सोमवार, 1 सितंबर 2014

काल्पनिक और आधुनिक

काल्पनिक और आधुनिक में बहुत अंतर होता है और आज भी है ।

आधुनिक युग में जिस प्रकार विज्ञान कार्यरत है और अंतर्राष्ट्रीय माँग को देखते हुए हम यही कह सकते हैं कि आधुनिक विज्ञान आगे है और इसने बहुत बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। विज्ञान नित्य उन्नत हो रहा है और नित्य उन्नत रहेगा ऐसा पूरा विश्व मानता है।

किन्तु काल्पनिक युग के समर्थक चंद भारतीय पंडितों के पांडित्य(पाखंड) की मानें तो इनका काल्पनिक युग आज के युग से श्रेष्ठ था। तब का विज्ञान अधिक उन्नत था। आज विज्ञान का पतन हो गया है ऐसा पंडितों का मत रहा है।

किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं है । ज्ञान और विज्ञान ऐसी वस्तुएँ एवं इनमे ऐसे तत्वों का समावेश है कि ये सदैव उन्न ही रहते हैं। "जिस प्रकार प्रजनन से जनसंख्या वृद्धि होती रहती है उसी प्रकार नए नए व्यक्तियों के नए नए अभिव्यक्ति एवं व्यक्तित्वों के योग से ज्ञान विज्ञान की वृद्धि भी निश्चित है" यह तथ्य है।

परन्तु पंडितों की मानें तो ज्ञान और विज्ञान का नित्य पतन होता है। इनकी मान्यताओं और व्याख्याओं की मानें तो पहले के जितने पंडित थे वे अबतक सूद्र हो जाने चाहिए थे नहीं तो इनके द्वारा उपजी और उपजायी सारी मान्यताएँ निराधार हैं।

हमारा भारत बहुत पीछे गया था अभी तक बहुत सी विकृति हुई है तो इसके एक एव कारण भारतीय पंडित ही हैं।
यही वो पंडित हैं जिन्हें अपने पूर्वजों परशुराम आदि के मिथ्या मान्यताओं पर गर्व है।

यही वो पंडित हैं जिन्होंने सती-प्रथा का प्रतिपादन किया था(पुरुष का मृत्यु हो जाने पर उसकी पत्नी को आभुषणयुक्त करवा के जीवित अवस्था में मृत पति के साथ फूँक देना, और मध्य रात्री में जाकर सभी आभूषणों को श्मसान की राख से ले आना इत्यादि )।

यही वो पंडित हैं जिनके चलते आज देवनागरी भाषा का लुप्त हो जाना सम्भव है ( चंद इस्लामिकों ने उर्दू का इतना प्रसार किया कि आज पंडित वर्ग भी उर्दू शब्दों के प्रयोग हेतु बाध्य है। और यही पंडित समाज को सिद्धांत भी बताते हैं )

यही वो पंडित हैं जिनके ढोंगों के चलते ब्राह्मण वर्ग के उपरांत सभी इनसे घृणा का भाव रखते हैं।

भारत में अंग्रेज आये थे तो भगवान को बहुत बहुत धन्यवाद देता हूँ !
अंग्रेज न आये होते तो एक नई क्रांति का जन्म नहीं हुआ होता और आज भी भारत पर इन तुच्छ पंडितों का शासन होता। पूरा समाज प्रताड़ित होता।

आज की ही स्थिति देखलीजिये ! आज भी समाज कहीं न कहीं पर अंधविश्वासों में ही जी रहा है। जैसे विवाह के समय पंडित ही मंत्रोच्चारण करेगा तभी विवाह संपन्न होगा।

कैसी व्यवस्था है ?
जब मंत्रोच्चारण से ही विवाह संपन्न हो जाता है तो उसमे जाति पाति से क्या लेना ! कोई भी मन्त्र पढ़े और विवाह संपन्न हो जायेगा। शब्दों की कोई जाति तो होती नहीं है कि फला जाति का व्यक्ति ही फला शब्द बोल पायेगा।
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क्रमशः
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भारतीय शुभचिन्तक- अंगिरा प्रसाद मौर्या।
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!!*!! वन्दे- मातरम !!*!!

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