बुधवार, 9 अप्रैल 2014

जय हिन्द

कतरों-कतरों में लिपटा लुट रहा है चमन,
दे के अग्नी-परीक्षा जो मिला था जनम,
क्यों बने आज दुश्मन उसी भारत के हम,
बना मत्भ्रष्ट भारत व दरिन्दे-सनम ||

युवाओं तुम मिल के अब खाओ कसम,
ना पनपने देंगे विष व क्रूरता-अधम,
सभ्यता का अपने अब रोको पतन,
आओ आजादी को अपने बनाएँ सनम ||

न देगा कोई अब "भगत सिंह" को जनम,
न होंगे "सुभाष" यहाँ रण के गरम,
होंगे न "बापू" अब ओ अहिंसा-परम,
क्योंकि होता यहाँ बस "मतों" का हनन ||

बाँट सम्प्रदायों की करके आज करते गुणन,
हैं "दिवाली" को कटते यहाँ "गायों" के 'मटन',
सहा जाता नहीं अब सभ्यता का पतन,
कि जय हिन्द कहते आज आये शरम ||

क्या सुधरेगा भारत या यूँ होगा दमन,
क्या सहेगी ये जनता अत्याचारो-जघन,
गर ताकत है हममे चलो कर जाएँ गमन,
बस भ्रष्टों के भ्रष्टता का करके दहन ||

घाव हैं हिन्द के तो तुम हो मरहम,
पाँव हैं हिन्द के तो तुम अगला कदम,
चलो ऐसा कि पीछे हो पूरा वतन,
दुश्मन हैं निर्मम, बनो तुम भी जघन ||

घोष करो जय हिन्द का कि गूँजे गगन,
संतोष किये तो सूखे ये शांति-अमन,
सांप्रदायिक विवादों का कर दो दफ़न,
कि मिट जाये दुनियां का तुरत ही वहम ||

~~~~~~~~~अंगिरा प्रसाद मौर्या
दिनांक:- ०९/०४/२०१४ 

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