज जो कहते हैं कि हम सनातनी हैं और उनके पास प्रमाण भी है तो,
हम उनसे एक प्रश्न भी करना चाहेंगे कि यदि यह सृष्टि ब्रह्मा द्वारा उदित हुई है तो ये जो अंग्रेज हैं, ये जो मुसलमान हैं इत्यादि में से कौन-कौन ब्रह्मा के किन-किन पुत्रों के परिवारों में से हैं? एवं किसी भी भाषा का निर्माण सर्वप्रथम किसने किया ? यदि सनातनी इतिहास में इसका उत्तर न हो तो हमारे अनुसार वह पाखंडियों एवं अंग्रेजों के षडयंत्र से यह भी एक काल्पनिक इतिहास है जो सनातन इतिहास के आधार पर बनाया गया है।
क्योंकि इसी इतिहास के अनुसार ही मैं ये घोषित करता हूँ कि हमारे भारत में मुसलमान भगवान श्री कृष्ण के समय में ही आये थे। अतः इसके आधार पर हमारा यह प्रश्न बनता ही है।
अब,
विषय की सीमा के काफी परे आ गए अतः अब विषय की ओर चलते हैं-----------....!
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संबंध:-

हमारे अनुसार संबंध प्रायः दो प्रकार के होते हैं-
१. मर्यादित
२. अमर्यादित
अब विभिन्न दिशाओं में इनके भी बहुत से प्रकार हैं। लेकिन पाठकों को ध्यान में रखते हुए इतना ही काफी है।

१.मर्यादित :-
ये वो संबंध हैं जो विशेष निति द्वारा नीतिगत होते हैं और प्रत्येक के अपने-अपने मायने/अर्थ/आशय हैं तथा राम एवं रामायण इन संबंधों के लिए मार्गदर्शक एवं इसके साक्षी भी हैं।

२. अमर्यादित:-
बात कहने लायक नहीं है लेकिन नहीं कहूँगा तो स्पष्ट भी नहीं होगा।
जैसे - वेश्याओं से संबंध रखना,
यदि प्रत्यक्ष नियंत्रक न हो तो मर्यादा के बाहर होकर किसी बुरी आदत से संबंध रखना,  जो कि किसी विशेष कारण से उदित हो उसका हर समय उपयोग करना, जबकि वह विशेष आवश्यकता हेतु ही है। इत्यादि।
कुल मिलाकर जो मर्यादा के विरुद्ध हो वही अमर्यादित है जिसे आज अवैध कहा जाता जबकि सभी के मायने सही नहीं हैं क्योंकि कुछ चीजें वैध होना चाहिए वो अवैध हैं और कुछ चीजें अवैध होना चाहिए तो वैध हैं।
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live in relationship(संबंध में रहना):-

हमें तो इसके बारे में ज्ञात नहीं था लेकिन श्री कश्यप जी के विशलेषण द्वारा ज्ञात हुआ कि इसे एक चलन अथवा प्रचलन के आधार पर आजकल माना जा रहा है। इस जानकारी हेतु मैं आदरणीय राजेश जी को बहुत आभार व्यक्त करता हूँ।

जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि ये अंग्रेज वाले हमारी ही नकल करते हैं और किये भी हैं। और इसके पहले के ब्लॉग में हम यह भी बता चुके हैं कि उनके पास अपना कोई भी नियम और सिद्धांत नहीं है।

आज हमारी कृष्णलीला पूरे विश्व में पढ़ी जाती है और ये अंग्रेज हमारे ग्रंथों को पहले से ही पढ़ने-जानने के आतुर हैं। इसी के अनुसार भगवान श्री कृष्ण के रासलीला के अंतर्गत ही अंग्रेजों ने एवं हमारी फ़िल्मी दुनियाँ ने ऐसे चलनों को गठित किया है।
जबकि वह हमारे श्याम के गूढ़ को न जानते हुए उनका अनुशरण करने के बजाय अनुकरण करते हैं। अर्थात रास करके ही स्वयं को कृष्ण घोषित करना चाहते हैं। और कुछ अंग्रेजों तथा दुर्बुद्धि मानवों का ऐसा भी मत है कि प्रेम के इस पहलू से जो गुजरेगा वही शक्तिमान बन सकता है।
परन्तु ऐसा बिलकुल नहीं है। श्री कृष्ण भगवान हैं और हम साधारण मानव। यदि यह बात जो स्वीकार नहीं करता तो श्री कृष्ण ने पूरे गोवर्धन पर्वत को उठाकर एक ही ऊँगली पर रोक रखा था। और कोई अपने दोनों हाथों से एक टीला ही अपने सर पे ही रखकर दिखाए ? जब वे मथुरा गए तो अपने लक्ष्य पर दृढ़ रहते हुए कभी भी राधा से मिलने नहीं आये जबकि सबकुछ उनके वस में था लेकिन बस राधा को याद ही किये। आज तो लोग अपने झूठे प्यार के चलते अपने पिता को ही मार देते हैं जबकि पिता ही हमारे लक्ष्य के उद्घोषक होते हैं। भगवान के पास सबकुछ होते हुए कुलगुरु मुनि गर्ग की आज्ञानुसार गुरु परंपरा को बनाये रखने हेतु वे मथुरा से नंगे पाँव भिक्षा मांगते हुए मुनि सांदीपनी के आश्रम उज्जैन तक गए और गुरु की आज्ञानुसार 65 दिनों तक भिक्षा मांगे और लकडहार की तरह लकड़ियाँ भी तोड़े और ६५ विद्याओं में अद्वितीय स्थान प्राप्त किये। और आज यदि गुरु किसी गलती पर डांट दे तो लोग गुरु को तो उड़ा ही देंगे और परिवार वालों सहित घर भी फूँक जला देंगे।
क्यों भाई ????????
यदि अनुकरण ही करना है तो प्रत्येक कार्यों एवं क्रियाओं का अनुकरण करो।
पता नहीं हमारी सरकार ही आजतक कैसी रही कि उसने इसपर कभी विचार ही नहीं किया कि फिल्मों में ये गाने नाच के साथ क्यूँ रखा जाय ? इससे हमारा धार्मिक पतन होगा अथवा उन्नति होगी।
और आज की बागडोर एक स्वदेशी व्यक्ति के भी हाथ में आई है। लेकिन इनका भी अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। कि क्या क्या करेंगे ?

हमें इस (live in relationship) में हमारे परम पूज्य प्रभु की छवि को बिगाड़ने का षड्यंत्र प्रतीत होता है। अतः इसका विरोध करना हमारा कर्तव्य है।

कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि युवाओं की सोच सभ्यता के लिए घातक नहीं हो सकती जिसका साक्षात्कार आप हम से कर सकते हैं क्योंकि मै भी एक युवा ही हूँ।
और "लिव इन रिलेशनशिप" एक ऐसी प्रथा है जिसका प्रचलन यदि पूरे संसार में हो जाय तो पूरे संसार को यह वर्णसंकर बनाने पर प्रतिबद्ध है। वर्णसंकर संताने पूरी तरह नकारात्मक प्रवृत्ति के ही होते हैं जिनके लिए कोई भी रिश्ता कोई मायने नहीं रखता। केवल उनका शरीर और थोड़ी सी बुद्धि ही उन्हें मानव कहलवाती है अन्यथा वे पशु के सामान ही होते हैं। और इसी भय से अर्जुन महाभारत का युद्ध भी नहीं करना चाहते थे।
अतः हमे इसे रोकने का पूरा प्रयास अवश्य करना चाहिए।

                   ~~~ अंगिरा प्रसाद मौर्या।

!!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!

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