गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

देश, देशहित एवं देशद्रोह

आज के परिदृश्य में एक देश इस संसार की एक महत्वपूर्ण इकाई है। देश की तुलना हर प्रकार से गॉवों एवं राज्यों से नहीं की जा सकती।
किसी भी देश का अपना एक इतिहास है। इसी प्रकार हमारे देश भारत का भी अपना इतिहास है। इसका सबसे महत्वपूर्ण इतिहास "महाभारत" के नाम से प्रसिद्ध है।
महाभारत के समय में राजतन्त्र था किन्तु आज प्रजातंत्र है। फिर भी इतिहास सीखने के लिए होता है अतः हमें तुलनात्मक दृष्टि से अवश्य सीखना चाहिए।

महाभारत में ,
दुर्योधन की विचारधारा युधिष्ठिर की विचारधारा के विपरीत थी। दुर्योधन की विचारधारा दुराचारी थी और युधिष्ठिर की विचारधारा सदाचारी।

अब चूँकि दुर्योधन के पिता "धृतराष्ट्र" राजा थे इसलिए उन्होंने दुर्योधन के विचारों का पौष्टिकता से पालन-पोषण किया।
पूरे राज्य में दुर्योधन की ही चलती थी इसीलिए अधिकांश कर्मचारी भी अधिकांश पदों पर दुर्योधन की विचारधारा वाले ही नियुक्त हुए।

युधिष्ठिर पाँच भाई थे उनके पिता का नाम "पाण्डु" था इसीलिए उन्हें "पाण्डव" कहा जाता था। दुर्योधन के 100 भाई थे उसके पिता आँख और मन दोनों से ही अंधे थे इसलिए इन्हें "धृते" नहीं कहा गया।

दुर्योधन ने पाण्डवों के विनाश की बहुत बार कूटनीति और रणनीति बनाई किन्तु पाण्डवों का कुछ नहीं बिगड़ा। परंतु सामान्य जनमानस के मन में बहुत ही कष्ट हुआ।  
युधिष्ठिर के भाई भीम और अर्जुन ने कई बार युधिष्ठिर को युद्ध करने की प्रेरणा दी किन्तु युधिष्ठिर सदाचार के उस सागर में तैर रहे थे जहाँ युद्ध करने की इच्छाशक्ति ही नहीं उत्पन्न होती।

अब जनता एवं युधिष्ठिर के चारो भाइयों का मन दुखी होते गया और आक्रोश भी बढ़ते गया। अंततः जीवन मूल्यों की रक्षा करने के लिए युद्ध ही अंतिम मार्ग बचा।
अब युद्ध छिड़ा और पूरे पृथ्वी के 65% राजा एवं 75% सेनाएँ दुर्योधन की ओर गयीं तथा बचे हुए पाण्डवों के पक्ष में। बहुत ही भयानक युद्ध हुआ अन्त में तमाम राजाओं सहित दुर्योधन मारा गया और सदाचार की विजय हुई।
यहाँ पर महत्वपूर्ण यह है कि युद्ध के उपरान्त ही सदाचार को विजय मिली। युद्ध नहीं किये होते तो कुछ भी नहीं मिलता यहाँ तक कि जीवन-मूल्यों को गिरवी रखकर कायरों की भाँति या तो जीवित रहते या फिर आत्महत्या कर लेते।

आज के भारत में,

आज तो अधिकांश लोगों को ये भी नहीं पता कि हमारे देश का नाम "भारत" है। आप "इण्डिया" कहो सब समझ जायेंगे किन्तु भारत कहो तो बहुत कम लोग जान पाते हैं। ऐसे में अपने देश का इतिहास सब लोगों का जान पाना कदाचित सम्भव नहीं है।

फिर भी हमें तुलना तो करना ही चाहिए क्योंकि हम तो देश का नाम और इतिहास दोनों ही जानते हैं।

भारत जबसे स्वतंत्र हुआ देश में कांग्रेस राज कर रही थी। लगभग 60 वर्ष तक कांग्रेस ने शासन किया।

वह कांग्रेस जिसने उन गांधीजी को राष्ट्रपिता केवल इसलिए बनाया जिससे धर्म के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण होते रहे।

अब लोग कहेंगे कि गांधीजी और वोटों के ध्रुवीकरण का सम्बन्ध क्या ?

तो उसका उत्तर : गांधीजी वो उदारवादी व्यक्ति थे जिनकी उदारता मात्र मुस्लिमों के लिए थी। गान्धीजी वे अहिंसावादी व्यक्ति थे जो मुस्लिमों को हिन्दुओं पर हिंसा के लिए प्रेरित करते थे। पाकिस्तान कश्मीर पर हमला करता था और गांधीजी उसे 55करोड़ रूपये देने के लिए आमरण अनशन करते थे। एक ओर जहाँ कश्मीर में मुस्लिम बहुलता के चलते वहाँ के राजा को सन्यास पर भेज दिए वहीँ दूसरी ओर हैदराबाद में हिन्दू-बहुल होने पर मुस्लिम शासन का समर्थन किये।
आप इतिहास पढ़ेंगे तो आपको और भी प्रमाण मिलेंगे।

ये वही कांग्रेस है जिसने नाथूराम गोडसे को फाँसी दिलवाकर अपने राष्ट्रपिता के अहिंसावादी नीति का मजाक उड़ाया है।

ये वही कांग्रेस है जिसके मंत्री अब पाकिस्तान में तख्तापलट की नीति सीखने जाते हैं। जिससे सरकार जल्दी बदले और इनकी सरकार आये तथा ये कश्मीर पाकिस्तान को दे सकें !

कुल मिलाकर देखें तो दुराचार का दूसरा नाम कांग्रेस ही है।

कांग्रेस का शासनकाल अधिक होने के नाते अधिकांश पदों पर बैठे पदाधिकारी भी उसी की विचारधारा वाले हैं।

कांग्रेस ने अब एक और नया रास्ता अपना लिया है। वो है देशद्रोहियों को संरक्षण देना। कहीं न कहीं कांग्रेस और देशद्रोहियों का वैसा ही सम्बन्ध है जैसा धृतराष्ट्र और दुर्योधन का था।

गांधीजी के समय में जब भारत सरकार ने पाकिस्तान को 55 करोड़ न देने का निर्णय किया तो गांधीजी आमरण अनसन पर बैठ जाते थे।

और आज जब भारत सरकार देशद्रोहियों पर कार्यवाही करती है तो कांग्रेस आमरण अनसन पर बैठ जाती है। कहीं न कहीं ये कांग्रेसी गाँधीजी की शिक्षा का अनुचित उपयोग कर रहे हैं। 

गांधीजी अपने वचन का मान रखने के लिए अनसन करते थे और कांग्रेसी सत्ता पाने के लिए सड़क जाम कर देते हैं।

मेरा हृदय इतना पीड़ित है कि यदि मेरे पास युध्द का कोई साधन होता तो कांग्रेसियों और देशद्रोहियों पर तुरन्त आक्रमण कर देता भले ही नाथूराम गोडसे की तरह एक दिन लोग हमे भूल जाते किन्तु मै जीवन मूल्यों को बेच नहीं सकता।

विडंबना तो ये है कि मै सुझाव लिखने के अतिरिक्त और कुछ कर भी नहीं सकता। चूँकि मैं हिन्दू हूँ इसलिए अवैध रूप से अनैतिक काम भी नहीं कर सकता। फिर भी न जाने क्यूँ हमें लगता है कि इस समय युद्ध से बढ़कर न तो कोई विकल्प है और न तो कुछ उससे नैतिक।

जिस दिन जे एयू में आतंकवादियों ने अफजल गुरु की बरसी मानाने का कार्यक्रम रखा था उसी दिन कन्हैया कुमार भी आजादी के नारे लगा रहा था। और बवाल मचने के बाद दूसरे दिन जब उसने अपना वीडियो सूट ये कहते हुए किया कि "हमे कानून पर पूरा भरोसा है हम संविधान में विश्वास रखते हैं"। उस दिन भी उमर खालिद उसके साथ था। और जब कन्हैया कुमार और उमर खालिद दोनों के विचार विपरीत हैं तो पहले ही दिन ज़ी न्यूज़ पर कन्हैया कुमार और उमर खालिद दोनों ही आये थे। कन्हैया कुमार ने बीजेपी और आरएसएस तथा एबीवीपी का विरोध तो किया किन्तु खालिद का विरोध नहीं किया। गौरतलब है कि उमर खालिद ने भी कन्हैया से किसी भी प्रकार का विरोधभास प्रकट नहीं किया। यदि कन्हैया देशद्रोहियों के साथ नहीं था तो उसे पुलिस में fir करवाने चाहिये थे। उसने ऐसा नहीं किया इसलिये वह भी देशद्रोही ही है। और इसीलिए कन्हैया कुमार गिरफ्तार हुआ है।
अब राहुल बाबा कहते हैं कि सरकार निर्दोषों को गिरफ्तार करवा रही है। 10 छात्रों के चलते आरएसएस वाले पूरे jnu का नाम ख़राब कर रहे हैं।

अब मैं राहुल बाबा को बिन मांगे सुझाव देता हूँ कि, जिस jnu के नाम की चिन्ता आपको सता रही है उसी jnu के छात्रसंघ का अध्यक्ष कन्हैया कुमार भी तो उस समय वहाँ उपस्थित था जब jnu का नाम ख़राब हो रहा था। और jnu प्रशासन भी सबकुछ देख रहा था। 

ऐसे में जवाबदेही सरकार की कम और कन्हैया कुमार तथा jnu प्रशासन की अधिक है। अतः आप(राहुल जी) सरकार को कम और jnu प्रशासन तथा कन्हैया को ज्यादा टारगेट करें ! समझे !

अब मित्रों हमारा आप सब से यही निवेदन है कि आप भी बताएँ सबसे अधिक दोषी कौन ?
1. कांग्रेस पार्टी
2. सरकार
3. कन्हैया कुमार
हमने जो लिखा है आप उसके आधार पर उत्तर न दीजियेगा । आप अपने ज्ञानानुसार उत्तर दीजिए।
आपको जो उचित लगे आप वही बताइये। हम भी #पन्थ_निरपेक्ष व्यक्ति हैं।

१८/०२/२०१६
आपका शुभचिंतक : अंगिरा प्रसाद मौर्य

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