शुक्रवार, 27 नवंबर 2015

सीमाएँ श्मशान हो जातीं, जब सैनिकों के हथियार न हो

सीमाओं पर कैसे सैनिक, जब उनके  हथियार न हों !
सीमाएँ श्मशान हैं होती, जब उत्तर के अधिकार न हो !

नित रोती होंगी भारतमाता, जा वीरों के श्मशानों पर।
कब तक बली चढ़ानी होगी, छद्मयुद्ध-सस्ते दामों पर।
इस धरती पर माँ की ममता, कब गौरव का गान करेगी !
कब आएगी नई सुबह वो, जब माँएँ अभिमान भरेंगी !

उन माँओं से जाकर पूँछो, जिसने अपने पुत्र हैं खोये !
जाकर उन बहनों से पूँछो, जिनकी मांग में कष्ट हैं बोये !
लेकिन कोई क्यों पूंछेगा, जब उनके पास जवाब न हो !
सीमाएँ शमशान हैं होती, जब उत्तर के अधिकार न हो !

हो जाने दो महायुध्द एक, हम अपना बलिदान करेंगे !
आने वाली पीढ़ी को हम, अपना जीवनदान करेंगे !
सहनशीलता की ये सीमा, मर्यादाएँ तोड़ चली अब।
देखो पुत्रों की माताएँ, पुत्र-तिलांजलि ओढ़ चली अब।

रोज-रोज का क्या ये रोना, एक दिन क्यूँ न रो लेवें हम !
जो दिन देखे हमने अबतक, शिशुओं को वो क्यों देवें हम !
भव्य होती रैलियां उनकी, जिनको जनता से प्यार न हो !
सीमाएँ श्मशान हैं होती, जब सैन्योचित हथियार न हों !
                    २७/११/२०१५
--------- अंगिरा प्रसाद मौर्य

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