शनिवार, 27 दिसंबर 2014

केवल फ़िल्म ही नहीं ! फिल्मकारों पर भी लगने चाहिए बैन

फ़िल्म पीके pk की बचकानी हरकते कुछ इस प्रकार है :-

यह फ़िल्म यह बताना चाहती है कि 20₹ लीटर दूध है इस महंगाई में इसे शंकर भगवान पर नहीं चढ़ाने चाहिए अपितु उसे निर्धनों में बाँट देना चाहिए।

फ़िल्म pk का सन्देश है गाय को चारा खिलाना कोई धर्म नहीं है।

फ़िल्म pk का सन्देश है जो भगवान से डरते हैं वही मंदिर जाते हैं।

फ़िल्म pk का सन्देश है राममंदिर अथवा कृष्ण मंदिर नहीं बनवाना चाहिए, अथवा दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है "फ़िल्म कहना चाहती है कि मंदिर बनाना पाप है !

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फ़िल्म वालों को हमारी प्रतिक्रिया :-
आज की महंगाई में तो 20₹ बहुत ही कम होता है। फ़िल्म वाले करोड़ो रूपये खर्च करते हैं फ़िल्म बनाने में, अगर वही पैसा निर्धनों के बजाय गरीबों बाँट दिए जाँय तो  शायद, अल्ला के नाम पे देदो ! मौला के नाम पे दे दो ! ये सब बंद हो जायेंगे। सबको घर बैठे ही पैसा मिलने लगेगा। फिर उन्हें कटोरे लेकर घूमने जितना भी संघर्ष नहीं करना पड़ेगा।

गाय को चारा खिलाना अगर धर्म नहीं है तो क्या गौहत्या धर्म है ?????? आजतक हमने ऐसा कहीं नहीं सुना कि आमिर खान जीव-हत्या के विरुद्ध बोले हों। क्योंकि ये भी एक इस्लामिक हैं और isis के लोग भी इस्लामिक।

जो भगवान से डरते हैं वो केवल दिन में एक ही बार मंदिर जाते हैं।
जो पाँच बार नमाज करते हैं वो अल्ला से नहीं डरते। और इतना ही नहीं ! नमाज लाउडस्पीकर की तेज आवाज में करते हैं। इस पर आमिर खान अथवा हिरानी के पास कोई सन्देश ही नहीं है।
अरे !!! कम से कम फ़िल्म में इतना बता दिए होते की अल्ला(ईश्वर) कम सुनते हैं जिन्हें लाउडस्पीकर से आवाज लगानी पड़ती है। तो भी आमिर का रवैया खुल के समझ में आता।

अगर धर्म की परंपरा तथा धार्मिकता को बनाये रखने के लिए मंदिर बनाना पाप है! तो क्या इराक के इस्लामिकों द्वारा किया जाने वाला अनाचार, नरसंहार, बलात्कार करना पूण्य है। यदि ऐसा ही है तो फ़िल्म वालों को अपनी माँ-बहनों-बेटियों को भेज देना चाहिए इराक में।
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धिक्कार है ऐसे सेंसरबोर्ड(अभिवेचन संघ) पर !
धिक्कार है दिल्ली में बैठी ऐसी भारत-सरकार पर।
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आप भी हमें अपने विचार अवश्य लिखें /-

बहुत ही व्यथित हूँ - अंगिरा प्रसाद मौर्या।
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