बुधवार, 6 अगस्त 2014

यदि भारत सरकार किसानों अथवा कृषकों का हित चाहती है तो उसे यह अवश्य करना चाहिए।

यदि भारत का शासन अथवा सत्ता में बैठे लोग वास्तव में कृषकों का हित चाहते हैं तो आज ही अथवा सर्वप्रथम क्या करना चाहिए ????
बहुत ही विचारणीय है !!!

जानते सब हैं परन्तु आवाज कोई नहीं करता !
क़ानूनी बहुत हैं कृषक का कोई नहीं सुनता।

जी हाँ !
सभी यह जानते हैं कि जहाँ पर बाढ़ आ जाती है वहाँ सब चौपट हो जाता है। परन्तु यह तो मौसमी त्रास है जिसकी संभावना भी रहती है, और बाढ़ नहीं भी आ सकती है। परन्तु कोई भी शासन इसे निर्धारित करने का सामर्थ्य नहीं रखता और भविष्य में रख भी नहीं पायेगा, क्योंकि ये प्राकृतिक घटना है, यह एक ईश्वरीय बिंदु है। किन्तु नीति और नियमों द्वारा इसे सुखद बनाना सम्भव है।

पर आश्चर्य की बात यह है कि शासन क्या निर्धारित कर सकता है जिससे कृषकों को भी लाभ हो और अन्यजनों को भी सुखद की अनुभूति हो ! और सत्ताधारी इसे पारित क्यों नहीं करते ? वे क्यों अक्षम हैं ?
या तो वे जनता की भलाई नहीं चाहते या फिर किसी रूढ़िवादिता वस ऐसा है।

जहाँ तक हमारी बात है अब मैं मुंबई में रहता हूँ! अर्थात एक शहरी व्यक्ति हूँ। और मैं विद्यार्थी अवधि के पहले से ही मुंबई में हूँ। अतः कृषि-क्षेत्र में हमारी रूचि एवं जानकारी नगण्य है।

फिर भी,
जब मैं अपने गाँव जाता हूँ तो अपने खेतों में अवश्य घूमता हूँ।
घूमते-घूमते अपने परिजनों से प्रश्न भी करता हूँ।
दादाजी से :- अपने पास इतनी खेती है फिर आलू खरीद के क्यूँ आता है ????

दादाजी :- कई वर्षों से तो बोया जाता है और अबकी बार भी बोये थे, किन्तु जंगली सुअर खा जाते हैं। उसमे किये गए खर्च की बात तो दूर है, उसमे किये गए श्रम का भी लाभ नहीं मिलता है। अतः अब कम ही बोया जाता है।

तो कभी पिता जी से:- अबकी बार कितनी गोभी लगाई गई थी ??

पिताजी :- डेढ़ बीघा ।

फिर पूँछा :- लाभ तो बहुत हुआ होगा ! अब सब्जियाँ भी महंगी हैं ?

पिता जी :- लाभ क्या होगा ! नीलगाय आती है और मूलधन सहित चौपट कर चली जाती है।

फिर पूछा:- तो चारो तरफ घेरे लगा देने चाहिए, तो नीलगाय नहीं आ पायेगी ?

पिता जी :- जाओ खेत के चारो तरफ देखो खम्भों के गड्ढे हैं कि नहीं। दस फिट ऊँचा घेराव किया था। घेराव करना भी अपव्यय ही हुआ। अब हम गन्ने ही बोयेंगे और कुछ नहीं।
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अब जरा सोचिये !
आजकल उतनी मात्रा में जंगल तो रहे नहीं। और जंगली सुअर कहाँ रहते होंगे। ये नीलगाय कहाँ रहती होगी ?
उसी गन्ने में रहते हैं।
जंगली सुअर तो एक अथवा दो व्यक्ति मार नहीं सकते और नीलगाय को मारना अपराध है।
क्या करेगा कृषक? सब्जियाँ क्यों नहीं महंगे होंगे ?
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ऐसी स्थिति में भारत सरकार के लिए हमारा एक ही सुझाव है कि वह सभी जंगली सुअरों को मारने की नीति बनाये और पारित करे। यदि वह नीलगाय को मारना अपराध मानती है तो नीलगायों के लिए आश्रम खोलवाए। जिसमे सभी नीलगायों को एकत्रित करने हेतु सरकारी व्यक्ति कार्यरत हों। तब ऐसा माना जा सकता है कि भारत सरकार किसानों अथवा कृषकों का हित चाहती है और वह उनका दुख दूर करने हेतु प्रतिबद्ध है। अन्यथा यही मानना चाहिए कि लोग जबतक सत्ता में आये नहीं रहते अथवा जब उन्हें सत्ता से बाहर जाने का संदेह हो जाता है तब जो वे कहते हैं वह सिर्फ बनावटी रहता है।

एक कृषक-पुत्र--- अंगिरा प्रसाद मौर्या।

!!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!े

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