रविवार, 14 फ़रवरी 2016

भाजपा की सरकार, विपक्षी दल एवं वोट बैंक

हमारा देश भारत आज उस चौराहे पर खड़ा है जहाँ पर नेतागणों को ये नहीं समझ आ रहा है कि इसको किस ओर ले जाना है,

पहला रास्ता : घोटालेबाजी, जातिवादिता, धर्मनिरपेक्षता  एवं उतार चढ़ाव वाला है जिससे होते हुए हम चौराहे पर पहुँचे हैं।

दूसरा रास्ता : ठीक उसके सामने वाला हैं जिसमें उतार चढ़ाव तो हैं किन्तु यहाँ प्रसासन के नियमों का उलंघन नहीं है और देशविरोधी विचारों का स्थान भी नहीं है।
यहाँ विभिन्न प्रकार के कथित धर्म नहीं हैं। यहाँ राष्ट्रधर्म ही सर्वोपरि है
यह रास्ता वही नाप सकता है जो आत्मविश्वासी एवं दृढ विचारों वाला हो।
इस रास्ते पर चलने वाले की विशेषता ये है कि वो अपने सगे-सम्बन्धियों के चलते भ्रष्टनीतियों एवं दुराचार से समझौता नहीं करता हो।
इस रास्ते पर आप जितने आगे चलते जाओ उतनी ही सकारात्मकता प्रतीत होने लगती है।

तीसरा रास्ता : ये वो रास्ता है जो बायीं ओर मुड़ा हुआ है। इसमें उतार चढ़ाव और भी अधिक है।
यहाँ पर व्यभिचारी और दुराचारी व्यक्ति सर्वश्रेष्ठ है।
इस मार्ग पर जितने आगे बढ़ते जाओ घोटालेबाज और भ्रष्टाचारी आपके सगे-सम्बन्धियों में ही मिलते जायेंगे। इसी मार्ग में वोट बैंक तथा आपसी मतभेद के चलते गृहयुध्द एवं कलह का जन्म हो जाता है, या यूँ कहें घोर कलियुग को यही रास्ता जाता है।
संसार के अधिकांश देश इसपर आगे बढ़ चुके हैं।
भारत की की दृष्टि भी इसी ओर घूम चुकी है किन्तु अभी एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा है।

चौथा रास्ता : ये ठीक दाहिने ओर है। इस पर जितने आगे चलते जाओगे देश के राज-देश के उतने टुकड़े होते जायेंगे ।
और आगे चलकर तानासाही का युग आएगा, भिन्न-भिन्न कथित समुदाय के लोगों की भिन्न-भिन्न राजधानियाँ होंगी। एक दिन एक-दूसरे से सब भिड़े हुए होंगे और जब घोर कलियुग के रास्ते पर चलकर कुछ लोग ऊब चुके होंगे तो पीछे से आएंगे कटुताएं और बढ़ाएंगे तथा एक दूसरे को लड़ाकर सबपर राज करेंगे ।

ये रहा वर्तमान और भविष्य का विश्लेषण।
                                  *********

अब वर्तमान सरकार को सुझाव अथवा निर्देश :-

हम केन्द्र सरकार की बात कर रहे हैं!

सरकार को भी यह ज्ञात है कि उसे वोट किसने दिया, क्यों दिया और कैसी छवि के चलते दिया ।

यदि सरकार के कुछ नेता अथवा मन्त्री या फिर पूरी सरकार उस छवि को अच्छी नहीं समझ रही है तो यह उसका भ्रम है।

यदि सरकार उस कारण को अन्तर्राष्ट्रीय बुराई मानती है तो आने वाले समय में इसे या तो विदेश भाग जाना होगा या फिर यहीं पर गुलाम बनकर रहना होगा।

जनता ने सरकार को जो अधिकार दिया है जो आदेश दिया है उससे वह मुँह नहीं मोड़ सकती। यदि वह जनता को झुठलाने-बरगलाने में अपना समय व्यर्थ करेगी तो भविष्य में उसका दण्ड सरकार सहित जनता को भी सहना पड़ेगा।

चन्द विपक्षी विरोधियों के भीड़ इकट्ठे हो जाने से, सड़क पर उतर जाने से, धरना देने तथा मिथ्यारोप लगाने से जो विशाल सरकार डर जाती हो, वो न तो विकास पर एकचित्त हो सकती है और न ही सुसाशन की कल्पना कर सकती है।

और अब अंत में एक कहावत भी याद आ रहा है,
।। कुत्ते भौंकते रह जाते हैं और हाथी दुम हिलाते चली जाती है।।

     !!*!! इति !!*!! १४/०२/२०१६ !!*!!

।। आपका शुभचिंतक : अंगिरा प्रसाद मौर्य ।।

1 टिप्पणी:

  1. पक्षीय लोकशाही को साँच मे लोकशाही नही।फिर भी इनोवेसन से यदी थोड़ी सी राहत मीलें,देश मे सभी धर्म की बॉंते ज़्यादा,आचरण मे बहुत पीछे।आत्मगौरव की कमी।भीखरी व्रुति ज़्यादा।

    जवाब देंहटाएं