जो श्रृंगार अनुपयुक्त होता है अथवा जो चलन उचित नहीं है उसे ही अभद्र कहा जाता है तथा जिससे इसका प्रादुर्भाव होता है उसे अभद्रता का प्रतीक माना जाता है।
अश्लीलता का शाब्दिक अर्थ वास्तविकता है। किन्तु वास्तविकता का आशय सत्यता से है और अश्लीलता का तात्पर्य प्रतिबंधित वस्तु अथवा वक्तव्य को प्रदर्शित अथवा चित्रित करने से है।
अभद्रता और अश्लीलता दोनों ही हमारे भारतीय समाज एवम् संस्कार के लिए कई दशकों से प्रताड़ना रहा है। हमारे हिन्दू समाजसेवियों ने इसके विरुद्ध बहुत अभियान चलाये और बहुत अभिभाषण दिए किन्तु असफल रहे और अश्लीलता दिन-प्रतिदिन भारत में हावी है।
आज की परिस्थिति मानों इस प्रकार है कि इसके विरुद्ध बोलने का किसी में साहस भी नहीं है।
क्योंकि अब यह समाज के नस-नस तक फ़ैल चुकी है।
अश्लीलता एवम् अभद्रता के विस्तार का कारण:-
सबका ईश्वर एक ही है। किन्तु लोकतान्त्रिक समाज में भी सबका स्थान भिन्न है, वो भी योग्यता के अनुसार नहीं! कथित जाति के अनुसार। एक बुड्ढा व्यक्ति अपने बच्चे के आयु के व्यक्ति को बाबा कहे और उसकी आज्ञाएं माने। इसी प्रकार बहुत ही पाखण्ड व्याप्त था हमारे समाज में।
पाखण्डों की प्रताड़ना में भारतीय समाज का कुछ हिस्सा अनावशयक दण्ड भोगने पर नित्य विवश था। वह क्या करता वह असहाय था। ईश्वर सबका एक है यही ध्यान में रखकर वह सोचता था कि हमारे भी दिन आएंगे कभी।
नारियाँ भी घोर दण्डित थीं जो संसार की जननी हैं। यह सबकुछ चलता रहा। प्रताड़ित लोग आशा की टकटकी लगाये हुए थे और ईसाईयों का आगमन हुआ। ईसाईयों ने अपनी सत्ता स्थापित करने हेतु भारत में ईसाइयत का ढिढोरा पीटा और प्रताड़ित वर्ग ईसाई हो चले।
उस समय जो लोग ईसाई हुए थे वही अभद्र और अश्लील कहे जाते थे । किन्तु आज जो अभद्र हैं और अश्लीलता को धारण किये हुए हैं उन्हें उनकी इसी महानता हेतु पुरस्कृत किया जाता है।
अब सोचिए अभद्र और अश्लील कौन नहीं होना चाहेगा!!!!!!!!
हमने अपने मत व्यक्त किया है।
अब आप से भी प्रशन है जिस पर आप अपना मत व्यक्त कीजिये।
क्या अभद्रता और अश्लीलता प्रतिबंधित होनी चाहिए ??????
यदि हाँ तो इसका ऊपाय क्या होना चाहिए। यह कैसे प्रतिबंधित किया जा सकता है !!!!!!
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भारतीय शुभचिंतक 👉 अंगिरा प्रसाद मौर्या।
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