सोमवार, 11 अगस्त 2014

दुष्कर्म ! आखिर क्या करे अब नारी !


पीड़ित हैं जो दुष्कर्मों से,
जाके पूँछो उन मर्मों से,
हमें वहीं तक ज्ञात हुआ है,
तदाकार हूँ जिन शर्मों से।

जग में इसकी रही लड़ाई,
फिर भी जग ने खूब उड़ाई,
वह भी तो पीड़ित होता है,
जिसने भी यह जनक बढाई।

नारी पर दुष्कर्म हुआ है,
नहीं पता खुदकर्म हुआ है,
राय यहाँ मैं भी कहता हूँ,
जिनसे पलड़ा नर्म हुआ।

वस्त्र बहुत हैं बाजारों में,
वेश्या के कुछ आचारों में,
तुमको चयन वही करना है,
सुखदायक हो संसारों में।

श्रमिकों का तुम संघ बनो अब,
धनिकों में एक अंग बनो अब,
महाशक्ति को तुम दर्शा दो,
अंग प्रतिष्ठा बंद करो अब।

वात्सल्य है तेरे कारण,
वीरोचित भी तू नर्मों से,
हमें वहीं तक ज्ञात हुआ है,
परिचित हूँ मैं जिन शर्मों से।

आधा जग ये तेरा नारी
फिर भी हो तुम क्यूँ दुखियारी,
एकत्रित अब हो जाओ तुम,
जैसी कलियाँ वैसी क्यारी।

मानसून तुम भी लहराओ,
चरण-पादुका हो बिसराओ,
तुम भी हो बलवान यहाँ पर,
चित्त को अपने अभी बताओ।

माना सबकुछ काटे आरी,
नित जो कटे न उसको भारी,
तुम भी हो जगदम्ब स्वरूपा,
अंग-मात्र की ना बलिहारी।

नीतिपरक अब तुम हो जाओ,
हो परिभाषित अब कर्मों से,
"मौर्य" वहीं तक ज्ञात हुआ है,
परिचित हूँ मैं जिन शर्मों से।
०९/०८/२०१४
     ~~~ अंगिरा प्रसाद मौर्या।
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शब्दार्थ:-

मर्म= हृदय, मन, चित्त।
तदाकार= सम्बंधित, परिचित।
जनक= गूढ़, समूह, संख्या।
पलड़ा= वर्ग।
वेश्या= नीति को कुचलने वाला।
आचार= व्योहार, निर्धारित नीति ।
श्रमिक= संघर्षी, तपस्वी।
वात्सल्य= ममता भाव,
नर्म= कोमल, विनम्र, तन्मय।
मानसून= आशायुक्त प्रवृत्ति,उत्तेजना ।
चरण-पादुका= पैरों की धूल, चप्पल।
आरी = जो प्रत्येक का भेदन कर सकती है।
बलिहारी= मान-प्रतिष्ठा का कारक अथवा कारण
नीतिपरक= सीमित आचार ।
परिभाषित= शिद्ध, सत्य का साक्षी।
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-: कुछ पंक्तियों की समीक्षा :-

वेश्या के कुछ आचारों में :-
यथा आज के चित्र जगत अथवा अभिनय शतक में आकर्षण का कारक, ।
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सुखदायक हो संसारों में:-
हमारा संसार एक होते हुए भी इसके विभिन्न विभाग हैं, यथा- मेला, उत्सव का सामूहिक हर्षोल्लास, कार्यालय समूह, विद्यालय इत्यादि।
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नित जो कटे न उसको भारी:-
आपकी कोई गोपनीय शक्ति है जो बहुत ही प्रबल है । किन्तु यदि उसका उपयोग बार बार अथवा सर्वदा किया जाय तो उसका महत्व नष्ट हो जाता है। उसका उपाय सभी ढूढ़ चुके होते हैं।
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-: दुष्कर्म :-
जो कर्म बलवान होने के नाते किया जाता हो, और नीति अथवा सिद्धांतो के परे हो उसे दुष्कर्म कहा जाता है।
जैसे :- परुष प्रधान समाज में नारियों का अपमान, कंस द्वारा अपने पिता उग्रसेन को बंदी बना कारागार में डालना, स्वार्थ हेतु पिता द्वारा असहाय पुत्र अथवा पुत्री की हत्या कर देना इत्यादि।
" जो राजा अपने इच्छा के विरुद्ध और कोई नियम नहीं जनता वह मिथ्यावादी, दुराचारी अथवा दुष्कर्मी है"

Your well wisher -  Angira Prasad Maurya.

!!*!! जय हिन्द !!*!! जय भारत !!*!!

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