शनिवार, 24 जनवरी 2015

गणतंत्र दिवस पर विशेष

26 जनवरी, गणतंत्र दिवस भारत को स्वतंत्र कराने हेतु प्रतिज्ञा लेने का वह दिवस है जिस निश्चय के चलते 15 अगस्त 1947 को हमारा देश स्वतंत्र हो पाया था।

इस क्रांति में माँ भारती के बहुत से वीर सपूत बलिदान हो गए तब जाके हमें स्वतंत्रता मिली है।

उसके बाद से भारत में प्रत्येक 26 जनवरी और 15 अगस्त को इन्हें राष्ट्रीय पर्व के रूप में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है।
बलिदानी सपूतों का गीत तबसे ही सरकार एक परम्परा बनाके गाती हुई चली आ रही है।
किन्तु,
        उन बलिदानियों की मंसा सबको पता होते हुए भी कोई भी केंद्र सरकार हो अथवा राज्य सरकार उसकी आपूर्ति हेतु किसी ने भी ठोस नियम नहीं बनाई।

अगर बनाई भी तो उसे पुस्तकों तक अथवा भाषणों तक सीमित कर दिया, उसका अनुपालन नहीं किया।

अगर ऐसा कुछ किया गया होता तो आज इस स्वतंत्र भारत में पानी नहीं बिकता !
आखिर इन पानी बेचने वाली कंपनियों को सर्टिफिकेट कौन देता है ?

वही सरकार !!!!! जो हमारे चुनने के बाद पदासीन होती है ! !!!!!

सरकार प्रत्येक व्यक्ति से कर लेती है ।
वो केवल उन्हीं लोगों से कर क्यों नहीं ले लेती जो धनाट्य हैं ! जिनके पास बड़ी बड़ी कम्पनियाँ हैं।

उनके उत्पादों पर हमारी सरकार कर सहित मूल्य लिखने का आदेश क्यों देती है ? नहीं देना चाहिए ना !

उन उत्पादों की आवश्यक्ता दरिद्रों और निर्धनों को भी पड़ती है। तो निर्धन क्यों टैक्स भरें ??~??

हमारे देश में बहुत सी राजनीतिक पार्टियाँ हैं ! किन्तु सभी की मंसा लगभग एक ही जैसी हैं।

जब तक जिसकी सत्ता नहीं होती तब तक वो विकास के सन्देश देते हैं। जैसे ही उनकी सत्ता आती है वो विनाश का अध्याय प्रारम्भ कर देते हैं। उनका अपना घर भरना चाहिए। उनकी कुर्सी बची होनी चाहिए। और बाकी लोग भूखों मरें कोई फर्क नहीं पड़ता।
क्योंकि अगर अपना विकाश का सन्देश वो सार्थक करने लगेंगे तो चार साल बाद आने वाले चुनाव में वो क्या भाषण देंगे।

फ़िल्म वाले कलाकार होते होंगे किन्तु लालची बहुत होते हैं। पैसे लेकर वो क्या-क्या कर सकते हैं इस बारे में सोचा भी नहीं जा सकता।
किन्तु,
        आज की ये राजनीतिक पार्टियाँ उन्हीं फ़िल्म वालों को अपना उम्मीदवार चुनती हैं। क्योंकि उनके पास उनका अपना सत्कर्म दिखाने हेतु भले कुछ न हो, परंतु झूठे प्रचार हेतु पैसे पर्याप्त होते हैं।

आज विद्यालय कई प्रकार के हैं, भिन्न-भिन्न विद्यालयों में भिन्न-भिन्न शिक्षायें दी जाती हैं। जो स्कूल सरकारी होते हैं उसमे सरकारी कर्मचारियों के बच्चे नहीं पढ़ते, क्योंकि वहाँ निम्नस्तर की शिक्षायें दी जाती हैं। उच्चस्तर की शिक्षाएं तो गैरसरकारी अथवा विदेशियों द्वारा चलाया जाने वाले इंग्लिश मीडियम के विद्यालय देते हैं। उनका शुल्क भी उच्च होता है। जिसके पास उतना पैसा नहीं है वह उच्च शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकता। अर्थात उसे निर्धन ही रहना पड़ेगा।

यही स्वतंत्रता है हमारे भारत की।

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