रविवार, 13 जुलाई 2014

-:महिलाओं का अधिकार:-

लोग कहते हैं महिलाओं को अधिकार नहीं मिल रहा है उनको भी अधिकार मिलना चाहिए।
"
किन्तु मैं कहता हूँ कि पुरुषों को उनका अधिकार नहीं मिल रहा है उन्हें क्यूँ इस अधिकार से वंचित रखा जाता है।
*********

महिलाओं को अधिकार मिलना चाहिए, जब यह बात कोई पुरुष अथवा राजनेता कहता है तो निश्चय ही समझ लेना चाहिए की वह लोक-लुभावानता के लिए ही कहता है अथवा स्वयं को पूज्य बताने हेतु ही कहता है, अब इनसे आप सदैव ही बचेंगे ऐसी हम अपेक्षा रखते हैं।

वास्तव में महिलाओं का अधिकार वही चाहता है जो सबसे पहले महिलाओं का सम्मान करता है तथा अपने परिवार में और समाज में उनको अधिकार देने के लिए नतमस्तक हो। लच्छेदार बातों से तो व्यापार ही होता है प्यार कभी नहीं हो सकता।
*********

कल रविवार था। यह कल की ही बात है। मैं मुंबई के उपनगरीय मार्ग पश्चिम रेलवे की सामान्य रेल से यात्रा कर रहा था। यात्रा के दौरान मैंने देखा कि सामान्य डब्बे में जिसमे मैं बैठा हुआ था उसी में एक बहुत बड़ा परिवार सवार हुआ जबकि उसमे भीड़ इतनी थी कि यदि मैं उस समय उस रेल स्थानक अथवा ठिकाने पर होता तो मैं अकेला होते हुए भी उस रेल को कदापि न पकड़ता। और यहाँ की उपनगरीय रेल में महिलाओं के लिए भी अलग से डब्बे होते है। कुछ रेल तो केवल महिलाओं के लिए ही होते हैं उसमे पुरुषों का जाना वर्जित होता है।

लेकिन वह पूरा का पूरा परिवार उसी भीड़ में ही चढ़ा। उसमे चार युवतियाँ और एक औरत, दो अधेड़ तथा एक युवक शामिल थे। सब के सब महिलाएँ अभद्र अथवा पश्चिमी वस्त्र पहनी थी। उनमे जो औरत अथवा उनसब की माँ थी वो सबसे अभद्र वस्त्रों को धारण किये हुए थी।

एक दूसरे को रगड़ते-रगड़ते वे लोग मेरे पास ही आ पहुंचे। तब तक मेरे किनारे से एक युवक उठ पड़ा और एक युवती पास में बैठी। मैं भी खड़ा हो जाता यदि उस रेल में महिला-विशेष डब्बा ना होता तो।
*********

अब जरा सोचिये !
उन महिलाओं की रगड़ से कुछ को आनंद आया होगा और कुछ को आश्चर्य हुआ होगा और कुछ को परेशानी। परेशानी उसको ही हुई होगी जो महिलाओं की सत्ता को मानता होगा और वास्तव में उसके घर में महिलाएँ होंगी तथा वह महिलाओं से वात्सल्य भाव रखता होगा।

किन्तु इस पर ध्यान देने के लिए कोई भी राजनेता आगे नहीं आयेंगे और यदि कोई एक आगे आता भी है तो दस मिलकर उसे गलत बताने को तुरंत तैयार हो जायेंगे।

ऐसे में लोग कहते हैं की बलात्कार की संख्या बढ़ी है यह पूरे समाज को शर्मशार कर रही है। क्या उस परिवार के युवक ये नहीं बता सकते थे कि महिलाओं को उनके डब्बे में ही बैठना चाहिए। और यदि वे पुरुष महिलाओं का आदर करते थे तो क्या महिलाओं को नहीं यह सूझना चाहिए कि उन्हें उचित डब्बे में ही सवार होना चाहिए। लेकिन नहीं ! यदि वह ऐसा कर देंगी तो उन्हें यह कैसे ज्ञात होगा कि उनके प्रति कितने लोग आकर्षित होते हैं।
*********

यहाँ पर तो रेलवे में ही नहीं अपितु परिवहनों(बसों) में भी महिला विशेष बैठक होता है। ऐसे में महिलाओं को सामान्य बैठक पर बैठना कितना उचित है ? और यदि पुरुष उनकी बैठक पर बैठते हैं तो उनको खड़ा कर देना कितना उचित है? रेल में सामान्य डब्बों में महिलाओं को वर्जित क्यों नहीं किया जाता ?
क्योंकि यदि ऐसा होगा तो महिलाओं के प्रति शोषण और बलात्कार जैसी भावनाओं का जन्म/उदय कैसे होगा ?
*********

ऐसे में तो हमारा एक ही सुझाव है कि अब महिलाओं को अपने अधिकार हेतु नहीं अपितु पुरुषों के अधिकार हेतु लड़ने की आवश्यकता है अथवा लड़ना चाहिए। नारी का भी कोई अस्तित्व है यह बताना चाहिए। आखिर कब तक पुरुषों के उपकार में दबी रहेंगी। कब तक श्रीमती लिख के उनका नाम उड़ा के किसी और का नाम लिखा जायेगा।
वैसे जहाँ तक अस्तित्व की बात है इसपर किसी अगले लेख में बात करेंगे !

  !!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!

        ~~~ अंगिरा प्रसाद मौर्या ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें